Air Pollution : अब भी नहीं चेते तो सिर्फ वायु प्रदूषण से होगी 70% मौतें, जानें क्यों?

Air Pollution : भारत में वायु प्रदूषण में बेतहाशा बढ़ोतरी जारी है। गौर करने वाली बात यह है कि बाह्य वायु प्रदूषण ने महामारी का रूप धारण कर लिया है, लेकिन सरकारी एजेंसियां इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं।

Update: 2021-11-06 03:23 GMT

Air Pollution : वायु प्रदूषण से दिल्ली में 10 साल तो लखनऊ में साढ़े 9 साल छोटी हो रही जिंदगी- रिपोर्ट

Air Pollution : जहरीली हवा न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि यह पर्यावरण के लिहाज से ग्लोबल चिंता का विषय भी बन गया है। भारत के लिए यह एक खतरे की घंटी है। इसके बावजूद लोग सबक लेने को तैयार नहीं हैं। राज्य सरकारें तो कान में तेल डालकर सोई हुई हैं। जबकि वायु प्रदुषण बीते 2 दशक में भारत में 17 लाख लोगों को लील चुका है। यानि वायु प्रदूषण महामारी का रूप धारण कर चुका है। इसके बावजूद समय रहते सभी सचेत नहीं हुए तो भारत में 70% मौतें केवल वायु प्रदूषण ( Air Pollution ) से होना तय है।

भारत में सरकार, अदालतें और नागरिक समाज के कुछ प्रबुद्ध लोग जागरूकता का उदाहरण तो पेश करते हैं, लेकिन यह काम केवल दिवाली के समय ही होता है। यही कारण है कि आज भी वायु प्रदूषण को गंभीरता से लेने की सोच सामूहिक स्तर पर विकसित नहीं हो पाई है।

2019 में 17 लाख मौतें सिर्फ वायु प्रदूषण से

लैसेंट ने अपनी प्लेंटरी हेल्थ रिपोर्ट में दावा किया है कि साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण 17 लाख लोगों की मृत्यु हुई। लैसेंट की द इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव नाम की रिपोर्ट भीतरी ( इनडोर ) और बाहरी ( आउटडोर ) स्त्रोतों के आकलन पर आधारित है। यह देश में होने वाली कुल मौतों का 18 फीसदी था। अगर पिछले तीन दशकों ( 1990 -2019 ) की रिपोर्ट से मिलान करें तो घरों में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 64 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन चिंता की बात ये है कि बाह्य प्रदूषण का सबसे ज्यादा नुकसान गरीब जनता का उठाना पड़ रहा है।

एक अध्ययन के मुताबिक बाहरी वायु प्रदूषण से मृत्यु दर की अवधि में 115% की वृद्धि हुई है। 100 फीसदी से ज्यादा मृत्यु दर में वृद्धि के बावजूद देश की सरकारें कान में तेल डाल के सोई हुई है।

वायु प्रदुषण से 12.4 लाख नवजात बच्चों की मौत

2017 जीबीडी रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण से 12.4 लाख बच्चों की मौत हुई थी। सबसे ज्यादा मामले कम आय वाले राज्यों में हुईं। ऐसा इसलिए कि कम आय वाले राज्यों में बच्चों और माताओं में कुपोषण की बड़ी समस्या है। ऐसे में वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा जानलेवा साबित होता है। अगर गरीब जैसे-तैसे कुपोषण से बच भी जाएं तो वायु प्रदूषण की मार को झेल नहीं पाते।

5 राज्यों की भागीदारी 50% से ज्यादा

लैंसेट प्लेंटरी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान समेत 5 राज्य है जहां अकेले 50 फ़ीसदी से ज्यादा मौतें हुई हैं। जीबीडी 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश के हर एक घंटे में पांच वर्ष से कम उम्र वाले 21.7 बच्चे निचले फेफड़े के संक्रमण ( एलआरआई ) के कारण दम तोड़ देते हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान सबसे बड़ा भुक्तभोगी है।

यूपी का हाल सबसे ज्यादा खराब

2019 की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा यानि 3,49,000 लोगों की मौत वायु प्रदूषण से उत्तर प्रदेश में हुई। खास्ताहाल बेबस स्वास्थ सेवाएं और कम आय वाले राज्यों में वायु प्रदुषण के कारण बच्चों मृत्यु दर का आकड़ा सबसे अधिक है। जीबीडी, 2017 के आकड़ों के मुताबिक 2017 में निचले फेफड़ों के संक्रमण के कारण 17.9 फीसदी 1,85,428 बच्चों की मृत्यु हुई।

सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल की अगुवाई में जारी की गई इस रिपोर्ट में सिटीज़ 4 चिल्ड्रन में बच्चों और युवाओं पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के बारे बताया गया है। हर दिन दुनिया के 19 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। 2019 में वायु प्रदूषण के चलते शिशुओं के जन्म के महीने भर के अंदर लगभग 5 लाख मौतें हुई।

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