पीएमओ बोला राफेल डील में नहीं की सौदेबाजी, केवल डील पर रखी निगाह
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने नये हलफनामे में कहा है कि राफेल डील पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा नजर रखने को समानांतर सौदेबाजी नहीं माना जा सकता....
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
पैरेलल नेगोशियेसन (समानांतर सौदेबाजी) और मोनिटरिंग ऑफ़ डील (डील पर नजर)का शब्दार्थ एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं हैं, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने नये हलफनामे में कहा है कि राफेल डील पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा नजर रखने को समानांतर सौदेबाजी नहीं माना जा सकता है।
यही नहीं एक बार फिर केंद्र सरकार ने कोर्ट में देश की सुरक्षा का कार्ड खेलते हुये कोर्ट से अपील किया है कि राफेल मामले पर पुनर्विचार याचिका खारिज होनी चाहिए। सरकार ने कहा है कि राफेल विमान खरीद प्रक्रिया की समीक्षा देश में वर्तमान वातावरण में राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है और पड़ोसी देशों को इसकी जानकारी मिल सकती है।
दरअसल इस समय चल रहे लोकसभा चुनावों को देखते हुये केंद्र सरकार इस मामले को चुनाव के बाद सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय से कई बार आग्रह कर चुकी है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने नहीं माना। चूँकि द हिन्दू में प्रकाशित दस्तावेजों को सरकार कोर्ट में सही मान चुकी है, इसलिए विधिक क्षेत्रों में माना जा रहा है कि इस मामले में सरकार को जवाब देने में बहुत मुश्किल आएगी। यही नहीं सरकार को यह भी डर है कि कहीं उच्चतम न्यायालय इस मामले में एफआईआर करने का आदेश न पारित कर दे।
उच्चतम न्यायालय ने 14 दिसंबर 2018 को दिए गए अपने आदेश में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत होना बताया था और सरकार को क्लीनचिट दी थी। इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गईं। मामले पर अगली सुनवाई 6 मई को होगी। पीठ ने केंद्र को पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं सहित सभी पक्षकारों में इसे वितरित करने की अनुमति प्रदान कर दी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण के अलावा एक अन्य अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने राफेल सौदे के बारे में शीर्ष अदालत के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार याचिकायें दायर की हुई हैं। पीठ ने 10 अप्रैल को इस सौदे से संबंधित लीक हुए कुछ दस्तावेजों पर आधारित करने वाली अर्जियां स्वीकार कर लीं और पुनर्विचार याचिका पर केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया, जिससे केंद्र को झटका लगा। केंद्र ने इन दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया था।
जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ के सामने केंद्र ने कहा है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री ने फाइल में इस बात का जिक्र किया था कि ऐसा लगता है पीएमओ और फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय ने डील की प्रगति पर नजर रखी, जो कि समिट में हुई मुलाकात का नतीजा लगता है।
केंद्र ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा डील को तय प्रक्रिया के तहत और सही ठहराने का फैसला सही था। अप्रमाणिक मीडिया रिपोर्ट और विभागीय फाइलों में की गई टिप्पणियों को जान—बूझकर एक चुनिंदा तरीके से पेश किया गया। इसे पुनर्विचार का आधार नहीं माना जा सकता है।
इस साल फरवरी में संसद में पेश की गई कैग रिपोर्ट का जिक्र करते हुए केंद्र ने कहा है कि रिपोर्ट में अंतर-सरकारी समझौतों में 36 राफेल विमानों की जो कीमत दी गई थी, उसे सही माना गया। इसमें कहा गया था कि अंतर-सरकारी समझौतों में सामान्य तौर पर देश की सुरक्षा के लिए किए जा रहे रक्षा सौदों की कोई तुलनात्मक कीमत नहीं दी जाती है। रक्षा अधिग्रहण समिति ने 28 अगस्त से सितंबर 2015 के बीच मूल्य, डिलिवरी का समय और मेंटेनेंस जैसे पहलुओं पर बेहतर सौदे के निर्देश दिए थे।
केंद्र सरकार ने हलफनामे में दोहराया है कि भारत को सस्ती कीमत पर राफेल विमान मिले हैं।. सरकार ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत धारणा जांच का आधार नहीं हो सकती है। साथ ही इसे लेकर किसी भी एफआईआर का आदेश नहीं दिया जा सकता है। सरकार ने कहा कि दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था।
सरकार ने अदालत में गलत जानकारियां दीं
14 दिसंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय ने राफेल डील में कोर्ट की निगरानी में जांच समिति के गठन से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा था कि इस सौदे की निर्णय प्रक्रिया में कोई संदेह नहीं दिखाई देता है। अदालत ने यह भी कहा था कि दाम के मसले में जाना हमारा काम नहीं है। राफेल के दामों को लेकर जांच किए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बाद यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने इस साल जनवरी में उच्चतम न्यायलय में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थीं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि अदालत के फैसले में कुछ त्रुटियां हैं। यह फैसला सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में दी गई कुछ गलत दावों के आधार पर किया गया है, जबकि इन दावों पर हस्ताक्षर भी नहीं किए गए। यह सामान्य न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
फ्रांस ने राफेल मामले में पल्ला झाड़ा
इससे पहले फ्रांस ने राफेल मामले पर एक बार फिर अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि भारत में राफेल विमान की खरीद पर हो रहा विवाद वहीं का मुद्दा है, इससे फ्रांस का कोई लेना देना नहीं है। फ्रांस की महावाणिज्य दूत सोनिया बारब्री ने कहा कि सभी नियमों और प्रतिक्रियाओं का पालन करने के बाद ही यह सौदा हुआ है। यदि कोई विवाद भारत में होता है तो इससे हमारा कोई लेना देना नहीं है। हमने सभी प्रक्रियाओं को पूरा किया है।