कर्नाटक में देवदासी कुप्रथा आज भी जारी, विदेशी गैर सरकारी संस्था की स्टडी- राज्य में हैं 90 हजार से ज्यादा देवदासियां

देवदासी कुप्रथा धार्मिक परंपरा से जुड़ी है। जानकारी के मुताबिक कुडलिगी में जब किसी लड़की को देवदासी प्रथा में डाला जाता है तो इसकी शुरुआत मारम्मा मंदिर में पूजा-पाठ, अनुष्ठान और देवदासी लड़की के द्वारा प्रस्तुत नृत्य व गीत से होती है....

Update: 2021-08-27 13:40 GMT

(देवदासी कुप्रथा धार्मिक परंपरा से जुड़ी है)

जनज्वार। इक्कीसवीं सदी में देश के कुछ हिस्सों में देवदासी कुप्रथा अब भी देखने को मिल रही है। भास्कर में प्रकाशित मनोरमा सिंह अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं,  इस साल फरवरी के माह में कर्नाटक की एक 22 वर्षीय युवती ने देवदासी बनने से बचने के लिए देवदासी निर्मूलन केंद्र से मदद मांगी थी। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया तो उसे रेस्क्यू कर लिया गया।

युवती रुद्रम्मा (बदला हुआ नाम) कर्नाटक के विजयनगर जिले के कुडलिगी कस्बे की रहने वाली हैं। वह बताती हैं कि भले ही वो इस कुप्रथा का हिस्सा बनने से बच गईं हैं लेकिन उसके पारिवारिक बैकग्राउंड के चलते उसके प्रेमी के घरवालों ने शादी करने से इनकार कर दिया। अब वह तनाव से बाहर निकल रही हैं और परिवार का सहयोग करने के लिए मजदूरी कर रही हैं।

रुद्रम्मा बताती हैं कि उन्होंने इस तरह का जीवन कभी नहीं सोचा था। वह पढ़ाई करती थीं। डांस और ड्रामा में रुचि होने की वजह से इस्टीट्यूट में दाखिला लिया था जैसे ही वहां के लोगों को पता चला कि वह एक सेक्स वर्कर परिवार से ताल्लुक रखती हैं तो इंस्टीट्यूट और उसके आसपास के लड़के उसे ताने देने लगे। इसलिए सबकुछ छूट गया। रुद्रम्मा के मुताबिक उम्र के साथ ही सामाजिक विभाजन भी दिखने लगता है। यह सामाजिक भेदभाव खत्म होना चाहिए।

वहीं रुद्रम्मा की मां कहती हैं कि शादी से बचने के लिए रुद्रम्मा ने झूठ का सहारा लिया था। रुद्रम्मा ने पुलिस को बताया कि देवदासी बनने के लिए उसकी मां और परिवार की तरफ से दबाव डाला जा रहा है। बाद में उसकी मां ने लिखित में आश्वासन दिया था कि वो अपनी बेटी को देवदासी प्रथा से नहीं जोड़ेंगी। 

देवदासी कुप्रथा धार्मिक परंपरा से जुड़ी है। जानकारी के मुताबिक कुडलिगी में जब किसी लड़की को देवदासी प्रथा में डाला जाता है तो इसकी शुरुआत मारम्मा मंदिर में पूजा-पाठ, अनुष्ठान और देवदासी लड़की के द्वारा प्रस्तुत नृत्य व गीत से होती है। मंदिर में समर्पित किए जाने और भगवान से शाद के बाद वो बिना किसी भविष्य के उच्च जातियों के पुरुषों की सेवा के लिए उनकी सेक्स गुलाम या बंधुआ बन जाती है।

हालांकि प्रशासन की ओर से इस तरह की कुप्रथा पर पाबंदी है। बावजूद इसके लोग चोरी-छिपे इस तरह की प्रथाओं को अंजाम दे रहे हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक देवदासी कुप्रथा को लेकर पत्रकार किरण कुमार बलन्नावरन ने बताया कि विजयनगर के हुडलिगे ताल्लुका में 120 गांव आते हैं। इन्हीं गांवों में ही करीब तीन हजार पूर्व देवदासियां हैं। इन सबके पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार की है। 90 प्रतिशत देवदासी अनुसूचित जाति से आती हैं। ब्राह्मण और उच्च जातियों की लड़कियां देवदासी नहीं बनाई जाती।

गोपाल नायक देवदासी बचाव एवं पुनर्वास अभियान से जुड़े हैं। वो बताते हैं कि देवदासी का भाई सामान्य जीवन जीता है और उसकी पत्नी को इस प्रथा में शामिल नहीं किया जाता है। कर्नाटक सरकार ने साल 2018 में सर्वे भी कराया था। कर्नाटक राज्य महिला विकास निगम के आंकड़ों के मुताबिक देवदासियों की संख्या करीब 40 हजार 600 है।

वहीं 2018 में एक विदेशी गैर सरकारी संस्था और कर्नाटक राज्य महिला विश्वविद्यालय की ओर से की गई स्टडी में कर्नाटक में देवदासियों की संख्या 90 हजार पाईं गईं। इसमें भी उत्तरी कर्नाटक की 20% से ज्यादा देवदासी 18 वर्ष से कम उम्र की हैं।

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