Indian Economy : दिवालिया घोषित कंपनियों से 5 साल में सिर्फ एक तिहाई रिकवरी हुई, क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट में खुलासा

Indian Economy : क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने बुधवार को कहा कि पांच साल पहले दिवालिया संहिता लागू होने के बाद से दिवालिया घोषित होने वाली कंपनियों के सिर्फ एक-तिहाई वित्तीय दावों की ही वसूली हो पाई है।

Update: 2021-11-03 13:46 GMT

(देश की दिवालिया कंपनियों से 5 साल में महज एक तिहाई रिकवरी हो सकी है)

Indian Economy : भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खराब चल रही है। चालू वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा 5.26 लाख करोड़ अनुमानित हैं। कई बैंकों की आर्थिक स्थिति भी खराब है। इन सबके बीच रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिवालिया घोषित कंपनियों (Bankrupt Companies) से बकाया रिकवरी की हालत पिछले 5 वर्षों में बुरी रही है। आलम यह है कि नया कानून लागू होने के बाद महज एक तिहाई मामलों (Only one third recovery) में ही रिकवरी हो सकी है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) ने बुधवार, 3 नवंबर 2021 को कहा कि पांच साल पहले दिवालिया संहिता लागू होने के बाद से दिवालिया घोषित होने वाली कंपनियों के सिर्फ एक-तिहाई वित्तीय दावों की ही वसूली हो पाई है।   

क्रिसिल के मुताबिक, "पिछले पांच वर्षों में सिर्फ 2.5 लाख करोड़ रुपये की ही वसूली होने से ऋणशोधन अक्षमता एवं (IBC Act) दिवाला संहिता (आईबीसी) के तहत चलाई जाने वाली समाधान प्रक्रिया पर अधिक जोर देने की जरूरत है, ताकि इसे ज्यादा कारगर बनाया जा सके।"

न्यूज़ एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि रेटिंग एजेंसी ने यह माना है कि यह कानून लागू होने के बाद से हालात कर्जदारों (Debtors) के बजाय ऋणदाताओं (Creditors) के अनुकूल हुए हैं।

क्रिसिल ने बयान में कहा, "आंकड़ों पर करीबी निगाह डालने पर पता चलता है कि वसूली या रिकवरी की दर (Recovery rate of bankrupt companies) और समाधान में लगने वाले समय में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है। यह संहिता को लगातार मजबूत बनाने और समग्र पारिस्थितिकी को स्थिरता देने के लिहाज से बेहद जरूरी है।"

रेटिंग एजेंसी का यह बयान इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि बड़े मूल्य के बकाया राशि वाले मामलों में करीब पांच प्रतिशत की ही वसूली होने से चिंताएं बढ़ी हैं। दरअसल, शुरुआती दौर में बकाये की वसूली दर कहीं ज्यादा थी।

क्रिसिल का मानना है कि आईबीसी कानून लागू करने के पीछे के दो अहम उद्देश्य- रिकवरी को अधिकतम करना और समयबद्ध समाधान को पूरा करने में नतीजा मिलाजुला ही रहा है। 

क्रिसिल ने कहा, "सिर्फ कुछ बड़े मामलों में ही ज्यादा वसूली हो पाई है। अगर हम कर्ज समाधान मूल्य के लिहाज से शीर्ष 15 मामलों को अलग कर दें तो बाकी 396 मामलों में वसूली दर 18 प्रतिशत रही है।" 

इसके अलावा समाधान में लगने वाला औसत समय भी 419 दिन रहा है जबकि संहिता में इसके लिए अधिकतम 330 दिन की समयसीमा तय है। अभी तक जिन मामलों का समाधान नहीं हो पाया है उनमें से 75 प्रतिशत 270 दिन से ज्यादा समय से लंबित हैं। 

क्रिसिल के निदेशक नितेश जैन (CRISIL Director Nitesh Jain) ने कहा, "वसूली दर कम रहने और समाधान में ज्यादा समय लगने के अलावा एक बड़ी चुनौती परिसमापन के लिए जा रहे मामलों की बड़ी संख्या भी है।"

उन्होंने आंकड़े बताते हुए कहा, "30 जून, 2021 तक स्वीकृत 4,541 मामलों में से करीब एक-तिहाई परिसमापन की स्थिति तक पहुंचे थे और रिकवरी दर सिर्फ पांच प्रतिशत थी।" 

हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई है कि ऐसे करीब तीन-चौथाई मामलों के बीमार या निष्क्रिय कंपनियों से संबंधित होने से आने वाले समय में वसूली दर और समाधान के समय दोनों में सुधार आएगा।

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