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विमर्श

HR हनन के मामले में चीन और रूस भी Modi Government से पीछे

Janjwar Desk
19 Dec 2021 5:23 PM IST
Mahendra Pandey
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मानवाधिकार हनन के मामले में चीन और रूस भी मोदी सरकार से पीछे - महेंद्र पाण्डेय।

मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में हमारा देश अतुलनीय है। चीन और रूस भी हमसे बहुत पीछे छूट गए हैं। यहां मानवाधिकार कार्यकर्ता सबसे पहले आतंकवादी, माओवादी और देशद्रोही बताकर बिना किसी आरोप या सबूत के जेल में डाल दिए जाते है।

Pegasus मानवाधिकार हनन का प्रभावी टूल पर महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन (Rona Wilson) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या का आरोप मढ़कर न केवल उन्हें पिछले तीन वर्षों से जेल में बंद रखा गया है, बल्लि बाहर निकले की राह में भी लगातार बैरियर क्रिएट जा रहे हैं। अब यह खबर आई है कि गिरफ्तारी से तीन महीने पहले से उनके फोन की जासूसी पेगासस द्वारा की जा रही थी।

रोना विल्सन के वकीलों द्वारा एमनेस्टी इन्टरनेशनल के सिक्यूरिटी लैब ( Security Lab of Amnesty International ) को उनके आई-फोन के 2 बैक-अप उपलब्ध कराए गए थे, जिसके गहन फॉरेंसिक विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि जुलाई 2017 और फिर फरवरी-मार्च 2018 में पेगासस की मदद से रोना विल्सन की जासूसी की गई थी। इस जासूसी सॉफ्टवेयर को फोन में 15 एसएमएस द्वारा डाला गया था। इनमें से किसी भी एसएमएस को खोलने पर यह सॉफ्टवेयर स्वयं फ़ोन में इंस्टाल हो सकता था।

इससे पहले पेगासस से जुड़े मुद्दों को उजागर करने वाले फोर्बिडन स्टोरीज के तहत बताया गया था कि उमर खालिद, स्टेन स्वामी, हैनी बाबु, शोमा सेन और रोना विल्सन जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी पेगासस की मदद से की गई है| इससे इतना तो स्पष्ट है कि मोदी सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों की डिजिटल जासूसी ( Digital Spying ) के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यह सब देश में निरंकुशता का एक नया मॉडल का रूप लेता नजर आ रहा है।

भीमा कोरेगांव कांड के नाम पर मोदी सरकार के नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी ने मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में खड़े लोगों, जिसमें बहुत बुजुर्ग और अशक्त लोग भी शामिल हैं, लंबे समय से जेल में डाल रखा है। उन्हें आतंकवादी बताया गया और कहा गया कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या का षड्यंत्र रचा था। रोना विल्सन के लैपटॉप से ई-मेल भी अचानक बरामद कर लिए गए, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के हत्या की साजिश रचने की बात कही गई थी। रोना विल्सन शुरू से ही कह रहे थे कि उन्हें ई-मेल और सम्बंधित फाईलों की जानकारी नहीं है। इसे किसी और ने उनके लैपटॉप में डाला है।

फरवरी में अमेरिका के मेस्सचुस्सेट्स स्थित प्रतिष्ठित डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने जांच के बाद पाया था कि विल्सन के लैपटॉप में 10 फाईलें मैलवेयर द्वारा डाली गईं थीं। इन दस फाईलों में वह बहुचर्चित ई-मेल भी शामिल था, जिसमें एनआईए के मुताबिक प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश बात कही गई थी। वाशिंगटन पोस्ट ने 20 अप्रैल को फिर से इस विषय में समाचार प्रकाशित किया है। Further evidence in case against Indian activists accused of terrorism was planted, new report के अनुसार आर्सेनल कंसल्टिंग ने एनआईए कोर्ट में 27 मार्च को अपनी दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार पहले की 10 फाईलों के अतिरिक्त 22 दूसरे डॉक्यूमेंट भी रोना विल्सन के लैपटॉप में मैलवेयर के माध्यम से डाले गए थे। रिपोर्ट के अनुसार यह काम किसने किया है, इसका पता नहीं चल पाया है। इस रिपोर्ट से यह चिंता तो स्वाभाविक है कि मोदी सरकार अपने विरोधियों का दमन करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ शुरू से ही इस मुकदमे को मोदी सरकार की साजिश बताते रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार मोदी के भारत में विरोध का दायरा संकुचित हो चला है, विरोध करने वाले पत्रकारों, एक्टिविस्टों और आंदोलकारियों को या तो जेल में ठूंस दिया जाता है या फिर तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है।

भीमा कोरेगांव के नाम पर जेल में बंद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज के सबसे पिछड़े वर्ग के बीच काम करने के लिए जाने जाते हैं और सरकार की नीतियों के मुखर विरोधी रहे हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के वकील ने फरवरी में ही आर्सेनल की पहली रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत कर दी थी, पर इसपर सुनवाई अबतक नहीं की गई है।

एनआईए की प्रवक्ता जया रॉय के अनुसार एनआईए को अपनी जांच में मैलवेयर से समन्धित कोई जानकारी नहीं मिली है। किसी प्राइवेट कंपनी की जांच के आधार पर हम फिर से जांच नहीं करेंगे। दूसरी तरफ वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी तरफ से पहली रिपोर्ट को मैलवेयर और डिजिटल फोरेंसिक के तीन अमेरिकी विशेषज्ञों और दोनों रिपोर्ट की जांच एक अलग विशेषज्ञ से कराई और हरेक विशेषज्ञ ने इसे सही माना।

इजराइल द्वारा निर्मित बहुचर्चित पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर (Pegasus spy software) को काली सूचि (blacklisted) में डाल दिया है। लगभग सात महीने पहले फ्रांस की एक संस्था, फॉरबिडेन स्टोरीज (Forbidden Stories) के अंतर्गत दुनियाभर के पत्रकारों के एक दल (a consortium of journalists) ने खुलासा किया था कि इजराइल की कंपनी एनएसओ ( NSO ) द्वारा विकसित पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के माध्यम से दुनियाभर में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं और अनेक सरकारों की जासूसी की जा रही है।

इस खबर के बाद अमेरिका के वाणिज्य विभाग (Commerce Department of USA) ने एक जांच शुरू की थी। हाल में ही इस जांच का परिणाम सामने आया है जिसके अनुसार यह सॉफ्टवेयर अमेरिका की विदेश नीति के खिलाफ है। इससे अमेरिका की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसके बाद अमेरिका के बाईडेन प्रशासन ने इसे केवल अपने देश के नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों के मानवाधिकार के लिए खतरा (dangerous for Human Rights) बताया है।

काली सूची में डालने का असर यह होगा कि अब अमेरिका और इसके सहयोगी देशों में पेगासस को बेचा नहीं जा सकेगा। इसके नाम पर कोई भी उपकरण और सामग्री अमेरिका के किसी कंपनी से नहीं खरीदी जा सकेगी। इसके बाद से एनएसओ की वित्तीय स्थिति बहुत बदतर हो चली है। दूसरी तरफ तमाम सरकारों और एप्पल कंपनी की तरफ से दुनियाभर में इसपर मुकदमे दायर किए गए हैं। संभव है कि कंपनी पेगासस की इकाई को हमेशा के लिए बंद कर दे।

अमेरिका ने तो पेगासस को खुले तौर पर मानवाधिकार के लिए खतरा बताया है। फ्रांस समेत अनेक देशों में इसके उपयोग पर गहन जांच की जा रही है। वहीं, हमारे देश में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) के बार-बार पूछने के बाद भी सरकार ने आजतक पेगासस पर कोई जवाब नहीं दिया है। यह भी नहीं बताया है कि सरकार ने इसे खरीदा भी है या नहींं। जाहिर है देश में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिज्ञों पर इसके उपयोग की जांच का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सरकार की हरकतों और चुप्पी से इतना तो स्पष्ट है कि इसे सरकार ने गुप-चुप तरीके से खरीदा और प्रमुख विरोधियों की जासूसी की। यह, अब मोदी जी की हाल की विदेश यात्रा से भी स्पष्ट होता है।

स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर (Glasgow city on Scotland) में जलवायु परिवर्तन की बैठक (COP 26) के दौरान प्रधानमंत्री मोदी अपनी आदत के अनुरूप बहुत सारे वैश्विक नेताओं के गले पड़े, जिसमें इजराइल के प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) भी शामिल थे। इन दोनों नेताओं की यह पहली औपचारिक मुलाक़ात थी। इजराइल के पिछले प्रधानमंत्री नेतन्याहू तो मोदी जी के घोषित मित्र थे और उनके कार्यकाल में मोदी जी इजराइल यात्रा पर गए थे और कहा यही जाता है कि तभी पेगासस सॉफ्टवेयर भारत के पास आया था। अब समस्या यह है कि जब पेगासस के बारे में सारी जानकारी मोदी सरकार छुपाना चाहती है। इसलिए इजराइल सरकार के गले पड़ना और उन्हें भारत आने का न्योता देना भी जरूरी है। यही हो भी रहा है। पेगासस के सौदे के राज केवल भारत और इजराइल के पास हैं। भारत सरकार कभी कुछ नहीं बताएगी। यानि राज को राज रहने देने के लिए इजराइल प्रधानमंत्री से विशेष मित्रता निभानी ही पड़ेगी।

इस दौर में हमारा देश मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में अतुलनीय है। यहां तक कि चीन और रूस भी हमारे तुलना में बहुत पीछे छूट गए हैं। यहां मानवाधिकार कार्यकर्ता सबसे पहले आतंकवादी, माओवादी और देशद्रोही बता कर बिना किसी आरोप या सबूत के ही जेल में डाल दिए जाते हैं। मीडिया और सोशल मीडिया उन्हें तरह-तरह से अपराधी करार देने की साजिश रचता है। फिर पुलिस और जांच एजेंसिया। उनके विरुद्ध आरोपों का आविष्कार फेक विडियो, फेक सीडी, फेक फोनकॉल्स या फिर लैपटॉप में अपनी तरफ से कुछ डाक्यूमेंट्स डाल कर करती हैं। फिर सालों-साल सुनवाई में लगते हैं। इनमें से कुछ आरोपी तो बिना सुनवाई के ही जेल में बंद रहते दम तोड़ देते हैं, शेष अनेक वर्ष बाद सबूतों के अभाव में बरी हो जाते हैं। न्यू इंडिया में ऐसी लम्बी फेहरिस्त है।

- Article written by Mahendra Pandey

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