Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

अब एशिया की सबसे बड़ी पत्थर मंडी पर तालाबंदी, 2 लाख मजदूर बेरोजगार

Prema Negi
22 Aug 2019 4:08 AM GMT
अब एशिया की सबसे बड़ी पत्थर मंडी पर तालाबंदी, 2 लाख मजदूर बेरोजगार
x

पत्थर के पहाड़ों पर काम करने वाले 2 लाख मजदूर जहां सीधे बेरोजगार हो गए हैं, वहीं जेसीबी ड्राइवर, मशीन आपरेटर, ट्रक ड्राइवर, ढाबे, पेट्रोल पंप आदि का कारोबार भी बुरी तरह हुआ है प्रभावित, इससे 3 लाख से भी ज्यादा लोगों के पेट पर पड़ेगी लात....

जनज्वार। मंदी के इस दौर में उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में स्थित एशिया की सबसे बड़ी पत्थर मंडी भी तालाबंदी के दौर से गुजर रही है। इतनी बड़ी पत्थर मंडी के बंद होने से सीधे-सीधे यहां काम करने वाले लगभग 2 लाख मजदूरों के सामने रोजी—रोटी का संकट मुंह बाये खड़ा हो गया है। लाखों मजदूरों की बेरोजगारी के अलावा पत्थर मंडी से आयात—निर्यात के साधन लगभग 6 हजार ट्रक भी बेकार खड़े हैं।

यह भी पढ़ें : ट्रक बनाने वाली कंपनी अशोक लेलैंड में छंटनी-तालाबंदी का दौर जारी

गौरतलब है कि पत्थर मंडी में राज्य में सत्तासीन योगी सरकार की नई नई खनन नीति के विरोध में ताला बंदी की गयी है। स्टोन क्रेशर मालिकों ने योगी सरकार की नई खनन नीति के विरोध में हड़ताल की है। अब नौबत स्टोन क्रेशर की नीलामी तक बिगड़ने लगी है। जो एनएच 34 पत्थर मंडी के सामान ढोने वाले ट्रकों से गुलजार रहता था, अब वहां सन्नाटा व्याप्त है। क्रेशर मालिकों का कहना है कि शासन की नई खनिज नीति के कारण उन्होंने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की है।

यह भी पढ़ें : अब मंदी का साया पारले बिस्किट कंपनी पर, जायेगी 10 हजार श्रमिकों की नौकरी

त्तर प्रदेश के महोबा जनपद के कबरई कस्बा जोकि पत्थर उद्योग नगरी के नाम से ख्यात है, यहां पर एशिया का सबसे बड़ा पत्थर बाजार है। पत्थर मंडी के चारों ओर तकरीबन 350 स्टोन क्रेशर लगे हैं, मगर अब यह कोई काम नहीं कर रहे हैं। पत्थर मंडी के ठेकेदारों और स्टोन क्रेशर मालिकों का कहना है कि योगी सरकार की नई खनन नीति ने हमें गड्ढे में धकेलने का काम किया है। इसके खिलाफ पहले क्रेशर मालिकों ने जिला प्रशासन से लेकर योगी तक अपील की की हमारे पेट पर लात न मारे। मगर जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो क्रेशर मालिक 17 अगस्त से हड़ताल पर चले गये, जिसका सीधा असर पत्थर मंडी में काम कर अपनी रोजी—रोटी चलाने वाले मजदूरों के रोजगार पर पड़ा।

संबंधित खबर : ऑटोमोबाइल सेक्टर में भयंकर मंदी, उत्तराखण्ड में टाटा मोटर्स अस्थायी रूप से बंद

जानकारी के मुताबिक पत्थर मंडी से हर साल 400 करोड़ रुपये का राजस्व प्रदेश सरकार को प्राप्त होता है। हर रोज लगभग 6000 ट्रक गिट्टी भरकर देश के कोने-कोने में जाते थे। पत्थर मंडी का बिजली का बिल ही लगभग 20 करोड़ रुपया का होता था, अब हड़ताल की वजह से सरकार को भी अरबों रुपये का घाटा हो रहा है।

त्थर मंडी के स्टोन क्रेशरों की हड़ताल से न सिर्फ उनके मालिक और उसमें काम करने वाले मजबूर बल्कि इससे जुड़े सभी उद्योग ठप्प हो गये हैं। पत्थर मंडी में रोज के रोज काम कर अपना गुजारा करने वाले मजदूरों के सामने सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है। बगैर काम के उनके परिवार के सामने फांके मारने की नौबत आ रही है।

यह भी पढ़ें : ऑटोमोबाइल कंपनियों को मंदी से उबारने का पीएम मोदी ने किया सराहनीय प्रयास, सभी कर रहे हैं उन्हें दोनों हाथों से सैल्यूट

हां पत्थर के पहाड़ों पर काम करने वाले दो लाख मजदूर सीधे बेरोजगार हो गए हैं, वहीं जेसीबी ड्राइवर, मशीन आपरेटर, ट्रक ड्राइवर, ढाबे, पेट्रोल पंप आदि का कारोबार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अनुमानत: इससे 3 लाख से भी ज्यादा लोगों के पेट पर लात पड़ेगी।

निश्चितकालीन हड़ताल पर गये स्टोन क्रेशर मालिकों का कहना है कि एक क्रेशर लगाने में 3 से 6 करोड़ रुपये तक का खर्च आ जाता है और बाकी मशीनरी को मिलाकर 10 करोड़ रुपये तक की लागत आती है। ऐसे में पत्थर मंडी में तालाबंदी से स्टोन क्रेशर लगाने के लिए बैंकों से लिया गया कर्ज भी हम नहीं चुका पा रहे। हड़ताल ऐसे ही जारी रही तो उन्हें स्टोन क्रेशर नीलाम करके बैंकों का कर्ज चुकाना पड़ेगा। पत्थर मंडी में हड़ताल का छठा दिन होने के बावजूद शासन—प्रशासन की तरफ से किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आयी है।

यह भी पढ़ें : मोदी शासन में मंदी की खबरें विज्ञापन के बतौर छपवाने को मजबूर पूंजीपति!

स्टोन क्रेशर यूनियर के अध्यक्ष राघवेंद्र सिंह कहते हैं, खनिज कारोबार की दुर्दशा और लाखों लोगों की रोजी-रोटी के संकट के लिए सीधे तौर पर प्रदेश की योगी सरकार और जिले का शासन-प्रशासन सीधे तौर पर जिम्मेदार है।

Next Story

विविध