स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी : अपने कॉरपोरेट आकाओं को तुष्ट करने के लिए स्वतंत्र आवाज़ों को खामोश करती मोदी सरकार

कई बीमारियों से जूझ रहे 83 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार होने वाले सबसे उम्रदराज शख्स हैं, उनसे इस सिलसिले में पहले भी कई बार पूछताछ की जा चुकी है...

Update: 2020-10-10 17:17 GMT

 वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

जनज्वार। भीमा कोरेगांव मामले में जिस तरह चुन-चुन कर मोदी सरकार बड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और वकीलों को फंसा रही है उस सूची में नया नाम फादर स्टैन स्वामी का जुड़ गया है।

अपने कारपोरेट प्रभुओं को जल-जंगल-जमीन लूटने की छूट देने के लिए मोदी सरकार खास तौर पर ऐसे कार्यकर्ताओं को झूठे मामले बनाकर जेल में सड़ने के लिए बंद कर रही है जो देश के वंचितों, दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं। वह अपने ऐसे विरोधियों को निपटाने के लिए सीबीआई, एनआईए आदि संस्थाओं का इस्तेमाल निजी सेना के तौर पर कर रही है और अदालतों को भी दमन की इस प्रक्रिया में साझेदार बना रही है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पुणे पुलिस से जांच का जिम्मा अपने हाथ में लेने के लगभग दस महीने बाद आठ लोगों के खिलाफ शुक्रवार को एल्गार परिषद मामले में अपना पहला आरोप पत्र दायर किया। एजेंसी ने दावा किया कि 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में दलितों के खिलाफ हिंसा से संबंधित साजिश एक "अच्छी तरह से चाक-चौबंद रणनीति" का हिस्सा थी और यह पूरे देश में और उसके बाहर तक फैली थी।

मुंबई में विशेष अदालत के समक्ष दायर 10,000 से अधिक पृष्ठों के पूरक आरोप पत्र में जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगाए गए है, उनके नाम हैं--झारखंड स्थित आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी, जिन्हें गुरुवार 8 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था; प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे, कार्यकर्ता गौतम नवलखा, जिन्हें एजेंसी ने 14 अप्रैल को गिरफ्तार किया था; 28 जुलाई को दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को गिरफ्तार किया गया था; सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के सदस्य ज्योति जगताप, सागर गोरखे और रमेश गाइचोर को पिछले महीने गिरफ्तार किया गया; और फरार आरोपी मिलिंद तेलतुम्बडे, जो कथित तौर पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के एक शीर्ष संचालक हैं। दो आरोप पत्र को पहले पुणे पुलिस ने नौ अन्य आरोपियों के खिलाफ दायर किया था।

गुरुवार 8 अक्टूबर की देर रात गिरफ्तार किए गए 83 वर्षीय रांची निवासी स्वामी को शुक्रवार 9 अक्टूबर को दोपहर 1.30 बजे विशेष अदालत में पेश किया गया। एनआईए ने उनकी हिरासत की मांग नहीं की। स्वामी को 23 अक्टूबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इस केस में अब तक कई बड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और वकीलों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जो अपने ट्रायल का इंतजार कर रहे हैं। कई बीमारियों से जूझ रहे स्टैन स्वामी इस केस में गिरफ्तार होने वाले सबसे उम्रदराज शख्स हैं। उनसे इस सिलसिले में पहले भी कई बार पूछताछ की जा चुकी है।

एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में दावा किया है कि स्वामी माओवादी संगठन की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे और फंड प्राप्त कर रहे थे। एजेंसी ने दावा किया कि उसके कब्जे से प्रचार सामग्री और साहित्य सहित दस्तावेज पाए गए। अपनी गिरफ्तारी से दो दिन पहले स्वामी के एक बयान में कहा गया था कि एनआईए ने माओवादी ताकतों से उनका संबंध स्थापित करने के लिए हथकंडे अपनाए थे, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि "ऐसी सामग्री चुपके से मेरे कंप्यूटर में डाल दी गई हैं"।

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एनआईए ने अपने आरोप पत्र में यह भी दावा किया कि स्वामी सताए गए कैदियों की एकजुटता समिति (पीपीएससी) के संयोजक थे। इसे सीपीआई (माओवादी) का फ्रंटल संगठन कहा गया। स्वामी ने अपने बयान में कहा था कि नक्सल बताकर हजारों आदिवासियों की अंधाधुंध गिरफ्तारी को चुनौती देने वाले उनके काम को पसंद नहीं किया गया था, यही कारण है कि उन्हें फंसाया जा रहा था।

एनआईए ने दावा किया कि विभिन्न फ्रंटल संगठनों की भूमिका भी सामने आई थी। इसने कबीर कला मंच को एक ऐसा ही संगठन बताया और दावा किया कि इसके कवि और गायक जगताप, गोरखे और गाइचोर प्रशिक्षित कैडर थे जो एल्गार परिषद के आयोजन के लिए बैठकों में भाग लेते थे।

एनआईए ने दावा किया कि बाबू माओवादी क्षेत्रों में विदेशी पत्रकारों की "यात्राओं के आयोजन में सहायक" था और दोषी अभियुक्त जी एन साईबाबा की रिहाई के लिए प्रयास करने में सहायक था और अन्य प्रतिबंधित समूहों के साथ संबंध रखता था।

एजेंसी ने दावा किया कि तेलतुंबडे भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान के संयोजकों में से एक थे और 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद के आयोजन के लिए मौजूद थे और नवलखा को "सरकार के खिलाफ बुद्धिजीवियों को एकजुट करने" का काम सौंपा गया था। यह दावा किया गया कि वह कुछ तथ्य-खोज समितियों में शामिल थे और जांच के दौरान आईएसआई के साथ उनके संबंध भी सामने आए।

1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए लाखों दलित पुणे के पास इकट्ठा हुए थे। 1818 में पेशवाओं के खिलाफ युद्ध में ब्रिटिश सेना की जीत हुई थी, जिसमें दलित समुदाय से बड़े पैमाने पर सैनिकों को शामिल किया गया था। उस दिन लोगों के वाहनों के तोड़फोड़ की गई और एकत्रित लोगों के साथ मारपीट की गई।

एक प्रत्यक्षदर्शी के बयान के आधार पर 2 जनवरी को पिंपरी पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कथित रूप से उकसाने के लिए हिंदुत्व के नेता मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े का नाम लिया गया था।

दूसरी तरफ 8 जनवरी को पुणे पुलिस ने एक और प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसमें दावा किया गया था कि हिंसा 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवार वाडा में एल्गार परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के कारण हुई थी।

भीमा कोरेगांव मामले में हिंसा फैलाने के आरोप में अब तक सोलह लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका में दो आरोपियों ने कहा है कि इस साल पुणे पुलिस से एनआईए में मामले का स्थानांतरण "साजिश के तहत और राजनीतिक दवाब के कारण" हुआ जब राज्य की महा विकास आघाडी गठबंधन सरकार ने मामले की जांच के लिए एक एस.आई.टी. गठित करने का प्रस्ताव रखा।

इस बीच रांची कैथोलिक चर्च ने एक बयान में कहा, "फादर स्टैन स्वामी को एनआईए ने गुरुवार 8 अक्टूबर की रात उनके आवास से जिस तरह गिरफ्तार किया, वह व्यथित और परेशान करने वाली घटना है।

स्वामी की गिरफ्तारी का विरोध शुरू हो गया है। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने एक ट्वीट कर कहा कि 'फादर स्टैन ने अपनी पूरी जिंदगी आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने में लगाई है। यह मोदी सरकार ऐसे लोगों को चुप करा रही है, क्योंकि इस सरकार के लिए कोल माइन कंपनियों का फायदा आदिवासियों की जिंदगी और रोजगार से ज्यादा जरूरी है।'

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