एल्गार परिषद मामले में आरोपी प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े और कार्यकर्ता गौतम नवलखा की अंतरिम जमानत याचिका खारिज

एक जनवरी 2018 को पुणे के पास स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। इससे एक दिन पहले वहां यलगार परिषद नाम से एक रैली हुई थी और पुलिस मानती है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई....

Update: 2021-08-24 11:29 GMT

(विशेष एनआईए अदालत को आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने हैं जो तीन साल पुराने मामले में सुनवाई करेगी)

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार डेस्क। विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत ने सोमवार को एल्गार परिषद मामले में आरोपी प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े और कार्यकर्ता गौतम नवलखा की अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी। इससे पहले विशेष लोक अभियोजक प्रकाश शेट्टी ने जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया।

आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा ने विशेष अदालत में जमानत याचिका दायर करते हुए कहा था कि उन्हें जेल अधिकारियों द्वारा सूचित किया गया था कि चल रहे कोविड -19 महामारी के कारण, जेल में सभी आरोपियों को जमानत के लिए आवेदन करने के लिए कहा जा रहा है।

विशेष न्यायाधीश दिनेश ई कोठालिकर ने आनंद तेलतुम्बडे की पैरवी कर रहे वकील सुसान गोंजाल्विस से पूछा कि अंतरिम जमानत याचिका क्यों दायर की गई जबकि जमानत याचिका पहले से ही बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित है। जवाब में सुसान गोंजाल्विस ने कहा कि यह महामारी के आलोक में अंतरिम जमानत याचिका थी। हालांकि, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। 

न्यायाधीश कोठालीकर ने इस साल जून में आनंद तेलतुम्बडे की जमानत याचिका खारिज कर दी थी और इस अपील पर उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

इसी तरह, गौतम नवलखा की ओर से पेश अधिवक्ता चंदानी चावला ने तर्क दिया कि वह विस्तृत प्रस्तुतियाँ नहीं देना चाहती थीं क्योंकि अंतरिम जमानत याचिका सीधे जेल से दायर की गई थी, लेकिन अदालत से इस पर विचार करने के लिए कहा, क्योंकि आरोपी उच्च रक्तचाप जैसी व्याधियों के साथ एक वरिष्ठ नागरिक है और इस प्रकार महामारी के दौरान प्रभावित हो सकता है।

प्रकाश शेट्टी ने हालांकि जमानत याचिका का विरोध किया और कहा, "सभी काल्पनिक (स्वास्थ्य) समस्याएं हैं, जमानत कैसे दी जा सकती है? कोई चिकित्सा प्रमाण पत्र संलग्न नहीं है। इन दिनों कोविड का प्रभाव कम हो गया है और इसलिए याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए।"

विशेष एनआईए अदालत को आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने हैं जो तीन साल पुराने मामले में सुनवाई करेगी। अदालत को उससे पहले सभी लंबित आवेदनों का निपटारा करना है।

न्यायाधीश कोठालीकर ने बताया कि मामले में 7-8 आवेदन लंबित थे, कुछ उस समय के हैं जब मामले की सुनवाई करीब डेढ़ साल पहले पुणे की अदालत में हो रही थी।

साथ ही, कुछ आरोपियों के वकीलों ने बताया कि वे जेल अधीक्षक द्वारा दायर आवेदनों का जवाब दाखिल करना चाहते हैं, जो जेल में कुछ आरोपियों के कदाचार से संबंधित है।

जबकि न्यायाधीश कोठालीकर ने कहा, "मैंने इसका संज्ञान नहीं लिया है," दोनों वकीलों ने कहा कि वे उस आवेदन पर अपना जवाब दाखिल करेंगे और आरोपी अरुण फरेरा व्यक्तिगत रूप से इसका जवाब देंगे।

इससे पहले 9 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान जज ने तीनों आरोपियों वर्नोन गोंजाल्विस, फरेरा और सुरेंद्र गाडलिंग को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था। हालांकि, पुलिस सुरक्षा की अनुपलब्धता से संबंधित मुद्दों के कारण, आरोपी को अदालत में नहीं लाया जा सका। तीनों आरोपियों को अब अगली सुनवाई के लिए 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया जाएगा।

क्या है एल्गार परिषद?

एक जनवरी 2018 को पुणे के पास स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। इससे एक दिन पहले वहां यलगार परिषद नाम से एक रैली हुई थी और पुलिस मानती है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई।

पुणे से पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर भीमा कोरेगांव नाम का एक गाँव है, जहाँ पर दो सौ साल पहले पुणे के ब्राह्मण पेशवा और अंग्रेजों की लड़ाई हुई और अंग्रेजी फौज की महार रेजिमेंट के एक हजार से भी कम सैनिकों मे महार, कुणबी, मराठा तथा अन्य जातियों के भी सैनिक थे। लेकिन महार (डॉ बाबासाहब आंबेडकर की जन्मना जाति) के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी। और इधर पेशवाओं के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी। कोई कहता है कि बीस हजार! खैर, संख्या यहां कोई विचारणीय विषय नहीं है! लेकिन उस 203 साल पहले की लड़ाई मे पेशवाओं की हार और अंग्रेजों की जीत हुई! और शनिवारवाडा पर, पेशवा के किले की प्राचीर पर पेशवाओं की हार के कारण हमेशा के लिए ब्राह्मणों की सत्ता खत्म हुई।

31 दिसंबर 2017 को जब इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी, 'भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान' के बैनर तले कई संगठनों ने मिलकर एक रैली आयोजित की, जिसका नाम यलगार परिषद रखा गया। शनिवार वाड़ा के मैदान पर हुई इस रैली में 'लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने' की बात कही गई थी।

दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला ने रैली का उद्घाटन किया, इसमें कई नामी हस्तियां मसलन- प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद, आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी आदि मौजूद रहे।

इनके भाषणों के साथ कबीर कला मंच ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए। अगले दिन जब भीमा कोरेगांव में उत्सव मनाया जा रहा था, आस-पास के इलाक़ों- मसलन संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी। कुछ देर तक पत्थरबाज़ी कुछ चली, कई वाहनों को नुकसान हुआ और एक नौजवान की जान चली गई।

इस मामले में दक्षिणपंथी संस्था समस्त हिंद अघाड़ी के नेता मिलिंग एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई।

इसी दौरान यलगार परिषद से जुड़ी दो और एफ़आईआर पुणे शहर के विश्रामबाग पुलिस थाने में दर्ज की गईं। पहली एफ़आईआर में जिग्नेश मेवानी और उमर ख़ालिद पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था।

दूसरी एफ़आईआर तुषार दमगुडे की शिकायत पर यलगार परिषद से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज की गई। इस एफ़आईआर के संबंध में सुधीर धवले समेत पांच एक्टिविस्ट गिरफ़्तार किए गए। पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा और वरनॉन गोन्ज़ाल्विस को गिरफ़्तार कर लिया।

पुणे पुलिस ने अदालत में कहा कि गिरफ्तार किए गए पांचों लोग प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं और यलगार परिषद देश को अस्थिर करने की उनकी कोशिशों का एक हिस्सा था। पुलिस ने कहा कि यलगार परिषद सिर्फ़ एक मुखौटा था और माओवादी इसे अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। 

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