भारत में पहली बार एसिड अटैक पीड़िता को 35 लाख के मुआवजे का आदेश, एडवोकेट स्निग्धा तिवारी की पहल पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला

एडवोकेट स्निग्धा तिवारी के दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा निकली दलीलों की रोशनी में आया यह फैसला देश का ऐसा ऐतिहासिक फैसला बताया जा रहा है, जो देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के मामले में एक बड़ी नजीर का काम करेगा...

Update: 2022-12-17 07:42 GMT

एसिड पीड़िता गुलनाज के साथ एडवोकेट स्निग्धा तिवारी

Nainital news : देशभर में एसिड अटैक के बाद अपनी जिंदगी को एक लाश की तरह ढो रही तमाम लड़कियों की जिंदगी में एक रोशनी की उम्मीद बनकर आए एक ऐतिहासिक फैसले की शुरुआत उत्तराखंड उच्च न्यायालय से शुक्रवार 16 दिसंबर को तब हुई जब एक एसिड अटैक पीड़िता को हाई कोर्ट ने 35 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का निर्णय दिया।

एडवोकेट स्निग्धा तिवारी के दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा निकली दलीलों की रोशनी में आया यह फैसला देश का ऐसा ऐतिहासिक फैसला बताया जा रहा है, जो देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के मामले में एक बड़ी नजीर का काम करेगा। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद स्निग्धा तिवारी को देशभर से बधाईयों के संदेश प्राप्त हो रहे हैं।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय की ओर से शुक्रवार 16 दिसंबर को देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के लिए नजीर बनने वाले आए इस फैसले की पृष्ठभूमि में उधमसिंहनगर जिले के जसपुर क्षेत्र के सरफराज नाम के एक मजदूर की बेटी गुलनाज खान थी। साल 2014 के नवम्बर की वह 29 तारीख थी जब 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली नाबालिग गुलनाज पर फरहान उर्फ आशु नाम के एक दरिंदे ने अपने एकतरफा प्रेम में असफल रहने के बाद गुलनाज को सबक सिखाने के उद्देश्य से उस पर एसिड अटैक किया था।

इस एसिड अटैक में गुलनाज साथ फीसदी से भी ज्यादा जल गई थी। उसका दाहिना कान पूरी तरह चला गया था और दूसरे कान की 50 प्रतिशत सुनने की क्षमता भी चली गई थी। गुलनाज के चेहरे, छाती और हाथ सहित शरीर के ऊपरी हिस्से में ऐसे गंभीर जलन की चोटें आई थी, जिन्हें मेडिकल की भाषा में थर्ड डिग्री बर्न का दर्जा दिया जाता है।

एसिड अटैक की इस आरोपी को साल 2016 के 14 मार्च को दस साल की सजा के साथ ही बीस हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अपराधी को मिली सजा से गुलनाज के जख्म नहीं भर पाए थे। बड़ा सवाल यह था कि गुलनाज़ के साथ हुए इस जघन्य अपराध की प्रतिपूर्ति क्या राज्य सरकार के द्वारा हो सकती है, जो उनकी सुरक्षा और एक उनके इज्जत से जीने के अधिकार को बनाए रखने में अक्षम रहा?

कटोचने वाले इसी सवाल के साथ गुलनाज खान साल 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय की चौखट पर एक माकूल जवाब की तलाश में दस्तक देती है, जिसके कानूनी पहलुओं को समझने के साथ उसकी इस राह में उसे उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रही युवा अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी का मार्गदर्शन मिलता है। मामला कोर्ट में चला तो अपनी जिम्मेदारी से बचने वाली गैरजिम्मेदार सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कोर्ट में पेश हुए सरकारी पक्ष ने दलील दी कि "उनको हर चीज का प्रमाण एक अलग फोरम पर देना चाहिए माननीय उच्च न्यायालय में सीधे रिट याचिका नहीं करनी चाहिए।" इतना ही नहीं, सरकारी पक्ष ने कोर्ट में यह तक कह डाला कि "एक ऐसे प्रकरण में लाभ देने से सभी लोग ऐसी प्रतिपूर्ति चाहेंगे।"

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सरकारी पक्ष के इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस बयान पर एडवोकेट स्निग्धा तिवारी ने भरी कोर्ट में सरकारी पक्ष को आईना दिखाते हुए कहा कि "कैसे एक एसिड अटैक पीड़िता के मामले में उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा, जबकि राजनीतिक मामलों में सरकार करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से लुटा देती है।" घटना के बाद एसिड अटैक पीड़िता की जिंदगी की तमाम मुश्किलों की चर्चा करते हुए स्निग्धा ने यह भी बताया गया कि "एक पीड़िता की इज्जत और पूरी जिंदगी भर जिस तरीके से उसको इस साए में रहना पड़ेगा उसकी प्रतिपूर्ति के रूप में न्यायालय को पीड़िता के पक्ष में कोई सकारात्मक आदेश पारित करना चाहिए।

अधिवक्ता स्निग्धा के मानवीयता से जुड़े अकाट्य तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की एकल पीठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की अदालत ने पीड़िता को सरकार द्वारा 35 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया। इसके साथ ही गुलनाज के चल रहे उपचार में अतिरिक्त जो भी चिकित्सा का हर्जा खर्चा और उनकी सर्जरी पर व्यय होगा वह सब भी राज्य सरकार के पैसे से ही किया जाएगा। चाहे वह इलाज किसी अन्य संस्थान में उत्तराखंड राज्य के बाहर दिल्ली या चंडीगढ़ में हो।

यहां गौर करने लायक एक बात यह है कि इसी केस की सुनवाई के दौरान पूर्व में इस याचिका में पारित आदेश की वजह से उत्तराखंड की राज्य सरकार ने वर्ष 2020 में उत्तराखंड मे एसिड अटैक पीड़िताओं के मुआवजे और उनकी इलाज की प्रतिपूर्ति के लिए एक स्कीम निर्गत की थी, जिसमें पूर्व की स्कीम में संशोधन लाया गया था, लेकिन शुक्रवार को हाई कोर्ट के इस आदेश से देश भर की एसिड अटैक जैसे जघन्य अपराधों की पीड़िताओं को न्याय के साथ ही गरिमापूर्ण जीवन जीने की उम्मीद की झलक दिखती है।

यहां इस बात का उल्लेख कर दे कि शुक्रवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट का जो ऐतिहासिक फैसला पीड़िता की अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी के अकाट्य तर्कों व दमदार पैरवी की वजह से आ पाया है, वह उत्तराखंड के जाने माने राज्य निर्माण आंदोलनकारी, पूर्व पत्रकार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी की पुत्री हैं। जनवादी परिवार में परवरिश प्राप्त स्निग्धा वर्तमान में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करती हैं। पारिवारिक संस्कारों के दम पर मुख्य तौर पर उनका विषय कमजोर तबकों की प्रभावी पैरवी ही है। दलितों, आदिवासियों, महिलाओं के अतिरिक्त थर्ड जेंडर के अधिकारों के प्रति जागरूकता अभियानों का हिस्सा बनने वाली स्निग्धा अभी पिछले दिनों जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मिश्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भी भारत की ओर से शामिल रही थीं।

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