Start-up : मोदी सरकार के बड़े दावों और वादों के बीच देश क्यों छोड़ रहीं स्टार्टअप कंपनियां
Start-up : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने और वोकल फॉर लोकल की बातें लगातार करते हैं लेकिन इन सबके बीच देश के कई बड़े स्टार्टअप्स विदेशी हो गए..
Startups : (जनज्वार)। यूं तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने और वोकल फॉर लोकल (Local for Local) की बातें लगातार करते हैं लेकिन इन सबके बीच देश के कई बड़े स्टार्टअप्स विदेशी हो गए। यानि स्टार्टअप खड़ा तो किया भारत में लेकिन अब उनके मुख्यालय सहित अन्य गतिविधियां विदेशों से संचालित हो रहीं हैं।
हालांकि, दिलचस्प तथ्य यह है कि ऐसी कंपनियां (Start up companies) मुख्यालय और गतिविधियां तो विदेशों से संचालित कर रहीं हैं लेकिन मुख्य बाजार और कार्यक्षेत्र भारत को ही रखा है। इसे ऐसे समझें कि ये कंपनियां अब विदेशी हैं, टैक्स आदि अन्य लाभ विदेशों को दे रहीं हैं लेकिन मुख्य कमाई अब भी भारतीय बाजारों (Indian market) से कर रहीं हैं। अब सरकार के तमाम दावों और वादों के बीच ये कंपनियां देश छोड़कर विदेश क्यों गईं यह अर्थशास्त्रियों और बाजार विश्लेषकों के लिए शोध का विषय हो सकता है।
माना जाता है कि भारत को अपने स्टार्टअप्स पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अहम योगदान देने के लिए गर्व है। हमारे यूनिकार्न (एक अरब डालर से अधिक पूंजी वाले स्टार्टअप्स) हमारे प्रतिस्पर्धियों के लिए ईर्ष्या का कारण हो सकते हैं। लेकिन यह जानकर हमारी खुशी कम रह जाती है कि उनमें से कई अब भारतीय नहीं रहे। इनमें से अधिकांश स्टार्टअप्स हमसे दूर हो गए हैं। अर्थात फ्लिप हो चुके हैं।
ताजा उदाहरण सामने है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दो भारतीय लड़कों ने फ्लिपकार्ट (Flipkart) बनाया, जिसका बाजार मूल्य 20 बिलियन डालर के बराबर हो गया। पहले फ्लिपकार्ट के प्रमोटर (Promoters of Flipkart) भारत से दूर हुए और अपनी कंपनी को सिंगापुर में पंजीकृत कर लिया। बाद में कंपनियों के समूह को वालमार्ट को बेच दिया।
जानें क्या होता है स्टार्टअप :
स्टार्टअप उसे कहते हैं जो एक ऐसा ऑर्गनाइजेशन (Organization) है जिसे एक बड़े बिजनेस मॉडल (Business model) को प्राप्त करने के लिए डिजाइन किया जाता है। ये कंपनीज अक्सर नए बने हुए होते हैं और विकास के फेज में होते हैं जिन्हें दमदार बाजार शोधों की जरुरत होती है।
ये शब्द "स्टार्टअप" इसलिए इतनी ज्यादा लोकप्रिय (popular) हो गयी क्यूंकि जब डॉट कॉम बबल (dot-com bubble) के दोरान बहुत सी नयी dot-com कंपनियां बनी थीं तब लोग उस समय इन कंपनियों को स्टार्टअप कंपनी कहकर भी पुकारते थे। जो धीरे धीरे नए कंपनियों के नाम होने का एक ट्रेंड (became a trend) बन गया।
आसान शब्दों में समझें तो एक स्टार्टअप कंपनी को हम एक छोटे बच्चे (small child) के जैसे भी समझ सकते हैं जिसे आगे बढ़ने में अभी समय है। ये कंपनियां ऐसे उत्पाद या सेवा ऑफर करते हैं जो पहले बाजार में उपलब्ध नहीं थी।
जानें क्या होती है फ्लिपिंग :
यहां फ्लिपिंग (Flipping) का मतलब एक लेनदेन है, जहां एक भारतीय कंपनी एक विदेशी क्षेत्रधिकार में एक अन्य कंपनी को पंजीकृत करती है, जिसे बाद में भारत में सहायक कंपनी की होल्डिंग कंपनी (Bilding Company) बना दी जाती है। भारतीय कंपनियों के लिए सबसे अनुकूल विदेशी क्षेत्रधिकार सिंगापुर, अमेरिका और ब्रिटेन हैं। 'फ्लिप' का एक तरीका शेयर स्वैप है।
इसके तहत भारतीय प्रमोटरों (Indian Promoters) द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय होल्डिंग कंपनी (Multinational Bilding Company) को शामिल करने के बाद घरेलू कंपनी के शेयरधारकों द्वारा रखे गए शेयरों की विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरों के साथ अदला-बदली की जाती है। परिणामस्वरूप घरेलू कंपनी के शेयरधारक विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरधारक बन जाते हैं।
गौरतलब है कि सैकड़ों भारतीय यूनिकार्न (Indian Unicorn) या तो फ्लिप हो गए हैं या विदेशी हो गए हैं। हालांकि उनमें से अधिकांश का परिचालन यानी कार्य क्षेत्र और प्राथमिक बाजार भी भारत में ही है। लगभग सभी ने भारतीय संसाधनों (मानव, पूंजीगत संपत्ति, सरकारी सहायता आदि) का उपयोग करके अपनी बौद्धिक संपत्ति (आइपी) विकसित की है।