झारखंडी मजदूरों का आरोप, बेंगलुरु में बिल्डरों के गुंडों के साथ मिलकर पीट रही पुलिस कि हम न लौट पायें घर
जनज्वार को भेजे वीडियो में मजदूरों ने बताया कैसे रोका जा रहा है वहां जबरन और बिल्डरों के गुंडों के साथ मिलकर पुलिस ने उन्हें कितनी बुरी तरह पीटा, दिखाये पीठ व हाथ में चोट के निशान...
राहुल सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। कोरोना महामारी के कारण देशभर में लागू महामारी से मजदूर पहले ही परेशान हैं। अब उनके साथ बेंगलुरु में अमानवीय व्यवहार हुआ है। बेंगलुरु से झारखंड के प्रवासी श्रमिकों के साथ पुलिस द्वारा मारपीट की गयी है। पिटाई इतनी बुरी तरह की गयी है कि पीठ में उसके निशान दिख रहे हैं।
मजदूरों का आरोप है कि एल एंड टी के कंस्ट्रक्शन साइट के लोगों ने पुलिस से उनकी पिटाई उन्हें रुकवाने के लिए करायी है, जबकि कंस्ट्रक्शन साइट के अधिकारी इससे इनकार करते हुए कहते हैं कि हम यहां किसी को नहीं रोक रहे हैं जो जाना चाहते हैं जा सकते हैं। लेकिन मजदूरों की पीठ व हाथ में चोट के निशान यह बताते हैं कि उनके साथ कितना बर्बर व्यवहार किया गया है।
श्रमिकों ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखकर मामले की शिकायत की है और खुद को वहां से सुरक्षित निकालने की मांग की है। सत्ताधारी पार्टी झामुमो ने भी इस मामले में ट्वीट कर मुख्यमंत्री से कार्रवाई की मांग की है।
झारखंड के मुख्यमंत्री से मजदूरों ने खत लिखकर की अपील की वे निकालें उन्हें वहां से बाहर
गौरतलब है कि बेंगलुरु रूरल इलाके में इंटरनेशनल एयरपोर्ट निर्माण का काम चल रहा है। वहां प्रमुख रूप से यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल व ओडिशा के श्रमिक काम करते हैं। साइट पर से बहुत सारे श्रमिक अपने घरों को जा चुके हैं, लेकिन कुछ अभी भी फंसे हुए हैं।
इन्हीं में झारखंड के गढवा जिले के रंका व भवनाथपुर प्रखंड के भी हैं। इन श्रमिकों में से एक रंका के चटकमान के उपेेंद्र कुमार सोनी ने जनज्वार को बताया कि कंस्ट्रक्शन साइट प्रोजेक्ट व पुलिस वालों ने कल 5 मई की शाम चार-पांच बजे के बीच उनकी पिटाई की। उपेंद्र ने कहा कि रूम में बंद कर उनमें से कई की पिटाई की गयी। इनमें चार-पांच लोगों को ज्यादा चोट लगी है। मजदूर इतने डरे हुए हैं कि कंस्ट्रक्शन साइट के अफसरों से अपने नाम का जिक्र करने से भी इनकार करते हैं।
मारपीट की वजह पूछने पर उनका कहना कि वे कल शाम बेंगलुरु से झारखंड के बड़काकाना के लिए खुलने वाली एक ट्रेन से वे घर जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया गया, जबकि उनका मेडिकल चेकअप का प्रमाणपत्र, पास बना हुआ था। उन्होंने मेडिकल चेकअप के आधार पर यात्रा की अनुमति वाले प्रमाणपत्र की काॅपी भी जनज्वार को भेजी है। वे कहते हैं कि हम लोगों को यात्रा के लिए टिकट भी मिला हुआ था, लेकिन साइट से नहीं जाने दिया गया। इनका आरोप है कि इनका ट्रेन टिकट छिन लिया गया।
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मजदूरों का कहना है कि 785 श्रमिकों को ट्रेन से भेजा जाना था, लेकिन 722 ही भेजे गए, इस कारण ट्रेन की दो बोगी भी खाली गयी है। वे कहते हैं कि मेलूर रेलवे स्टेशन ले जाने के लिए 40 बसें कंस्ट्रक्शन साइट पर आयी थीं, जिसमें कम श्रमिकों को जाने देने की वजह से छह बसें खाली ही लौट गयीं। झारखंड के 63 श्रमिक वहां से नहीं निकल सके।
पिटाई के शिकार हुए नागेंद्र यादव आरोप लगाते हुए कहते हैं, हमें रूम में बंद करके पुलिस ने बुरी तरह मारा। कंस्ट्रक्शन साइट के टाइम आफिस वालों ने हम लोगों की पिटाई करवायी। वे लोग जब मारपीट का वीडियो बना रहे थे, तो तीन लोगों का मोबाइल भी छीन लिया गया।
वहीं इन मजदूरों में शामिल उपेंद्र बताते हैं, आज 6 मई की सुबह 10-11 बजे के बीच आकर भी धमकी दी गयी कि यहां से तुम लोगों को जाना नहीं है, सब चले जाओगे तो काम कौन करेगा।
लॉकडाउन में फंसे झारखंड के लगभग 70 श्रमिकों में से कुछ सालभर से तो कुछ छह-आठ महीने से काम कर रहे हैं। कुछ श्रमिक और पुराने हैं। मजदूर वहां कंस्ट्रक्शन साइट की काॅलोनी में रहते हैं। उस काॅलोनी में 5000 के करीब लोग सामान्य दिनों में रहा करते हैं, लेकिन लाॅकडाउन की वजह से अभी ज्यादातर श्रमिकों के चले जाने से वह लगभग खाली हो गया है। झारखंड, बंगाल व कुछ अन्य राज्यों के थोड़े-बहुत श्रमिक बचे हैं।
ये श्रमिक ठेकेदार के माध्यम से बेंगलुरु पहुंचे हैं। ठेकेदार सामान्यतः मजदूरों के गृह प्रदेश व गृह जिले के होते हैं, जो पिछड़े राज्यों व जिलों से सस्ते मानव श्रम की महानगरों व विकसित राज्यों में आपूर्ति करते हैं। श्रमिक उपेंद्र बताते हैं कि गढवा जिले के ही कई ठेकेदार हैं, जिनके माध्यम से यहां अलग-अलग ग्रुप में लोग आए हैं। वे ऐसे कई ठेकेदार का नाम लेते हैं, जैसे अनूप कुमार सोनी, अभय कुमार, रजनीश कुमार।
इन श्रमिकों को ठेकेदार के माध्यम से ही पेमेंट व रोजगार मिलता है और ठेकेदार को इनको काम पर रखवाने पर कमिशन मिलता है, इसलिए इन दोनों के रिश्ते अच्छे होते हैं।
श्रमिक उपेंद्र कुमार सोनी ठेकेदारों की तारीफ करते हुए मारपीट के लिए कंस्ट्रक्शन साइट के लोगों को जिम्मेवार ठहराते हैं।वे कहते हैं कि बिल्डरों के गुंडों ने पुलिस के साथ मिलकर हमारे साथ मारपीट की, ताकि हम अपने घर वापस लौटने के बारे में सोच भी न पायें। वे कहते हैं कि डेढ महीने की कामबंदी के बाद भी वे ठेकेदार के सहयोग से ही यहां रह पाए हैं। वे लोग कई चीजों का प्रबंध भी कर देते हैं। इन मजदूरों को आठ घंटे की मजदूरी के मात्र 300 रुपये मिलते हैं।
कंस्ट्रक्शन साइट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर केपी महेश्वर अप्पा ने इस पूरे मामले पर जनज्वार को बताया, हम किसी मजदूर को नहीं रोक रहे हैं, जो जाना चाहते हैं वे जा सकते हैं। उनको अगर संबंधित आथोरिटी से इसके लिए अनुमति मिल जाती है तो हमें क्या दिक्कत है। कल ही हमने 1500 मजदूरों को भेजा है। वे कहते हैं कि पुलिस के मूवमेंट के कारण रोड पर जाने में प्राब्लम होती है।
क्या झारखंड के श्रमिकों के साथ वहां मारपीट की गयी है, इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं मारपीट नहीं हुई है और हमें इसके बारे में मालूम नहीं है। आप इस बारे में लोकल थाने में बात कीजिए।
उधर, इस मामले से जनज्वार द्वारा झारखंड कोरोना कंट्रोल रूम के अवगत कराये जाने के बाद अधिकारियों ने मामले को संज्ञान में लिया है। मजदूरों ने बाद में फोन पर बताया कि रांची से फोन आया था और हमसे इस मामले में पूरी डिटेल मांगी गयी है, जो हम उन्हें भेज रहे हैं।
2011 के सेन्संस के मुताबिक़ कर्नाटक में 4.63 लाख अंतरराज्यीय मज़दूर पंजीकृत हैं जिनकी संख्या इन दस वर्षों के दौरान एक चौथाई यानी एक लाख से ज्यादा और बढ़ चुकी है। अब वहां काम करने वालों की संख्या न्यूनतम 5.50 होगी। इन प्रवासी मजदूरों में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम और राजस्थान तक से कई लाखों मज़दूर औद्योगिक क्षेत्रों में काम के लिए आते हैं। ये मजदूर कारखानों-फैक्ट्रियों के अलावा खेती के कामों, ईंट भट्टे, खदानों, मसत्य पालन, घरेलू काम, निर्माण कार्यों से जुड़े हैं। अंदाजन यहां लगभग 1 लाख राजस्थानी मजदूर भी काम करते हैं।