Delhi Riots Case : क्यों 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में जेल में बंद उमर खालिद को अदालत से नहीं मिली जमानत?
Delhi Riots Case : जेएनयू के छात्र रहे उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई कतरे हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने आदेश में कहा है कि कहा कि इस बात को मानने के पर्याप्त आधार हैं कि आरोपी उमर खालिद पर लगाए गए आरोप पहली नजर में सही हैं.....
Delhi Riots Case : 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली (Delhi) में हुए दंगों के मामले में एक आरोपित उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत अर्जी (Bail Petition) को कोर्ट ने बीते दिनों खारिज कर दिया था। आपको बता दें कि उमर खालिद को दंगों के मामले में डेढ़ साल पहले गिरफ्तार किया गया था। तब से जेल में ही है। आइए एक नजर डालते हैं कि दिल्ली की कड़कड़डुमा कोर्ट ने किन तथ्यों को आधार बनाकर इस केस में उमर खालिद को जमानत नहीं दी है।
जेएनयू (JNU) के छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई कतरे हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने आदेश में कहा है कि कहा कि इस बात को मानने के पर्याप्त आधार हैं कि आरोपी उमर खालिद पर लगाए गए आरोप पहली नजर में सही हैं। कड़कड़डूमा स्थित कोर्ट (Karkardooma Court) ने इस नतीजे पर पहुंचने के लिए कई संरक्षित गवाहों के बयानों पर भरोसा करते हुए उन्हें अपने फैसले का आधार बताया है। हालांकि कोर्ट ने यह भी माना है इन बयानों में कुछ गड़बड़ियां भी हैं।
आपको बता दें कि मामले में दायर आरोप पत्र और अदालती आदेश में बॉन्ड, सैटर्न, स्मिथ, इको, सिएरा, हीलियम, क्रिप्टन, जॉनी, प्लूटो, सोडियम, रेडियम, गामा, डेल्टा, बीटा, नियॉन, होटल, रोमियो और जूलियट जैसे उपनामों से वास्तविक गवाहों को संरक्षण दिया गया है। कोर्ट के अनुसार वे इन संरक्षित गवाहों के बयानों पर भरोसा करते हैं. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दिल्ली प्रोटेक्ट सपोर्ट ग्रुप, जामिया को-ऑर्डिनेशन कमेटी, मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जामिया और पिंजरा तोड़ जैसे विभिन्न समूहों के व्हाट्सएप चैट डेटा उपलब्ध हैं वे खालिद और उसके सह-आरोपियों के बीच की कड़ी के रूप में दिख रहे हैं।
कोर्ट ने उमर खालिद के मामले में बचाव पक्ष की इस दलील को भी मानने से इनकार कर दिया है कि दंगों के दौरान उमर खालिद दिल्ली था ही नहीं. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा है कि किसी साजिश के मामले में यह जरूरी नहीं है कि सभी आरोपी मौके पर ही मौजूद रहें। ऐसे में कोर्ट ने खालिद केस नंबर 59/2020 के तहत जमानत देने से इनकार कर दिया।
6 मार्च 2020 को दर्ज की गई इस प्राथमिकी में कहा गया था कि कि पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगे जेएनयू के छात्र उमर खालिद और उसके सहयोगियों की ओर से रची गयी गई एक पूर्व नियोजित साजिश थी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उमर खालिद को पहली बार 12 सितंबर 2020 को उसी साल फरवरी में हुए पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के सिलसिले में तलब किया था और उसे अगले दिन जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था. उमर खालिद रविवार 13 सितंबर को दोपहर करीब एक बजे लोधी कॉलोनी स्थित स्पेशल सेल के दफ्तर पहुंचा था। वहीं से रात करीब 11 बजे उसे गिरफ्तार किया गया था।
उमर खालिद पर आतंकवादी कृत्य का भी लगा है आरोप
उमर की जमानत खारिज करने के अपने आदेश में दिल्ली की कड़कड़डुमा कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत एक आतंकवादी कृत्य की परिभाषा पर भी जोर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी पर प्राथमिकी संख्या 59/2020 में सख्त कानून माने जाने वाले यूएपीए की धारा 13, 16, 17 और 18 भी लगायी गयी हैं. ये धाराएं गैरकानूनी गतिविधि, आतंकवादी कृत्य करने, किसी आतंकवादी कृत्य के लिए धन जुटाने और किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने की साजिश रचने के अपराधों से जुड़ी हुई हैं।
न्यायाधीश रावत ने कहा कि इस मामले में आरोप पत्र के अनुसार विघटनकारी चक्का जाम की एक पूर्व नियोजित साजिश रची गयी थी। इसके साथ ही दिल्ली में 23 अलग-अलग स्थानों पर एक पूर्व नियोजित विरोध कार्यक्रम प्रस्तावित था, जिसे चक्का जाम और हिंसा उकसाने के लिए इस्तेमाल करना था ताकि देंगे हों।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि, ऐसे कृत्य भारत देश की एकता और अखंडता के लिए संकट पैदा करते हैं, सांप्रदायिक सद्भाव की भावना से लोगों को विमुख करते हैं। ऐसे कृत्यों से समाज के एक वर्ग को घिरा हुआ महसूस कराकर आतंक पैदा करने की कोशिश की जाती है यह भी एक तरह का आतंकवादी कृत्य है।
आपको बता दें कि इससे पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय ने उमर खालिद के सह आरोपियों– पिंजरा तोड़ संगठन की कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए पिछले जून में जोर देकर कहा था कि भड़काऊ भाषण देना और विरोध करना चाहे वह शांतिपूर्ण विरोध की सीमा पार ही क्यों ना कर जाए यूएपीए के तहत आतंकवादी कृत्य के रूप में माने जाने योग्य नहीं है।
हालांकि, इस आदेश के कुछ ही दिनों के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट ने उस जमानत आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय की ओर से की गयी यूएपीए की व्याख्या को तब तक एक उदाहरण के रूप में नहीं माना जाए जब तक कि सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले की सुनवाई नहीं कर लेता है।
कड़कड़डूमा अदालत ने अपने आदेश में संरक्षित गवाहों द्वारा लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए कहा कि 'साजिश और दंगों के संदर्भ में खालिद की भूमिका स्पष्ट है। इसने कहा कि इन गवाहों के बयानों में आरोपी व्यक्तियों की भूमिका और हिंसा, दंगों, पैसों और हथियारों पर खुली चर्चा का उल्लेख है।
कोर्ट ने बचाव पक्ष के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि संरक्षित गवाहों के बयान या तो झूठे, विरोधाभासी और मनगढ़ंत है या फिर दबाव बनाकर लिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि जमानत के इस स्तर पर सभी गवाहों के बयान उनके फेस वैल्यू पर लिए जाने चाहिए और उनकी सत्यता की जांच मामले में जिरह के समय की जाएगी। कोर्ट ने खालिद के मस्तिष्क के झुकाव पर अभियोजन पक्ष की ओर से पेश उस तर्क पर भी गौर करने से इनकार कर दिया, जो कि 'वेलफेयर आस्पेक्ट्स ऑफ आदिवासिस ऑफ झारखंड' विषय पर उसकी डॉक्टरेट थीसिस और उसके अन्य लेखों पर निर्भर करता था। कोर्ट ने अपने आदेश में एक और अहम बात कही है कि किसी भी आरोपी की ओर से किया गया कोई भी थीसिस या शोध कार्य उसके मस्तिष्क का आकलन करने का आधार नहीं हो सकता है।
आपको बता दें कि सितंबर 2020 में जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद को दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब इस मामले में 17,000 पन्नों का एक आरोप पत्र दाखिल किया गया था. फिर, अक्टूबर 2020 में एक और 197 पन्ने की चार्जशीट में उमर खालिद को चार्जशीट में खालिद को देशद्रोह का पुरोधा कहा गया था।