रोकनी है भुखमरी तो मनरेगा के दिन बढ़ाये मोदी सरकार : नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी
अर्थशास्त्री बनर्जी ने कहा कि गरीबों के हाथ में सीधा पैसा देना एक अच्छा आइडिया साबित हो सकता है। सरकार को मनरेगा के तहत रोजगार सुनश्चित करने पर काम करना चाहिए...
जनज्वार डेस्क। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने मनरेगा योजना के तहत दिन बढ़ाने की बात कही है। बता दें कि कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। पहले से ही गरीबी रेखा से नीचे या थोड़ा ऊपर रह रहे परिवारों की तो मुश्किलें और बढ़ गयी हैं।
बनर्जी ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'गरीबों के हाथ में सीधा पैसा देना एक अच्छा आइडिया साबित हो सकता है। सरकार को मनरेगा के तहत रोजगार सुनश्चित करने पर काम करना चाहिए। इसे 100 से बढ़ाकर 150 करना चाहिए।' राजीव कुमार का कहना है कि गरीब पैसा बचत करते हैं, खर्च नहीं करते हैं, इससे डिमांड नहीं बढ़ती है, इसपर बनर्जी ने कहा कि 'अगर आप गरीब को बताएंगे कि उसे इतनी ही मदद मिलेगी, तो वो मिला हुआ पैसा बचाएगा ही, इसलिए मैं उनमें भरोसा जगाने और मनरेगा की बात कर रहा हूं।'
अर्थशास्त्री ने कहा, 'महामारी के बाद जो लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं, वो लोग दरअसल इसके पहले गरीबी रेखा से कुछ ही ऊपर थे। ये कोई अच्छी बात नहीं है, लेकिन उनको वापस उस जगह पर लाने के लिए थोड़ी ही मदद की जरूरत होगी। मेरे हिसाब से असली सवाल अर्थव्यवस्था में सुधार का है। अगर ऐसे सेक्टर जहां गैर कुशल मजदूर काम करते हैं, जैसे- होटल, मैन्युफैक्चरिंग और कन्स्ट्रक्शन वगैरह, उन सेक्टरों में सुधार किया जाए तो चीजें जल्दी सुधर सकती हैं।'
उन्होंने आगे बताया कि अमेरिका में बेरोजगारों को हर हफ्ते 600 डॉलर मिलता है। फ्रांस में अपनी नौकरी खो चुके लोगों को सरकार मदद दे रही है। उन्होंने कहा कि 'यूरोपीय सेंट्रल बैंक को बहुत रुढ़िवादी माना जाता है, लेकिन उन्होंने भी जो हो सकता है वो किया। उन्होंने नए नोट छापकर बाजार में डाले।' भारत के बड़े बैंकरों में शामिल उदय कोटक ने भी पिछले हफ्ते इकॉनमी को सपोर्ट करने के लिए करेंसी छापने का सुझाव दिया था।
बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने बीते माह एक स्टडी में बताया था कि महामारी के चलते पिछले साल लगभग 230 मिलियन यानी 23 करोड़ लोग गरीब हो गए, जिसमें सबसे ज्यादा युवा और महिलाएं प्रभावित हुईं। दूसरी लहर से चीजें और खराब हो सकती हैं। पिछले साल मार्च में लगे लॉकडाउन के चलते लगभग 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई, जिनमें से 15 फीसदी लोग साल खत्म होते-होते भी नई नौकरी नहीं ढूंढ पाए थे।