बढ़ती नौकरियों के सारे दावे निकले झूठे, NSO सर्वे में बेरोजगारी बढ़कर 2.4 % से हुई 10.3%

एनएसओ के सर्वे के अनुसार, अक्टूबर-दिसम्बर 2020 में भारत के शहरी क्षेत्र में सभी उम्र के लोगों का श्रम बल (Labour Force) भागीदारी दर 37.3% रहा, जो 2019 के इसी तिमाही में 37.2% था....

Update: 2021-09-10 10:47 GMT

(अक्टूबर-दिसम्बर 2020 के हुए सर्वे में 43,693 परिवारों के कुल 1,71,553 लोगों ने हिस्सा लिया।)

दिल्ली, जनज्वार। कोरोना के तीसरी लहर के कयासों के बीच राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office) ने बेरोजगारी दर के आंकड़े जारी कर दिए हैं। एनएसओ (NSO) के श्रम बल के सर्वे के अनुसार, देश में अक्टूबर-दिसम्बर 2020 में बेरोजगारी दर बढ़कर 10.3 फीसदी हो गई है। एक साल पहले यानी अक्टूबर-दिसम्बर 2019 में यह आंकड़ा 7.9 फीसदी था। वर्ष 2019 के तुलना में 2020 के अंत तक बेरोजगारी दर में 2.4 फीसदी दर्ज की गई। इन आंकड़ों से साफ है कि देश में अब ज्यादा लोगों के पास करने को कोई काम नहीं है।

एनएसओ (National Statistical Office) के सर्वे के अनुसार, अक्टूबर-दिसम्बर 2020 में भारत के शहरी क्षेत्र में सभी उम्र के लोगों का श्रम बल भागीदारी दर 37.3% रहा, जो 2019 के इसी तिमाही में 37.2% था। पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था में भागीदारी करने वाले श्रम बल के लोगों के प्रतिशत में भी ज्यादा कुछ खास बढ़ोतरी नहीं हुई।

श्रम बल को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है या तो काम कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं। श्रम बल भागीदारी दर देश की कुल आबादी में श्रम बल का प्रतिशत है। इसी के साथ बेरोजगारी दर की गणना श्रम बल से ऐसे लोगों को विभाजित करके किया जाता है जो किसी कारण बेरोजगार हैं।

जुलाई-सितंबर 2020 के मुकाबले लोग कम बेरोजगार हुए

हालांकि, एनएसओ के ही सर्वेक्षण से ये भी पता चलता है कि जुलाई-सितंबर 2020 तिमाही में बेरोजगारी दर का आंकड़ा 13.3 फीसदी था, अक्टूबर-दिसम्बर 2020 में इसमें 3 प्रतिशत ते गिरावट के साथ यह आंकड़ा 10.3 फीसदी हुआ। यानि, कोरोना के दूसरे लहर से लगी पाबंदियां हटने के बाद बेरोजगारों के दर में गिरावट हुई। उम्मीद जताई रही है कि यह गिरावट कोरोना के कारण लगी पाबंदियां हटने की वजह से हुआ। कोरोना के दूसरी लहर के जाने के बाद बाजार खुलां साथ ही त्योहारी सीजन में लागों को रोजगार के नए अवसर मिला।

क्या है एनएसओ का श्रम बल सर्वेक्षण

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा साल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की शुरूआत गई थी। इस सर्वेश्रण की मदद से हर तीन महीने के अंतराल पर देश की बेरोजगारी दर, कामगार-आबादी अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति के बारे में अनुमान लगाया जाता है।

हर तिमाही पर होने वाले इस सर्वे में शहरी इलाकों में रहने वाले परिवारों से एक निश्चित सैंपल जुटाया जाता हैं और एनएसओ द्वारा निर्धारित सभी मानकों पर रिपोर्ट तैयार किए जाते हैं। अक्टूबर-दिसम्बर 2020 के हुए सर्वे में 43,693 परिवारों के कुल 1,71,553 लोगों ने हिस्सा लिया।

बेरोजगारी के मुद्दे पर कटघरे में केन्द्र की मोदी सरकार

एनएसओ द्वारा रिपोर्ट जारी करने के बाद केन्द्र सरकार के दावे एक फिर खोखले नजर आते हैं। अक्टूबर-दिसम्बर 2020 का यह रिपोर्ट उस वक्त के हालात बयां कर रहे हैं जब केन्द्र सरकार बार-बार लोगों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रही थी कि वित्त वर्ष के तिसरी तिमाही अक्टूबर-दिसम्बर में अर्थव्यवस्था अपने पुराने ढर्रे पर लौटेगी। हालांकि कई रेटिंग एजेंसियों ने 2020 के सितंबर में ही सरकार को सचेत करते हुए कहा था कि आने वाले महिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था निगेटिव ग्रोथ के तरफ जा अग्रसर है।

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एनएसओ द्वारा बेरोजगारी दर में गिरावट के आंकड़े जारी करने के बाद विपक्ष ने केन्द्र सरकार पर तीखे हमले किए हैं। देश की सबसे बड़ी विपक्षीय पार्टी कांग्रेस ने बीजेपी को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरा।

सांसद और कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्वीटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी और #Unemplyoment का इस्तेमाल कर लिखा कि, "देश का 'विकास' करके एक 'आत्मनिर्भर' अंधेर नगरी बना दी।"

5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में हो सकता है बड़ा मुद्दा

लगातार बढ़ रहे बेरोजगारी और महंगाई के कारण समय-समय पर युवाओं में काफी आक्रोश देखने को मिलता है। विपक्ष पहले से ही मंहगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर बीजेपी पर हमलावर है। 2022 में हो रहे 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव में भी बेरोजगारी का मुद्दा अहम रोल निभा सकता है। देखना दिलचस्प होगा की कैंन्द्र में बैठी बीजेपी सरकार अपने दलीलों से युवा वोटरों को लुभा पाती है या नहीं।

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