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सर्वोच्च न्यायालय ने मोदी सरकार को क्लीनचिट दी, राफेल सौदे की नहीं होगी कोई जांच

Nirmal kant
14 Nov 2019 10:28 AM GMT
सर्वोच्च न्यायालय ने मोदी सरकार को क्लीनचिट दी, राफेल सौदे की नहीं होगी कोई जांच
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राफेल विमान सौदे को लेकर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की मोदी सरकार को क्लीनचिट दी है। तीज जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि इसकी अलग से जांच करने की जरुरत नहीं है...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार, नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 14 राफेल लड़ाकू विमान के सौदे को बरकरार रखते हुए अपने 14 दिसंबर, 2018 को दिए फैसले के खिलाफ दाखिल समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया। केंद्र सरकार को राहत देते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने 14 दिसंबर 2018 को सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा और कहा कि इसकी अलग से जांच करने की जरूरत नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की दलीलों को तर्कसंगत और पर्याप्त बताते हुए माना कि केस के मेरिट को देखते हुए इसमें दोबारा जांच के आदेश देने की जरूरत नहीं है।

च्चतम न्यायालय ने 14 दिसंबर 2018 को राफेल खरीद प्रक्रिया और सरकार द्वारा इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में भारतीय कंपनी को फेवर किए जाने के आरोपों की जांच करने का अनुरोध करने वाले सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि फैसला लेने की प्रक्रिया में कहीं भी शक करने की गुंजाइश नहीं है।

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याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय का फैसला गलत तथ्यों के आधार पर है, क्योंकि केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में अदलात के सामने गलत तथ्य पेश किए थे। यहां तक की सरकार ने खुद ही फैसले के अगले दिन 15 दिसंबर 2018 को अपनी गलती सुधारते हुए दोबारा आवेदन दाखिल किया था।

राफेल डील मामले में उच्चतम न्यायालय ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी और 59,000 करोड़ के राफेल सौदे में हुई कथित अनियमितताओं की अदालत की निगरानी में जांच वाली मांग को खारिज कर दिया था। इस फैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं और 10 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं। सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फैसले की समीक्षा करने की अपील की थी। राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई। इसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) का है।

कांग्रेस का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपए तय की गई थी। मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ेगा। कांग्रेस की आपत्ति है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रावधान नहीं है। पार्टी इसमें एक कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगाती रही है।

गौरतलब है कि वर्ष 2015 अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पेरिस दौरे पर गए और उन्होंने वहां से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की घोषणा की।जनवरी 2016 में फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसियो होलांदे गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत आए, इसी दौरान भारत औ फ्रांस के बीच राफेल सौदे का एमओयू साइन हुआ।नवंबर 2018 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्यक्षता में गठित पीठ ने राफेल सौदे में घोटाले को लेकर दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

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14 दिसंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदे की जांच को लेकर दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि राफेल डील के लिए फैसला करने की प्रक्रिया पर वास्तव में किसी प्रकार का संदेह करने की कोई वजह नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा था कि यह उनका काम नहीं है कि वो राफेल विमान की कीमत के मामले में पता करें। मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी की तरफ से कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि जजमेंट गलत तथ्यों पर आधारित है क्योंकि केंद्र सरकार ने सील बंद लिफाफे में गलत तथ्य कोर्ट के सामने पेश किए थे। यहां तक कि सरकार ने खुद ही कोर्ट के सामने जजमेंट के अगले दिन 15 दिसंबर 2018 को अपनी गलती सुधार कर दोबारा आवेदन दाखिल किया था।

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि मामले में पहली नजर में कोई संज्ञेय अपराध नहीं हुआ है। साथ ही पीएमओ ने कोई पैररल निगोशियेशन नहीं किया था। मामले में याचिकाकर्ता लीक हुए दस्तावेज के आधार पर रिव्यू पिटिशन दाखिल कर रखी है और इसे खारिज किया जाना चाहिए।

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