खंडवा में वन विभाग के अधिकारियों पर 8 लोगों को उठाकर ले जाने का आरोप, कई घर तोड़ खेती की तबाह
जागृति आदिवासी दलित संस्थान की माधुरी कहती हैं, वन विभाग के अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ बगैर किसी नोटिस के आय़े और वन क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों के घरों को तोड़ डाला, उनके सामान-अनाज की बर्बादी की गयी...
खंडवा, जनज्वार। मध्य प्रदेश के खंडवा में वन भूमि को लेकर वन विभाग और आदिवासी आमने-सामने हैं। रोहिणी वन परिक्षेत्र में अतिक्रमण हटाने गए पुलिस और वन विभाग के अमले को आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ा।
पुलिस का आरोप है कि वनभूमि पर जबरन अतिक्रमण करने वाले वनवासियों ने कार्रवाई का विरोध करते हुए उनके खिलाफ नारेबाजी की और उन पर पथराव भी किया। पुलिस की तरफ से ही आई जानकारी के मुताबिक इस कार्रवाई में लगभग 90 टप्पर तोड़े गए। पुलिस और वन विभाग का लगभग 400 से भी ज्यादा लोगों का अमला आदिवासियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आया था।
प्रशासन का आरोप है कि वन विकास निगम खंडवा के रोहिणी परिक्षेत्र में कोरोना लॉकडाउन के दौरान आदिवासियों ने अतिक्रमण कर लिया था। उन्होंने यहां के पेड़ों को काटकर खेती करनी शुरू कर दी थी और साथ ही अपने रहने के लिए कई टप्पर भी बना लिये थे। प्रशासन का आरोप यह भी है कि आदिवासियों ने 90 एकड़ जमीन पर लगे सावन के पेड़ों को काट दिया था, जिसकी जानकारी लगने के बाद आज शनिवार 10 जुलाई को पुलिस और वन विभाग भारी पुलिस बल और स्टाफ के साथ रोहिणी वन परिक्षेत्र में पहुंचा था और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के मुताबिक जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर ग्राम सालई, अत्तर व रोहिणी से लगे जंगलों में करीब 250 एकड़ जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने का दावा वन विभाग द्वारा किया गया। वन विभाग का आरोप है कि सालई-रोहिणी के जंगल की 250 एकड़ जमीन पर जब उनकी टीम अतिक्रमण हटाने पहुंची तो ग्रामीणों द्वारा पथराव किया गया। टीम ने इस दौरान 90 मकानों को तोड़ा और 3 लोगों की गिरफ्तारी की बात दैनिक भास्कर द्वारा भी अपनी रिपोर्ट में लिखी गयी है।
वहीं गांव के लोगों और जागृति आदिवासी दलित संस्थान नाम के संगठन का आरोप है कि वन विभाग के अधिकारी कार्रवाई के नाम पर हमारे संगठन के एक युवा कार्यकर्ता समेत 8 लोगों को उठाकर अपने साथ ले गये हैं। इन लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है और न ही प्रशासन की ओऱ से इनकी कोई मदद की जा रही है।
इस पूरे मामले को लेकर जागृति आदिवासी दलित संस्थान की सदस्य माधुरी बेन बताती हैं, वन विभाग द्वारा अतिक्रमण का आरोप लगाया जाना सरासर गलत है। ये लोग वन अधिकार कानून के तहत उस जमीन के दावेदार हैं, और कानून के तहत जब तक दावे का निराकरण नहीं होता, आप उन्हें हटा नहीं सकते हैं।'
आदिवासियों के घर तोड़ने और खेतों को नष्ट किये जाने की बात कहते हुए माधुरी बेन जनज्वार से हुई बातचीत में कहती हैं, बगैर नोटिस के इस तरह की कार्रवाई अत्याचार कही जायेगी। साथ ही इस मामले के हाईकोर्ट में पेंडिंग होने पर वन विभाग द्वारा इस तरह का कदम उठाया जाना गैरकानूनी है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर आदिवासियों को उठाकर ले जाने से लोगों में भारी गुस्सा और दहशत दोनों है।
जागृति आदिवासी दलित संस्थान की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक रोहिणी वन परिक्षेत्र से अतिक्रमण हटाने को लेकर यह पूरी कार्रवाई की गयी। वन विभाग के अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ बगैर किसी नोटिस के आय़े और वन क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों के घरों को तोड़ डाला। उनके सामान, अनाज की बर्बादी की गयी।
पीड़ित आदिवासियों का कहना है कि कार्रवाई के दौरान वन विभाग ने भारी पुलिस बल के साथ न सिर्फ कई घरों में तोड़फोड़ की, बल्कि गांव के चार आदिवासियों को भी अपने साथ ले गये। इनमें एक 12 साल की बच्ची पूजा भी शामिल है। पूजा के अलावा उसकी मां बुधिया, रामलाल और सीका को भी वन विभाग के लोग पुलिस की मौजूदगी में अपने साथ ले गये।
जागृति आदिवासी दलित संस्थान का कहना है कि वन विभाग के अधिकारी बगैर कुछ बताये जब इन 4 आदिवासियों को अपने साथ ले जाने लगे तो इसी दौरान उनके संगठन से जुड़े लोग वहां पहुंचे और इस तरह आदिवासियों का उठाकर ले जाने का विरोध किया।
जागृति संस्थान के नितिन वर्गीस और कुछ कार्यकर्ताओं ने इस तरह आदिवासियों का उठाकर ले जाने की शिकायत जिला वन पदाधिकारी (डीएफओ) से की, जो मौके पर मौजूद थे। लेकिन नितिन वर्गीस और उनक साथियों की बात सुनने के बजाय वन विभाग के अधिकारी उन्हें भी अपने साथ ले गये। उनका फोन भी छीन लिया गया। अब जागृति संस्थान की तरफ से शिकायत आ रही है कि उनके संगठन के नितिन वर्गीस समेत 8 लोगों की कोई खबर नहीं मिल रही है।