Delhi High Court : बेटे-बहु का झगड़ा झेलने के लिए मजबूर नहीं है सास-ससुर, शांति के लिए घर से निकालने का है अधिकार- हाई कोर्ट

High Court News : उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है, ससुराल के बुजुर्गों यानी सास-ससुर की ओर से बहू को संयुक्त घर से बेदखल किया जा सकता है ताकि वे शांतिपूर्ण जीवन बिता सकें...

Update: 2022-03-02 15:15 GMT

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Delhi High Court : दिल्ली के उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि ससुराल के बुजुर्गों यानी सास-ससुर की ओर से बहू को संयुक्त घर से बेदखल किया जा सकता है ताकि वे शांतिपूर्ण जीवन बिता सकें। उच्च न्यायालय ने कहा कि सास ससुर को भी शांति से जीवन जीने का अधिकार है।

बहू अपने बुजुर्ग सास ससुर के खिलाफ लड़ रही थी मुकदमा

बता दें कि जस्टिस योगेश खन्ना ने कहा है कि घरेलू अधिनियम की धारा-19 के तहत आवास का अधिकार संयुक्त घर में रहने का एक अपरिहार्य अधिकार नहीं है। खासकर उन मामलों में जहां बहू अपनी सास ससुर के खिलाफ मुकदमा लड़ रही है। न्यायालय ने बहु की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए टिप्पणी की है।

निचली अदालत ने भी बहू के खिलाफ सुनाया था फैसला

बता दें कि निचली अदालत ने बहू को ससुराल के संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं दिया था। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि एक संयुक्त घर के मामले में संबंधित संपत्ति के मालिक पर अपनी बहू को बेदखल करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। साथ ही न्यायालय ने कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो यह बेहतर और उचित होगा कि याचिकाकर्ता (बहू) को उसकी शादी जारी रहने तक कोई वैकल्पिक आवास प्रदान कर दिया जाए।

वरिष्ठ नागरिक को शांति से जीने का अधिकार

बता दें कि न्यायालय ने फैसला सुनते हुए कहा कि इस मामले में प्रतिवादी वरिष्ठ नागरिक हैं और वे शांतिपूर्ण जीवन जीने और बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक विवाद से उपजे कलह से प्रभावित नहीं होने के हकदार हैं। फैसले में न्यायालय ने कहा कि मेरा मानना है कि चूंकि दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव पर सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता के साथ रहना उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए बेहतर होगा कि बहू को रहने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 19(1)(एएफ) के तहत कोई वैकल्पिक आ‍वास मुहैया कराई जाए।

इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच संबंध तनावपूर्ण होने के साथ पति की ओर से भी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी, जो किराये के घर में अलग रहता है। साथ ही उसने संबंधित संपत्ति पर किसी भी तरह का दावा नहीं जताया है। बता दें कि न्यायालय ने इसके साथ बहू की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है।

ससुर के हलफनामे को स्वीकारा गया

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायालय ने ससुर की ओर से दाखिल हलफनामे को स्वीकार कर लिया है कि वह अपने बेटे के साथ बहू के वैवाहिक संबंध जारी रहने तक याचिकाकर्ता को वैकल्पिक आवास मुहैया कराएंगे। बता दें कि ससुर ने 2016 में निचली अदालत के समक्ष इस आधार पर कब्जे के लिए एक मुकदमा दायर किया था कि वह संपत्ति के पूर्ण मालिक हैं और याचिकाकर्ता का पति यानी उनका बेटा किसी अन्य स्थान पर रहता है और वह अपनी बहू को साथ रहने देने का इच्छुक नहीं है। वहीं इस मामले में बहू ने कहा था कि संपत्ति परिवार की संयुक्त पूंजी के अलावा पैतृक संपत्ति की बिक्री से हुई आय से खरीदी गई थी। लिहाजा उसे भी वहां रहने का अधिकार है। बता दें कि निचली अदालत ने बहू की इस मांग को खारिज कर दिया था।

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