Euthanasia : 19 दिनों तक लगातार उपवास के बाद पूरा हुआ 87 साल के बुजुर्ग का संकल्प, जानें क्यों पहुंची हुगली पुलिस
Euthanasia : पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के उत्तरपारा में 87 वर्षीय वृद्ध ने लगातार 19 दिनों तक उपवास करने के बाद स्वेच्छा से मौत को गले लगा लिया। उपवास के दौरान वृद्ध लगातार भगवान का नाम लेते हुए हरि कीर्तन करता रहा।
Euthanasia : पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में इच्छा मृत्यु का एक मामला प्रकाश में आया है। इस मामले में हुगली के उत्तरपारा में 87 वर्षीय वृद्ध ने लगातार 19 दिनों तक उपवास करने के बाद स्वेच्छा से मौत को गले लगा लिया। उपवास के दौरान वृद्ध लगातार भगवान का नाम लेते हुए हरि कीर्तन करता रहा। परिजनों का कहना है कि उन्होंने संथारा के तहत इच्छा मृत्यु को वरण किया है।
मृतक के परिवारवालों का कहना है कि वे जैन समुदाय के सुराणा जाति से ताल्लुक रखते हैं। उनके जाति में यह प्रथा प्रचलित है। उनके संप्रदाय के जो वृद्ध लोग वृद्धावस्था में इच्छा मृत्यु को वरण करना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने की आजादी होती है। दरअसल, जैन समुदाय के सुराणा जाति के वृद्ध लोगों के इच्छा मृत्यु की इस प्रक्रिया को संथारा कहते हैं।
इस घटना की सूचना मिलते ही उत्तरपारा थाने की पुलिस घटनास्थल पर पहुंचकर मामले की पूरी जानकारी ली। पुलिस ने इच्छा मृत्यु और बुजुर्ग की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कीं। एक संप्रदाय के धार्मिक भावनाओं से युक्त होने के कारण पुलिस ने इस मामले में कोई कानूनी दखलअंदाजी करने से इनकार कर दिया।
संथारा परंपरा क्या है?
जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जी लेता है और शरीर उसका साथ देना छोड़ देता है तो उस वक्त वो संथारा ले सकता है। संथारा एक धार्मिक संकल्प है। इसके बाद वह व्यक्ति अन्न त्याग करता है और मृत्यु की प्रतीक्षा करता है। कई दिनों के अन्न त्याग के बाद उसकी मौत हो जाती है। जैन धर्म के मुताबिक धर्मगुरु ही किसी व्यक्ति को संथारा की इजाजत दे सकते हैं। उनकी इजाजत के बाद वो व्यक्ति अन्न त्याग करता है। उस व्यक्ति के आसपास धर्मग्रंथ का पाठ किया जाता है और प्रवचन होता है। यही वजह है कि हुगली के बुजुर्ग ने जब अन्न त्याग किया तब उनके आसपास हरी कीर्तन किया जा रहा था।
Euthanasia : भारत में इच्छा मृत्यु पर क्या है कानून?
भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही अवैधानिक कृत्य रहा है और आईपीसी यानी भारतीय दंड विधान (IPC) की धारा 309 के तहत यह आत्महत्या के बराबर अपराध है। मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला दिया और पैसिव यूथनेशिया यानि निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति प्रदान कर दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी आशंका जाहिर की थी कि कई परिवारों में बुजुर्गों को बोझ समझा जाता है और ऐसे में उन्हें उनके संबंधियों द्वारा इच्छा मृत्यु दिए जाने का खतरा है। इस मुद्दे से मेडिकल और सामाजिक पहलू भी जुड़े हुए हैं।
सक्रिय और निष्क्रिय इच्छा मृत्यु में क्या अंतर
अधिवक्ता प्रशांत नारंग ने बताया कि इच्छा मृत्यु दो तरह की हो सकती है। पहली एक्टिव यूथेनेजिया यानी सक्रिय इच्छा मृत्यु और दूसरी पैसिव यूथेनेजिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु। सक्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की सहायता से किया जा सकता है, जिसमें उसे जहर का इंजेक्शन देने जैसा खतरनाक कदम भी शामिल है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु यानी ऐसे मामले, जहां लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति लंबे समय से कोमा में पड़ा हो, तब रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर उसका लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम यानी जीवन रक्षक उपकरण बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती है।