नसबंदी के 12 दिन बाद महिला की मौत, ज्वाइंट डायरेक्टर ने किया था गलत ऑपरेशन, पेट में जमा मिला 3 किलो खून
नसबंदी के दो दिन बाद ही निकिता की हालत बिगड़ गई तो आनन-फानन में उसे निजी अस्पताल ले गए। वहां जांच के दौरान पता चला कि ऑपरेशन के दौरान खून की नस कटने से लगातार ब्लीडिंग हो रही है....
सागर। अस्पतालों और डॉक्टरों की लापरवाही के मामले लगातार सुर्खियों में छाये रहते हैं। आये दिन डॉक्टरों की लापरवाहियों के कारण लोग अपनी जान गंवाते हैं। अब ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश में सामने आया है। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में नसबंदी का ऑपरेशन करवाने के 12 दिन बाद पीड़ित महिला की मौत हो गयी। ताज्जुब बात यह है कि यह नसबंदी खुद ज्वाइंट डायरेक्टर ने की थी। डॉक्टर की लापरवाही के कारण नसबंदी के दौरान कोई नस कट गयी थी, जिसकी तरफ डॉक्टरों ने कोई ध्यान नहीं दिया। मृत महिला के पेट से जमा हुआ 3 किलो खून एक निजी अस्पताल में निकाला गया।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज (बीएमसी) में नसबंदी का ऑपरेशन कराने वाली बरियाघाट की निकिता जैन की आज मंगलवार 9 फरवरी की दोपहर को मौत हो गई। निकिता के पति का आरोप है कि उसकी पत्नी की मौत गलत ऑपरेशन के कारण हुई है। 28 जनवरी निकिता का नसबंदी ऑपरेशन हुआ था, जिसके 2 दिन बाद से ही उसकी हालत बिगड़ने लगी थी।
निकिता की ज्यादा हालत बिगड़ने लगी तो परिजन उसे एक निजी अस्पताल ले गए, वहां महिला के पेट में जमा करीब 3 लीटर खून निकाला गया। निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने निकिता के परिजनों को बताया कि नसबंदी के दौरान कोई नस कट गई थी। इससे पेट में ब्लीडिंग होती रही। महिला का ऑपरेशन भोपाल से आईं स्वास्थ्य विभाग की जॉइंट डायरेक्टर डॉ. शशि ठाकुर ने किया था।
जानकारी के मुताबिक मृतक महिला का पति सौरभ जैन सेल्समैन है। उसका आरोप है कि आंगनबाड़ी सहायिका सरिता चौरसिया ने उन्हें नसबंदी के लिए प्रेरित किया था, जिसके बाद वह 12 दिन पहले बीएमसी में पत्नी का ऑपरेशन कराने गए। नसबंदी के दो दिन बाद ही निकिता की हालत बिगड़ गई तो आनन-फानन में उसे निजी अस्पताल ले गए। वहां जांच के दौरान पता चला कि ऑपरेशन के दौरान खून की नस कटने से लगातार ब्लीडिंग हो रही है। यहां से भी निकिता को दूसरे निजी अस्पताल के लिए रैफर कर दिया।
दूसरे निजी अस्पताल के चिकित्सक डॉ. संतोष राय ने 31 जनवरी को निकिता का ऑपरेशन कर ब्लीडिंग तो रोक दी, मगर तब तक उसके शरीर में मात्र 3 प्रतिशत हीमोग्लोबिन बचा था। डॉक्टरों ने परिजनों को जिला अस्पताल के ब्लड बैंक से खून, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स लाने को कहा, लेकिन जिला अस्पताल ने बिना डोनर और पैसे के खून नहीं दिया।
पहले ही सरकारी अस्पताल की लापरवाहियों का खामियाजा भुगत रही निकिता के साथ फिर एक बार जिला अस्पताल ने अमानवीयता दिखायी। निकिता के पति के मुताबिक हर दिन डोनर ढूंढ-ढूंढकर 6 यूनिट रक्त, 10 यूनिट प्लाज्मा और 5 प्लेट्स लगाए गए, मगर इसके बाद भी निकिता का हीमोग्लोबिन नहीं बढ़ा। बाद में पता चला कि निकिता का शरीर बाहरी ब्लड नहीं ले रहा है। इस जानकारी के बाद निकिता को बीएमसी के आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया, मगर तब तक उसकी हालत काफी खराब हो चुकी थी और उसे नहीं बचाया जा सकता।
निकिता का पति सौरभ कहता है, मेरा 3 साल का बेटा और 6 माह की बेटी, जो हर दिन अपनी मां के लिए रोते हैं। सौरभ का कहना है कि डॉक्टरों ने उसे बताया था कि कि निकिता के पेट में ब्लीडिंग तो रुक गई, लेकिन इंफेक्शन होने से निकिता डीआईसी का शिकार हो गई। फिर उसे खून देने पर भी हीमोग्लोबिन नहीं बढ़ रहा था।
इस मामले में निकिता की नसबंदी करने वाली डॉ. शशि ठाकुर कहती हैं, 'मैं 50 हजार के करीब ऑपरेशन कर चुकी हूं, अब तक किसी में कोई दिक्कत नहीं आई। परिजन आरोप लगा रहे हैं तो उसमें मैं क्या कर सकती हूं? यदि नस कटती तो मरीज एक दिन भी जीवित नहीं रहता, जबकि मरीज के परिजनों उसे पांच दिन बाद प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया। फिर गंभीर होने पर बीएमसी लेकर गए। उसकी मौत का कोई और कारण होगा।'
इस मामले में बीएमसी के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनीष जैन कहते हैं, डिस्मेंटेड इंट्रा वेस्कुलर कोएग्युलेशन (डीआईसी) एक तरह का इंफेक्शन है, जो डिलीवरी के बाद महिलाओं में हार्मोंस की गड़बड़ी या इंफेक्शन के कारण होता है। इसमें खून में थक्के जमने लगते हैं। बाहरी रक्त या प्लाज्मा मिलने के बाद भी शरीर में लाल और सफेद रक्त कणिकाएं ठहर नहीं पाती और नष्ट हो जाती है, जिस कारण मरीज की मौत भी हो जाती है।