Jharkhand News : आदिम जनजाति की दुर्दशा बेहद दयनीय, बुजुर्ग महिला परिवार के साथ शौचालय में रहने के लिए मजबूर
Jharkhand News : बेड़ा सबर टोला में रहने वाली गुरुवारी सबर के लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत 12000 रुपए के सरकारी अनुदान से उसके घर के पीछे शौचालय का निर्माण करवाया गया था, यही शौचालय 3 महीने से गुरुवारी सबर और उसके परिवार का घर बना हुआ है...
Jharkhand News : झारखंड में आदिम जनजाति की दुर्दशा बेहद ही दयनीय है। झारखंड की राजधानी रांची से 120 किलोमीटर दूर पूर्वी सिंहभूम का जिला मुख्यालय जमशेदपुर है। यहां से महज 21-22 किलोमीटर की दूरी पर आदिम जनजाति सबर का एक टोला है। टोला का नाम तामुक बेड़ा सबर टोला है। यहां 11 परिवार रहते हैं। इसी टोले में गुरुवारी सबर अपने बेटे और बहू के साथ 3 महीने से एक शौचालय में रह रही है।
शौचालय में रहता है गुरुवारी सबर का परिवार
प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट के अनुसार दलमा की तराई में स्थित तामुक बेड़ा सबर टोला में रहने वाली गुरुवारी सबर के लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत 12000 रुपए के सरकारी अनुदान से उसके घर के पीछे शौचालय का निर्माण करवाया गया था। यही शौचालय 3 महीने से गुरुवारी सबर और उसके परिवार का घर बना हुआ है। गुरुवारी सबर का बेटा बिपिन सबर अपनी पत्नी के साथ शौचालय में रहता है और उसकी मां गुरुवारी सबर उसके शौचालय के बाहर प्लास्टिक टांग कर जीवन बसर कर रही है।
पैर की चोट का अब तक नहीं हो पाया इलाज
बीते कुछ दिनों पहले काम से गुरुवारी सबर टोला से बाहर सड़क पर गई थी। किसी गाड़ी से ठोकर लगने से उसके पैर में गंभीर चोट आ गई लेकिन अब तक इलाज नहीं हो पाया है, इसलिए वह लंगड़ा कर चलती है। गुरुवारी सबर बड़ी मुश्किल से उठ और बैठ पाती हैं। शौचालय के सामने कुछ दूर पक्की सड़क है। वही गुरुवारी सबर बैठी रहती हैं।
सांप के काटने से हो गई थी पोते की मौत
गुरुवारी सबर के पक्के मकान की छत 3 महीने पहले ढह गई। किस्मत से गुरुवारी सबर और उसके परिवार के सभी लोग तक सुरक्षित बच गए थे लेकिन उसके परिवार की यह खुशी ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई। शौचालय में शरण लेने वाली गुरुवारी सबर के पोते सुकू सबर की सर्पदंश के कारण 1 महीने पहले ही मौत हो गई है। 8 महीने पहले गुरुवारी सबर के पति कंचन सबर की ट्यूबरक्लोसिस (टीवी) से मौत हो चुकी थी।
जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ
बता दें कि आदिवासियों के कल्याण के लिए राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं हैं लेकिन उसका लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा है। 1993 में सरकार ने इनके लिए घर बनवाया था। उसके बाद से इसकी देखरेख किसी ने नहीं की। कभी इसकी मरम्मत भी नहीं करवाई गई थी। ऐसा सिर्फ गुरुवारी सबर के साथ ही नहीं बल्कि इस टोले में जितने भी मकान है, सभी के छत टूट चुके हैं।
जर्जर बिरसा आवास की मरम्मत की कोई योजना नहीं
प्रभात खबर की रिपोर्ट के अनुसार बोड़ाम प्रखंड विकास के पदाधिकारी बीडीओ नाजिया अफरोज ने कहा है कि आदिम जनजाति के 6 परिवारों के आवास के संबंध में संबंधित विभाग को पत्र भेजा गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि जर्जर बिरसा आवास की मरम्मत की सरकार की कोई योजना नहीं है। मकान टूटने पर नया आवास बनवाने की योजना है। साथ ही उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति के 18 वर्ष से पूर्व अधिक आयु के लोगों को पेंशन देने की व्यवस्था है। डेढ़ महीने पूर्व विशेष कैंप लगाया गया था। इस दौरान आदिम जनजाति के विभिन्न जनजातियों को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने के लिए पंचायत सचिव ने उसकी सूची बनाई थी।