योगी-मोदी राजसत्ता का संपूर्ण इस्तेमाल कर रहे दलित, आदिवासी, पिछड़ों को शक्ति के स्रोतों से दूर धकेलने के लिए
हिंदुत्ववादी सोच के कारण योगी शूद्रातिशूद्रों को अधिकार देने में राजसत्ता का इस्तेमाल कर ही नहीं सकते, इसका एक बड़ा दृष्टान्त उस गोरखपुर में स्थापित हुआ है, जहां से चलकर वह यूपी की सत्ता पर काबिज हुए हैं. ...
एच.एल. दुसाध की टिप्पणी
2024 के लोकसभा में दलितों को अपने पक्ष में करने लिए देश की राजनीति का दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में बसपा-सपा, कांग्रेस-भाजपा के तरफ से प्रयास शुरू हो चुका है. इसके लिए उनकी ओर से रणनीतियों की घोषणा होने लगी है. इस क्रम में प्रदेश की सत्ता पर काबिज योगी आदित्यनाथ महिलाओं के साथ दलितों से जुड़ने के लिए 17 अक्तूबर से 3 नवम्बर के मध्य 12 रैलियां करने की घोषणा हुई है, जिसकी शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो चुकी है.
योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी के 18 जिलों से आए दलितों को संबोधित करते हुए हापुड़ में कहा कि प्रदेश में एससी/एसटी का आवास छीनने का काम कोई नहीं कर सकता. उन्होंने ऐलान किया कि ऐसे परिवार जिस जमीन पर रह रहे हैं, उसी जमीन का उन्हें पट्टा दिया जायेगा. अगर उनका आवास अरक्षित जमीन पर है तो उन्हें दूसरी जगह पट्टा दिलाया जायेगा. इससे पहले बुलंद शहर में नारी शक्ति वंदन महिला सम्मलेन में सीएम योगी ने कहा कि प्रदेश में नारी सुरक्षा से रामराज की शुरुआत हो गयी है. सुरक्षा में सेंधमारी करने वाले अपराधियों को पाताल से ढूंढ़ लायेंगे. सरकार की प्राथमिकता में किसान, गरीब, नौजवान बताते हुए कहा कि महिलाएं भी अब उसी एजेंडे का हिस्सा बन चुकी हैं. पहले दंगे होते थे. अराजकता के चरम पर थी. बेटियां स्कूल नहीं जा पाती थीं. उसी उत्तर प्रदेश में अब दंगे नहीं होते. अराजकता के लिए कोई जगह नहीं!
अनुसूचित वर्ग सम्मलेन में उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा, '2017 के पहले जो सरकार थी, उसके कारनामे छिपे नहीं हैं. वह दलित महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ने का काम करते थे. हमने हर सरकारी कार्यालय में बाबा साहेब की प्रतिमा की स्थापना करायी. डॉ. भीमराव आंबेडकर का पिछली सरकारों ने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया. डबल इंजन की सरकार हर हाल में सम्मान और सुरक्षा का काम कर रही है.आज प्रधानमंत्री मोदी ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को सम्मान देते हुए उनके सपनों को जमीन पर उतारा है. प्रधानमंत्री मोदी ने बाबा साहेब से जुड़े स्थलों को तीर्थ के रूप में विकसित करने का कार्य भी किया है. अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में ब्रज क्षेत्र के अनुसूचित जाति सम्मलेन में कहा कि कई जातियों के लिए तो पहले कोई सरकारी योजना ही नहीं थी. जिस एससी वर्ग के पूर्वजों ने रामायण लिखी, श्रीमद् भागवत गीता लिखी, संत रविदास ने शक्ति की नई धारा प्रदान की, बाबा साहेब ने संविधान देकर भारत की एकता में जोड़ने का कार्य किया, उस वर्ग के लिए सरकार काम कर रही है. वाल्मीकि जयंती पर हर मंदिर में अखंड रामायण का पाठ कराया गया.
बहरहाल 2024 को ध्यान में रखकर योगी सरकार दलितों को लुभाने का जो नए सिरे से प्रयास कर रही है, उसमें कोई नई बात नहीं है. योगी 2017 से ही दलितों को लुभाने के लिए समरसता भोज आयोजित करने, रैदास वाल्मीकि को हिन्दू धर्म ग्रंथों के रचयिता प्रचारित करने, बाबा साहेब के नाम पर स्मारक और तीर्थस्थल बनाने, संविधान को सम्मान देने इत्यादि जैसे भावनात्मक बातें करते रहे हैं और 2023 में भी घुमाफिराकर वही बातें दोहरा रहे हैं. उन्हें शायद नहीं कि दलित समाज अब ऐसी घिसीपिटी भावनात्मक बातों से बोर होने लगा है. वह जान गया है कि भाजपा सरकार 2014 से सवर्णों के हाथ में शक्ति का सारा स्रोत सौपने तथा शूद्रातिशूद्रों को गुलामों की स्थिति में पहुंचाने के लिए ही संविधान की उपेक्षा कर तरह–तरह की बहुजन विरोधी नीतियाँ बनाती रही हैं.
इसी मकसद से उन लाभजनक सरकारी उपक्रमों को को औने-पौने दामों में बेच रही है, जहां शुद्रातिशुद्रों को आरक्षण मिलता है. उसने अयोग्य सवर्णों को आईएएस जैसे उच्च पदों पर बिठाने के लिए लैटरल इंट्री की शुरुआत की है.सवर्ण हित में ही उसने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के जरिये हर क्षेत्र में 80-85% कब्ज़ा रखने वाले कथित गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण दे दिया है. ऐसे में दलित समुदाय उसको वोट देगा जो शक्ति के समस्त स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक – में संख्यानुपात में हिस्सेदारी देने के वादा करे. वह चाहता है कि जैसे झारखण्ड में 25 करोड़ तक ठेकों में एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षण लागू हुआ है, जिस तरह तमिलनाडु के 36 हजार मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं के लिए आरक्षण लागू हुआ है, वैसे ही पार्टियाँ क्रान्तिकारी बदलाव वाले आर्थिक मुद्दों पर वोट दलितों का वोट मांगे.बहरहाल अब दलितों को सम्मान नहीं, अधिकार चाहिए, यह बात जानते हुए भी योगी शक्ति के स्रोतों में दलितों को वाजिब अधिकार दिलाने के बजाय भावनात्मक बातों में ही बहाकर दलितों का वोट ले लेना चाहते तो हैं तो उसके पीछे ठोस कारण हैं.
दरअसल, योगी चाहकर भी दलितों को शक्ति के स्रोतों में अधिकार दिलाने का वादा कर नहीं सकते, क्योंकि हिन्दू धर्मशास्त्रों में गहरी आस्था के कारण वे दलितों को अधिकार संपन्न करने का वादा कर ही नहीं सकते. ऐसा इसलिए कि हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक हिन्दुओं के भगवान ने शक्ति के स्रोतों (आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) के भोग का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों का हैं: इनके अतिरिक्त बाकी जातियों द्वारा शक्ति का भोग पूरी तरह अधर्म है. इसी सोच के कारण मोदी-योगी राजसत्ता का संपूर्ण इस्तेमाल दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित तबकों को शक्ति के स्रोतों से दूर धकेलने कर रहे हैं.
बहरहाल हिंदुत्ववादी सोच के कारण योगी शूद्रातिशूद्रों को अधिकार देने में राजसत्ता का इस्तेमाल कर ही नहीं सकते, इसका एक बड़ा दृष्टान्त उस गोरखपुर में स्थापित हुआ है, जहां से चलकर वह यूपी की सत्ता पर काबिज हुए हैं. गोरखपुर में आंबेडकर जनमोर्चा के नेतृत्व में दलितों ने भूमि के अधिकार की एक ऐसी शांतिपूर्ण लड़ाई में विजय प्राप्त की है, जो औरों को प्रेरित करते रहेगा!
दलित, पिछड़ा, मुस्लिम, गरीब मज़दूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ ज़मीन देने की मांग को लेकर गोरखपुर के कमिश्नर कार्यालय में दस अक्टूबर को पूरे दिन चले ‘डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन’ के बाद रात को पुलिस ने अंबेडकर जनमोर्चा के मुख्य संयोजक और दलित नेता श्रवण कुमार निराला सहित कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। आंदोलन में वक्ता के बतौर पहुंचे लेखक-पत्रकार सिद्धार्थ रामू और पूर्व डीआईजी व दलित चिंतक एसआर दारापुरी को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
आंबेडकर जन मोर्चा पिछले तीन वर्षों से दलित, पिछड़ा, मुस्लिम गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन दिलाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा था। इसी के तहत 10 अक्टूबर को कमिश्नर कार्यालय पर ‘डेरा डालो, घेरा डालो’ आंदोलन का ऐलान किया गया था। आंदोलन में हजारों लोग आए और कमिश्नर कार्यालय में जमे रहे. महिलाओं की संख्या सर्वाधिक थी। पूरा कमिश्नर कार्यालय परिसर लोगों से भर गया था। पूरे दिन वक्ता इस मुद्दे पर बोलते रहे। शाम को ज्ञापन देने के बाद आंदोलन समाप्त होना था, लेकिन देर शाम तक कोई अधिकारी ज्ञापन लेने नहीं आया तो सभी लोग कमिश्नर कार्यालय में जमे रहे। देर रात अधिकारी कमिश्नर कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन लेकर कार्यवाही का आश्वासन दिए।
ज्ञापन दिए जाने के बाद आंदोलन में शामिल होने आए लोग जब जाने लगे तभी कमिश्नर कार्यालय से ही पुलिस सिद्धार्थ रामू और आंबेडकर जनमोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला के घर पहुंच गई और घर में घुसकर तलाशी ली। इसके बाद जगह-जगह से आन्दोलन में शिरकत करने आए लोगों को गिरफ्तारी का क्रम शुरू हुआ। गिरफ्तार लोगों के खिलाफ सरकारी काम-काज में बाधा डालने, तोड़-फोड़ करने, निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में आईपीसी की धारा 147, 188, 342, 332, 353, 504, 506, दंड विधि संशोधन अधिनियम 1932 की धारा 7, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 की धारा 3 ओर विद्युत अधिनियम 2033 की धारा 138 के तहत केस दर्ज किया गया है। यह F.I.R. कमिश्नर गोरखपुर के नाजिर राजेश कुमार शर्मा द्वारा दर्ज कराई गई है।
तहरीर में कहा गया है:-‘10 अक्टूबर की सुबह 10 बजे कमिश्नर कार्यालय परिसर में श्रवण कुमार निराला, ऋषि कपूर आनंद, सीमा गौतम, राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. रामू सिद्धार्थ, नीलम बौद्ध, सविता बौध, निर्देश सिंह, अयूब अंसारी, दारापुरी, जयभीम प्रकाश, देवी राम, सुधीर कुमार झा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जबरन कार्यालय परिसर में घुस गए और कार्यालय से बिजली का तार जोड़कर बिजली चोरी करते हुए माईक लगाकर जनसभा करने लगे। मना करने पर इन लोगों ने मेरे साथ धक्का मुक्की की जिससे मैं गिर गया। ये लोग कार्यालय में घुस गए और हम लोगों को गालियां देते हुए सरकारी दस्तावेज फाड़ दिए सरकारी फूल के गमलों को तोड़ दिए।'
जबकि आंदोलन के प्रवक्ता के मुताबिक सारा प्रोग्राम प्रशासन की अनुमति लेकर किया गया था और शाम को प्रशासन को ज्ञापन भी दिया गया। कोई हंगामा भी नहीं हुआ इसके बावज़ूद इस तरह की गिरफ़्तारियां यह बताती हैं कि अब सरकार और उसकी एजेंसियां किस तरह संविधान के ख़िलाफ़ काम कर रही हैं। आज देशभर में जन आंदोलनों को कुचला जा रहा है। लेखकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन और गिरफ़्तारियां हो रही हैं। यह घटना भी उसी की एक कड़ी है।
इस घटना पर गौर किया जाय तो साफ़ दिखेगा कि योगी सरकार दलितों को अधिकार देने की मानसिकता से पुष्ट नहीं है. अगर होती तो भूमिहीन दलितों के जायज मांग पर इतना कठोर कदम नहीं उठाती. सूत्रों के मुताबिक डेरा डालो- घेरा डालो आन्दोलन में गिरफ्तार लोग अभी तक रिहा नहीं हुए हैं. ऐसा लगता है हिन्दुत्ववादी योगी इसके जरिये ऐसा सन्देश देना चाहते हैं कि हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा अधिकारशून्य चिन्हित किये वर्ग लोग अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने की हिमाकत न करें!
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)