Rajni Murmu controversy : आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू ने सोहराय पर्व पर ऐसा क्या कह दिया कि झारखंड में मच गया बवाल

Rajni Murmu controversy : एक महिला होने के कारण उत्पीड़न और ऑब्जेक्टिफिकेशन इतने करीब से देखा है कि बचपन से खुद से यही सवाल करती आई हूँ कि 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहूँगी...

Update: 2022-01-19 05:49 GMT

आदिवासी प्रोफेसर रजनी मुर्मू की वह टिप्पणी जिस पर मचा है बवाल और दर्ज हो गयी FIR

Rajni Murmu controversy : झारखण्ड (Jharkhand) के दुमका स्थित एसपी कॉलेज (SP College) में प्रोफेसर रजनी मुर्मू (Professor Rajni Murmu) आजकल विवादों में बनी हुई हैं। विवादों का कारण है आदिवासियों के प्रसिद्ध पर्व सोहराय (sohrai parv) पर की गयी उनकी टिप्पणी। उन्होंने सोहराय पर्व में लड़कियों के साथ बढ़ती अश्लीलता पर सवाल उठाते हुए फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिससे आक्रोशित एसपी कॉलेज के आदिवासी छात्र-छात्राओं ने उनके खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया। इसके बाद छात्रों के लिखित बयान पर दुमका नगर थाना में आईटी एक्ट के तहत प्रो रजनी मुर्मू के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है।

गौरतलब है कि 7 जनवरी को गोड्डा कॉलेज गोड्डा में समाजशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर प्रो.रजनी मुर्मू ने एसपी कॉलेज में मनाए जाने वाले सोहराय को लेकर सोशल मीडिया (social Media) पर पोस्ट लिखी थी।

खुद पर हुई कार्रवाई पर रजनी मुर्मू कहती हैं, 'मैंने जिस मामले में पोस्ट लिख कर लोगों को सच्चाई से वाकिफ कराने की कोशिश की थी, वह अब हल्के भयभीत मोड़ लेने लगा है। यह झूठ होगा यदि मैं कहूँ कि मुझे इसका अंदेशा नहीं था। एक महिला होने के कारण उत्पीड़न और ऑब्जेक्टिफिकेशन इतने करीब से देखा है कि बचपन से खुद से यही सवाल करती आई हूँ कि 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहूँगी?' आपके पास बोलने का अवसर और मंच है और आप सुविधाजनक चुप्पी चुनें या तारीफ के कसीदे पढ़ें, बजाय इसके कि आप बदलाव हेतु सामाजिक समस्याओं की तरफ ध्यान आकृष्ट कराएँ तो आप एक हिपोक्रिट से बढ़ कर और क्या हैं?

Full View

हम जिस समाज में रहते हैं उसका ट्रेंड यही है कि यदि उसकी खामियों और खास कर लड़कियों/औरतों की समस्याओं पर मुखर होकर बात की जाए तो लोग बोलने वाले मुँह पर कैसे भी एक टेप चढ़ा देना चाहते हैं। वह टेप कभी उसके सामाजिक बहिष्कार के रूप में तो कभी आर्थिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है। इसी कड़ी का नवीन उदाहरण है कॉलेज में छात्रों द्वारा मेरे निलंबन की माँग करना।

हर विक्टिम के पास वह मानसिक और आर्थिक सपोर्ट सिस्टम नहीं होता कि वह अपनी कहानी खुले तौर पर साझा कर सके। लड़कियों की बुली होने को लेकर, हाशियाकरण को लेकर, इतनी इनसिक्योरिटीज हैं कि उन पर अपने अनुभव साझा किए जाने का जबरन दबाव नहीं बनाया जा सकता। ऐसे में उनके आगे आने हेतु एक स्वस्थ स्पेस के निर्माण की बजाय छात्र-नेता यह कैसा संदेश देना चाह रहे हैं? क्या कोई पीड़िता विरोध और निरस्त करने के ऐसे माहौल में खुद को अभिव्यक्त करने में कभी सुरक्षित महसूस कर पाएगी?

बोलती महिला तक समाज को कभी भी अच्छी नहीं लगती। सवाल करती, जवाबदेही माँगती महिला पर अंकुश लगाना कोई विस्मय की बात नहीं है। मैंने बहुत सोच-समझ कर, दृढ़ संकल्प हो कर त्योहार के नाम पर होती अभद्रता के विषय में लिखने का फैसला लिया था। मुझे हल्का भान इस बात का भी था कि तादाद में लोग मेरी बात नहीं मानेंगे क्योंकि उत्पीड़क को क्लीन-चिट देने की आदत जो लग गई है। लेकिन यह याद रखा जाए कि प्रमाण की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का प्रमाण नहीं होता।

लोग कह रहे हैं मैं सोहराय जैसे पुनीत त्योहार की छवि खराब करने की कोशिश कर रही हूँ। जबकि मैं अपने समुदाय और उसके पर्वों की हितैषी के रूप में उसे और सुरक्षित व मजबूत बनाने की माँग कर रही हूँ। इस विषय में छात्र नेताओं का बात न करना और तिलमिला जाना यह बताता है कि वे अपने त्योहार का सम्मान नहीं करते और उसमें व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन नहीं चाहते। कोई भी व्यवस्था आदर्श नहीं होती और उसमें हमेशा बेहतरी की गुंजाइश होती है।

कई लोग मेरे पक्ष में भी लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, मुझे मेसेज कर रहे हैं। मुझे खुशी है कि मैंने उन्हें वह प्रेरणा और स्पेस प्रदान किया कि जहाँ से वे भी अपनी दुविधाओं के बारे में बात कर सकें। मुझे गाहे-बगाहे तनिक डर भी लगता है पर आपका साथ मुझे बल देता है। जो भी यह पोस्ट पढ़ रहे हों उनसे अपील है कि सच के लिए और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों। एक महिला की नौकरी छीनने की साजिश के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। दिनकर की पंक्ति के माध्यम से यही कहूँगी कि "जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध"। अब मेरी जीत और हार सिर्फ मेरी नहीं होगी।

गौरतलब है कि रजनी मुर्मू ने फेसबुक पर पहले टिप्पणी की थी, 'संताल परगना में संतालों का सबसे बड़ा पर्व सोहराय बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है... जिसमें हर गांव अपनी सुविधानुसार 5 से 15 जनवरी के बीच अपना दिन तय करते हैं... ये त्योहार लगातार 5 दिनों तक चलता है..... इस त्यौहार की सबसे बड़ी खासियत स्त्री और पुरूषों का सामुहिक नृत्य होता है.... इस नृत्य में गाँव के लगभग सभी लोग शामिल होते हैं.... मां बाप से साथ बच्चे मिलकर नाचते हैं...

पर जब से संताल शहरों में बसने लगे तो यहाँ भी लोगों ने एक दिवसीय सोहराय मनाना आरंभ किया...खासकर के सोहराय मनाने की जिम्मेदारी सरकारी कॉलेज में पढने वाले बच्चों ने उठाई... मैंने दो बार एसपी कॉलेज दुमका का सोहराय अटेंड किया है.... जहाँ मैं देख रही थी कि लड़के शालिनता से नृत्य करने के बजाय लड़कियों के सामने बत्तमीजी से ' सोगोय' करते हैं... सोगोय करते करते लड़कियों के इतने करीब आ जाते हैं कि लड़कियों के लिए नाचना बहुत मुश्किल हो जाता है.. सुनने को तो ये भी आता है कि अंधेरा हो जाने के बाद सिनियर लड़के कॉलेज में नयी आई लड़कियों को झाड़ियों की तरफ जबरजस्ती खींच कर ले जाते हैं... और आयोजक मंडल इन सब बातों को नजरअंदाज कर चलते हैं...'

Tags:    

Similar News