अंधविश्वास : सर्पदंश की शिकार तीन बच्चियों को अस्पताल ने मृत बताया, परिजन 'जिंदा' कराने झारखंड से ओडिशा ले गए

जब परिजनों ने डाॅक्टरों के पास जाने की कोशिश की तो मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करने एंबुलेंस नहीं बुलाया जा सका, इसके बाद वे अंधविश्वास के फेर में पड़ गए और बच्चियों की मौत हो गई...

Update: 2020-10-20 05:34 GMT

बच्चियों का उपचार करने के प्रयास का दृश्य।

जनज्वार। अंधविश्वास की जड़ों के हमारे समाज में गहरा होने की तीन मुख्य वजह अशिक्षा, साधनों का अभाव व गरीबी हैं। लोग के पास शिक्षा के कारण सही सूचनाएं नहीं होतीं और पैसों के अभाव में वे उचित इलाज नहीं करा पाते, ऐसे में बाबाओं के करिश्मे पर भरोसा कर बैठते हैं। झारखंड के सिमडेगा जिले में रात में सर्पदंश की शिकार हुई तीन बच्चियों के उपचार के लिए पहले ओझा-गुणी व झाड़-फूंक का सहारा लिया गया और जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो डाॅक्टरों ने तीन बच्चियों को मृत घोषित कर दिया।

इसके बाद भी बच्चियों के परिजन यह मानने को तैयार नहीं हुए कि अब उनकी बच्चियों जीवित नहीं हो सकती हैं और वे प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद झारखंड के सिमडेगा जिले से सटे ओडिशा के राजगांगपुर उन्हें जीवित कराने के लिए ले गए। पुलिस ने इससे पहले बच्चियों के घर वालों को यह समझाने का प्रयास किया कि इससे कुछ नहीं होगा, लेकिन वे नहीं माने और अंततः उन्हें उनकी जिद के सामने मनाने का प्रयास छोड़ना पड़ा।

सिमडेगा के ठेठईटांगर की ताराबोगा पंचायत के कांदाबेड़ा गांव के निवासी सहाय लकड़ा के घर में रविवार को नावाखानी पर्व मनाया जा रहा था। इस पर्व में शामिल होने के लिए एक अन्य परिवार की बच्ची एडलिन एक्का भी आयी थी। रात में जब सहाय लकड़ा की दो बेटियां हर्षिता लकड़ा व अंकिता लकड़ा व एडलिन एक्का सो रही थीं, तो तीनों को जहरीले सांप ने डंस लिया। सर्पदंश की शिकार होने पर तीनों बच्चियां जग गईं और घरवालों को जानकारी दी। इसके बाद सहिया को इसकी सूचना दी गई लेकिन मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की वजह से जल्दी एंबुलेंस का भी प्रबंध नहीं हो सका, ताकि उन्हें अस्पताल ले जाया जा सके।

इसके बाद परिजन गांव में उनकी झाड़फूंक कराने लगे। लेकिन, कोई लाभ नहीं हुआ। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची और उन्हें रेफरल अस्पताल ले जाने के लिए राजी किया, जहां डाॅक्टरों ने तीनों को मृत घोषित कर दिया। इस सूचना से गांव में मातम पसर गया। इसके बाद भी परिजनों को यह भरोसा रहा कि वे जीवित हो जाएंगी और इसी उम्मीद में वे उन्हें लेकर ओडिशा राजगांगपुर झाड़-फूंक व ओझा-गुणाी करवाने निकल गए। 

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