Climate Impact : लैंडफिल क्षेत्रों से मीथेन का अनुमान से अधिक उत्सर्जन, दिल्ली और मुंबई विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा प्रभावित
Climate Impact : पूरी दुनिया तापमान बृद्धि के घातक प्रभावों से जूझ रही है पर हालत यह है कि जिन ग्रीनहाउस गैसों के वायुमंडल में उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, उन गैसों के वायुमंडल में मिलने वाली मात्रा का सटीक आकलन अब तक हमारे पास नहीं है...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
पूरी दुनिया तापमान बृद्धि के घातक प्रभावों से जूझ रही है, पर हालत यह है कि जिन ग्रीनहाउस गैसों के वायुमंडल में उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। उन गैसों के वायुमंडल में मिलने वाली मात्रा का सटीक आकलन अब तक हमारे पास नहीं है। गैसों के वायुमंडल में उत्सर्जन की मात्रा मापने के लिए जब भी कोई नई और पहले से बेहतर तकनीक वैज्ञानिकों के सामने आती है, तभी पता चलता है कि पहले के आकलनों की तुलना में वास्तविक उत्सर्जन बहुत अधिक है। पिछले कुछ वर्षों से किसी भी गैस के उत्सर्जन का आकलन सॅटॅलाइट द्वारा प्राप्त हाई-रेसोल्यूशन तस्वीरों के माध्यम से किया जाने लगा है। इस तकनीक की खासियत यह है कि इससे कोई भी वैज्ञानिक संस्थान दुनिया के किसी भी कोने द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा का सटीक आकलन कर सकता है। अब तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के सभी आंकड़े सम्बंधित सरकारें अपनी सुविधा से प्रकाशित करती थीं, पर इस नई तकनीक से कोई भी वैज्ञानिक संस्थान इन सरकारी आंकड़ों की अपने स्तर पर जांच कर सकता है।
हाल में ही एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि भारत समेत दुनियाभर में लैंडफिल से मीथेन गैस के उत्सर्जन के आंकड़े वास्तविक उत्सर्जन की तुलना में आधे से एक-तिहाई तक ही सरकारों द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इस अध्ययन को नीदरलैंड के इंस्टिट्यूट ओर स्पेस रिसर्च के वैज्ञानिक जोंनेस मासक्केर्स की अगुवाई में किया गया है और साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के लिए भारत से दिल्ली और मुंबई, पाकिस्तान से लाहौर और अर्जेंटीना के ब्युनेस आयर्स का चयन किया गया। सॅटॅलाइट की तस्वीरों से इन शहरों के ऐसे स्थानों की पहचान की गयी, जहां से वायुमंडल में भारी मात्रा में मीथेन लगातार मिलता रहता है। इसके बाद इन चित्रों को एनलार्ज कर वहां के भू-उपयोग की पहचान की गयी। लगातार अत्यधिक मीथेन का उत्सर्जन करने वाले सभी क्षेत्र लैंडफिल थे।
मीथेन का वायुमंडल में उत्सर्जन कार्बनिक कचरे के अपघटन के दौरान होता है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस उद्योग और कृषि क्षेत्र के बाद वायुमंडल में मीथेन उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्त्रोत कचरे का अपघटन ही है। कार्बन डाइऑक्साइड के बाद मीथेन ही सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, कुल ग्रीनहाउस गैसों में इसका योगदान 11 प्रतिशत है। हालां कि कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इसका उत्सर्जन कम है और वायुमंडल में यह 10 वर्ष ही रहती है – पर पृथ्वी को गर्म करने की इसकी क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस दौर में पृथ्वी जितनी गर्म हो रही है, उसमें 25 प्रतिशत योगदान अकेले मीथेन का है। हालां कि शहर के कुल क्षेत्र की तुलना में लैंडफिल क्षेत्र लगभग नगण्य रहता है, पर इनसे मीथेन का उत्सर्जन अत्यधिक रहता है। इस अध्ययन के अनुसार अब तक सरकारों द्वारा मीथेन के उत्सर्जन के प्रस्तुत आंकड़ों की तुलना में इन शहरों से 1.4 से 2.6 गुना अधिक उत्सर्जन होता है, और इसका मुख्य स्त्रोत लैंडफिल क्षेत्र हैं।
जोंनेस मासक्केर्स के अनुसार सॅटॅलाइट द्वारा प्राप्त चित्रों और जानकारियों की सहायता से मीथेन के उत्सर्जन का परिमापन पहली बार किया गया है, पर अब इस तरह के अध्ययन व्यापक स्तर पर किये जाने लगे हैं। उन्होंने कहा है कि इस अध्ययन के परिणाम के बाद इन देशों की सरकारों को मीथेन उत्सर्जन पर लगाम लगाने की योजना बनानी चाहिए। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार मीथेन उत्सर्जन के सन्दर्भ में दुनिया में चीन सबसे आगे है और दूसरे स्थान पर भारत है। वर्ष 2021 में ग्लासगो में तापमान बृद्धि नियंत्रित कने से सम्बंधित आयोजित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन के दौरान सभी देशों द्वारा वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कटौती करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते की पहल की गयी थी, जिसपर 104 देशों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर भी किये, पर चीन और भारत दोनों ने इस समझौते से अपने को अलग रखा।
इस अध्ययन के अनुसार लैंडफिल से मीथेन का उत्सर्जन लाखों गाड़ियों के उत्सर्जन के बराबर होता है। अर्जेंटीना के ब्युनेस आयर्स के लैंडफिल से प्रति घंटे 28 टन मीथेन का उत्सर्जन होता है, इसका तापमान बृद्धि पर प्रभाव उतना ही होता है जितना 15 लाख गाड़ियों के उत्सर्जन से होता है। दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल से 3 टन प्रति घंटा, लाहौर से 6 टन प्रति घंटा और मुंबई से 10 टन प्रति घंटा मीथेन का उत्सर्जन होता है। इतना प्रदूषण डेढ़ लाख से 5 लाख गाड़ियों के उत्सर्जन से होता है।
लैंडफिल से मीथेन के उत्सर्जन को नियंत्रित करना अपेक्षाकृत आसान है। यह दहनशील गैस है, इसलिए इसे वायुमंडल में नियंत्रित तरीके से जलाया जा सकता है। इसके जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती है, यह प्रमुख ग्रीनहाउस गैस तो है, पर इसकी तापमान बृद्धि की क्षमता मीथेन की तुलना में 30 गुना कम है। दूसरा तरीका, इसे एकत्रित कर पाइपलाइन के सहारे घरों में पहुंचाने का है, जहां इसका इंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।