Delhi Riots : कोर्ट ने किया 4 लोगों को बरी, सरकारी गवाहों की गवाही पर उठे सवाल
Delhi Riots : दिल्ली दंगे के दौरान गोकलपुरी थाना क्षेत्र के भागीरथी विहार में लूटपाट के बाद घर जलाने और दुकान में चोरी करने के मामले में चार लोगों को बरी करने का विस्तृत आदेश कड़कड़डूमा कोर्ट ने सोमवार को जारी किया...
Delhi Riots : दिल्ली दंगे के दौरान गोकलपुरी थाना क्षेत्र के भागीरथी विहार में लूटपाट के बाद घर जलाने और दुकान में चोरी करने के मामले में चार लोगों को बरी करने का विस्तृत आदेश कड़कड़डूमा कोर्ट ने सोमवार 11 जनवरी को जारी किया।
सरकारी गवाहों पर भरोसा नहीं
बता दें कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट के कोर्ट ने आदेश में कहा कि 'तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है कि अभियोजन ने दोनों पुलिसकर्मियों को नाटकीय अंदाज में चश्मदीद गवाह के रूप में पेश किया गया था।
जिस कारण इनकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस घटना से जुड़ा कोई वीडियो भी अभियोजन पेश नहीं कर पाया। जो वीडियो दिखाया गया, वह दूसरी जगह था। ऐसे में अभियोजन पक्ष चोरों लोगों के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा है।दंगे दौरान 26 फरवरी 2020 को गोकलपुरी इलाके के भागीरथी विहार सी-ब्लाक मुख्य नाला रोड पर अफजाल सैफी के घर में लूटपाट के बाद दंगाइयों ने आग लगा दी थी। इसी दिन डी-ब्लाक में शोएब की दुकान में दंगाइयों ने चोरी की थी।'
4 आरोपियों को किया बरी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में निर्णय सुनाते हुए आरोपित साहिल उर्फ बाबू, दिनेश यादव उर्फ माइकल, संदीप उर्फ मोगली और टिंकू को बरी कर दिया था। निर्णय संबंधी विस्तृत आदेश में कोर्ट ने कहा कि 'चश्मदीद गवाह के रूप में पेश किए गए बीट अफसर हेड कांस्टेबल सनोज और कांस्टेबल विपिन गोकलपुरी थाने में तैनात थे, जिसमें इस घटना का मुकदमा दर्ज हुआ था। फिर भी ये गवाह बयान लेने की तिथि (22 मार्च 2020) से पहले तक पूर्ण चुप्पी साधे बैठे रहे। इन्होंने दंगाइयों के बारे में न अपने उच्चाधिकारियों को सूचित किया, न ही जांच अधिकारी को बताया। घटना वाले दिन थाने से इनकी रवानगी और वापसी का कोई रिकार्ड भी नहीं है। किसी तरह की डीडी एंट्री भी इन पुलिसकर्मियों ने नहीं की।'
पुलिसकर्मियों की गवाही पर शक
कोर्ट ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि दोनों पुलिस कर्मियों ने दंगा होने के संबंध में पुलिस थाने में कॉल कर कोई सूचना भी नहीं दी थी। ऐसे में आरोपितों की पहचान करने के संबंध में दोनों पुलिसकर्मियों की गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बता दें कि आरोपितों की तरफ से पैरवी कर रहीं डीएलएसए की अधिवक्ता शिखा गर्ग ने रवानगी रिपोर्ट को आधार बनाकर दोनों पुलिसकर्मियों की गवाही की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किए थे।