उन्नाव काण्ड : दो मृत और एक जिंदा बची दलित लड़कियां बनती जा रहीं रहस्य, क्या सरकार को खुद पर नहीं भरोसा
उन्नाव कांड में मरने वाली 2 दलित लड़कियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 100 से 80 ग्राम प्वाईजन खाने की बात कही जा रही है, बिसरा प्रिजर्व रखने के साथ स्लाईड भी बनाई गई है, कहा जा रहा है कि 6 घंटे पहले उन्हें जहर दिया गया था...
जनज्वार, उन्नाव। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में जानवरों के लिए हरा चारा लेने गईं तीन किशोरियां पास के खेत में संदिग्ध हालत में पड़ी मिलीं थीं। तीनों के देर शाम घर ना पहुँचने पर परिजनो ने तलाश शुरू की तो तीनों अचेत अवस्था में पड़ी मिलीं। सकते में आए परिजन तीनों को अस्पताल लेकर पहुँचे, जहां दो लड़कियों जिनमें 16 साल की कोमल और 13 वर्षीय काजल को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। तीसरी रोशनी की हालत गंभीर होने के चलते उसे कानपुर के प्राइवेट व बेहद महंगे अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया है। रोशनी की उम्र 17 वर्ष है।
दो किशोरियों काजल और कोमल की आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मौत जहर से हुई है, जबकि थाना असोहा में रिपोर्ट हत्या की दर्ज की गई है। यह बात कमाल है जो यूपी पुलिस के खाते में जाती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक शरीर में जहर फैल जाने से मौत की बात सामने आई है।
मेडिकल सूत्रों की मानें तो मौत से 6 घण्टे पहले जहर दिया गया है। रिपोर्ट में 100 से 80 ग्राम प्वाईजन खाने की बात कही जा रही है। बिसरा प्रिजर्व रखने के साथ स्लाईड भी बनाई गई है। मामले में पुलिस ने अज्ञात पर हत्या की धारा 302 और लाश छिपाने की कोशिश में 201 का मुकदमा दर्ज किया है। पहला सवाल यहां यही है कि इन तीनों नाबालिग दलित गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली किशोरियों की हत्या करने कि कोशिश किसने और क्यों की? यह अबूझ पहेली बनकर रह गया है। इससे पहले सरकार के नुमाईंदों ने कुछ लोकल नेताओं को गांव में ही घुसने ना देने का प्रयास किया, तो कुछ मीडिया के लोग भी कहते बताते पाए गए कि मीडिया पर भी छिटपुट सरकारी पाबंदी है।
लोग आवाज उठाने लगे हैं कि एकमात्र बची रोशनी को देश के सबसे बेहतर और महंगे अस्पताल में इलाज की सुविधा दिलाई जानी चाहिए। उसे जल्द से जल्द ठीक सकुशल घर जाना चाहिए, खुद के साथ कुछ किया आम सहमति से तो आत्मग्लानि करनी चाहिए। और यदि यह किसी की साजिश रही (जैसा पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है) तो उसे 'निर्भया' बनकर कटघरे के पीछे भिजवाने का साहस रखना चाहिए। लेकिन इस बीच सरकार और उनके नुमाईंदों पर यह सवाल बनता है कि क्या उनको अपने सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं था? अगर नहीं था तो देश की करोड़ों-करोड़ जनता को सरकारी अस्पतालों का लालीपाप किस भरोसे पर दिया जाता है। सरकारी अस्पतालों में क्यों इतनी सुविधाएं नहीं हैं। अगर नहीं तो सरकार इन सरकारी हजारों डॉक्टरों को किस काम की तनख्वाह देती है। अगर ये सब कोई बात नहीं तो फिर रहस्य बनीं लड़कियों का क्या कोई क्लू छुपाना था?
जनज्वार के उन्नाव सहयोगी ने गाँव में एक आम नागरिक की हैसियत से घूम-पता करके पाया कि स्थानीय निवासियों का इस बारे में एकदम अलग ही कहना है। उनका कहना है कि लड़कियों का मर्डर हुआ है।
ग्रामीणों ने जनज्वार सहयोगी को ऑफ रिकार्ड यह भी बताया कि बहुत ऊपर से दबाव है, मामले को फौरन रफा दफा करने-करवाने का। गांव वालों को यह तक पता है कि जिस लड़की का इलाज अस्पताल में चल रहा है उसका खर्चा भी अब सरकारी पैसे से होगा। उनका मानना है कि परिवार दलित और बेहद गरीब है, अगर यह हादसा होता तो सरकारी अस्पताल में जाकर उन्हें खुद पैसे खर्च करने पड़ते। हालांकि जनज्वार स्थानीय निवासियों की इन बातों की पुष्टि नहीं करता, क्योंकि प्रदेश में अंधविश्वास और हवाबाजी वाली अटकलें लगती ही रहती हैं।
इस मामले को लेकर ऐपवा की लखनऊ संयोजिका मीना सिंह ने जनज्वार को दिए एक बयान में कहा कि 'उत्तर प्रदेश में महिलाओं व दलितों पर हिंसा कहीं से थमती नहीं दिख रही। हाथरस के बाद अब उन्नाव में एक बार फिर हाथरस को दोहराने की साजिश की जा रही है। एक नहीं तीन-तीन दलित लड़कियां जिनके हाथ पैर उन्हीं के दुपट्टे से बंधे हुए खेत में पाई गयीं, जिसमें से दो मृत व एक बेहोशी की हालत में थी। जिंदगी और मौत से जूझ रहीं बेहोश लड़की का इलाज चल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के रामराज्य, उत्तर प्रदेश में एक तरफ प्रशासन इतना चुस्त और दुरुस्त है कि किसी आंदोलन की घोषणा करने मात्र से ही गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो जाता है। आंदोलनकारियों के घरों पर बीच रात पुलिस का पहरा बैठा दिया जाता है।'
उन्होंने आगे कहा, 'उत्तर प्रदेश में लगातार दलितों व महिलाओं पर जुल्म दर जुल्म जारी है और उत्तर प्रदेश महिला हिंसा का गढ़ बन गया है। यह वही उन्नाव है, जहाँ कुछ साल पहले भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर न सिर्फ चर्चा में आये थे, बल्कि हमारा विधायक निर्दोष है के नारे के साथ रैलियां तक निकाली गईं थी। इन हो रही घटनाओं ने योगी सरकार के मिशन शक्ति की पोल भी पूरी तरह खोलकर रख दी है।'
ऐपवा की तरफ से मीना सिंह ने मांग की है कि घटना की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो और सभी दोषियों को कठोरतम दण्ड दिया जाय।