Begin typing your search above and press return to search.
उत्तराखंड

मज़दूर महिलाओं का छलका दर्द, कहा lockdown में सरकार ने शराब की दुकानें खोल मर्दों के हाथों में थमा दिए हैं डंडे

Manish Kumar
13 May 2020 7:41 AM GMT
मज़दूर महिलाओं का छलका दर्द, कहा lockdown में सरकार ने शराब की दुकानें खोल मर्दों के हाथों में थमा दिए हैं डंडे
x

मजदूर महिलाओं का कहना है कि एक तो पहले से हम महिलाओं के पास काम नहीं है और अब सरकार द्धारा शराब की दुकानों को खोल देने से उनकी परेशानियां बहुत बढ़ गई हैं...

अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट

जनज्वार। लाकडाउन के चलते उत्तराखंड की मजदूर महिलाओं पर गंभीर असर पढ़ रहा है। इन मजदूर महिलाओं का कहना है लंबे समय से बन्दी के चलते ये महिलाएं बेरोजगारी की मार तो झेल ही रह हैं अब शराब की दुकानें खुल जाने से दोहरे शोषण का शिकार हो रही हैं.

मजदूर महिलाओं का कहना है कि एक तो पहले से हम महिलाओं के पास काम नहीं है और अब सरकार द्धारा शराब की दुकानों को खोल देने से पति व बेटों के नशा करने और घर में आकर गालीगलौज करने व मार पीट करने जैसी सम्याओं का सामना करना पढ़ रहा है।

यह भी पढ़ें- लॉकडाउन में अबतक सिर्फ ट्रेनों से लौट चुके हैं 1 लाख 20 हजार मजदूर वापस बिहार

रेखा आर्या जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, लिफाफे बेचकर अपना घर चलती हैं, कहती हैं, 'में एकल महिला हूं, अकेले रहती हूं, लिफाफे बेच कर अपना पेट भरती हूं, बन्दी के कारण आजकल वह काम भी ढीला पढ़ गया है जिसके चलते मेरे सामने खाने की समस्या उत्पन्न हो गई है. दो वक्त का खाना जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है। इस समय हमारी उम्मीदें सरकार से थी लेकिन सरकार के द्धारा कोई सहायता नहीं मिली एक प्राईवेट संस्थान (एन.जी.ओ.) द्वारा कुछ राशन दिया गया। इसके अलावा कोई सरकारी मदद नहीं मिली।

कमला देवी कहती हैं, मैं और मेरे पति हम दोनों ही मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं. मैं लोगों के घरों में झाड़ू-पोछे का काम करती थी जब से यह कोरोना माहमारी आयी है, तब से मालिक लोगों ने भी काम पर आने से मना कर दिया। डेढ़ महीने बाद यह लोकडाउन खुला तो सरकार ने साथ में शराब की दुकानें भी खोल दी। पति सुबह ही पीकर आ जाते हैं, ऐसे मं कहां से मजदूरी करने जाएंगे, अगर हम महिलाएं मेहनत मजदूरी करना भी चाहें काम नहीं है, हम महिलाओं के लिए परेशानी हो रही है।'

यह भी पढ़ें- मुंबई से जौनपुर लौट रहा प्रवासी मजदूर परिवार हुआ हादसे का शिकार, मां-बेटी की मौके पर हो गयी मौत

उन्होंने कहा, 'सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है। एक बार कुछ चावल मिला था लेकिन क्या हम मजदूर केवल चावल खा कर ही अपना पेट भरें. इसके अलावा गैस की बहुत परेशानी हो रही है, गैस नहीं मिल रही है यहां वहां से मांग कर काम चला रहें हैं। हमारे जनधन खाते में भी कोई पैसा नहीं आया है.'

बता दें केंद्र सरकार की योजनाओं के अनुसार 20 करोड़ महिला जनधन खाताधारकों को अगले तीन महीने तक 500 रुपये प्रतिमाह व अगले तीन महीने तक बी.पी.एल.धारक परिवारों को फ्री सिलेंडर की व्यवस्था की गई है साथ ही पी.एम. कल्याण योजना के तहत महिला सेल्फ ग्रुप से 7 करोड़ परिवारों को फायदा मिलेगा। लेकिन अल्मोड़ा शहर की इन मजदूर महिलाओं को इन योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिला है। अपनी दो वक्त की रोटी जुटा पाने के लिए ये महिलाएं परेशान हैं।

साल की देवकी देवी कहतीं हैं 'मेरा एक बेटा है मजदूरी करता है इतने समय से लॉकडाउन होने के कारण उसके पास भी काम नहीं है आजकल तो सुबह ही शराब पी कर आ जाता है। मैं इस बुढापे में कैसे काम करूंगी, एक बेटे का ही तो भरोसा है वो भी नशे में धुत्त रहता है। सरकार कोई सहायता नहीं करती वृद्धावस्था पेंशन भी वक्त पर नहीं मिलती। इस शराब ने पहले तो हमसे हमारे पतियों को छीन लिया अब बेटों का भी वहीं हाल है.'

उन्होंने कहा, 'हम गरीब लोगों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है,कम से कम इस शराब को ही बन्द कर दे।' गौरतलब है कि राज्य में आबकारी से सालाना 3600 करोड़ रुपये राजस्व मिलता है ऐसे में सरकार इन गरीब मजदूरों के बरबाद होते घरों के लिए क्यों शराब बन्द करेगी।

शर्मनाक : बीच सड़क पर मजदूर ने बच्चे को दिया जन्म, मासूम को गोद में उठा पैदल तय किया 270 KM का सफर

भावना कहती है, 'मैं अभी खुद पढाई करती हूं, लिफाफे बना कर घर चलाने में मां की सहायता करती हूं अभी वह भी नहीं चल रहा है हमारा राशन कार्ड भी नहीं बना है। वार्ड मेम्बर से बोला उसने भी किसी तरह की सहायता करने से मना कर दिया।'

इसी तरह एक दूसरी महिला रेनू कहती है, 'मेरे दो बच्चे हैं पति मिठाई के डिब्बे बनाने वाली दुकान में काम करते थे, अभी तीन महीने से घर में बैठे हैं। खाने को नहीं है और सरकार कह रही है बच्चों की पढाई आनलाइन होगी मेरे पास तो फोन भी नहीं है नेट नहीं है हम मजदूर-मजदूर बस्ती में रहने वाले हम कहां से अपने बच्चों को फोन पर पढाऐंगे, बड़ी मुश्किल से मेहनत मजदूरी करके बच्चों की महीने की फीस भर पातें हैं।

ऐसे ही दीपा देवी, जीवन्ती देवी,चम्पा देवी, पुष्पा देवी,सुशीला, कंचन,लक्ष्मी तमाम महिलाएं हैं जो इस बन्दी की मार को झेल रही हैं।

Next Story

विविध