मौत के दो महीने बाद बिहार की नीतीश सरकार ने किया कृषि अधिकारी का ट्रांसफर
बिहार सरकार की कार्यप्रणाली फिर सुर्खियों में, दो महीने पहले जिस अधिकारी की हुई मौत, उसका किया ट्रांसफर, किरकिरी के बाद ऑर्डर वापस
जनज्वार पटना। बिहार की सुशासन वाली सरकार और सरकारी तंत्र के कारनामे अजब-गजब रहे हैं। कभी यहां हजारों लीटर शराब चूहे पी जाते हैं तो कभी चूहों के कारण बांध तक बह जाते है। कोरोना काल में भी बिहार के सरकारी सिस्टम के कारनामे सुर्खियों में रहे हैं। अब नया अजूबा चर्चा में है।
बिहार की सरकार में शायद स्वर्गवास के बाद भी पदाधिकारी ड्यूटी पर माने जाते हैं, तभी तो जिस पदाधिकारी की मौत कोरोना से दो महीने पहले ही हो चुकी है, उसका नाम तबादले वाली लिस्ट में शामिल किया गया। हालांकि, इस लापरवाही की जानकारी होने के बाद सरकारी अमला एक्टिव हुआ और आनन-फानन में ट्रांसफर ऑर्डर को वापस ले लिया।
मौत के दो महीने बाद तबादला
कोरोना पर मौत के आंकड़ों को लेकर बिहार की नीतीश सरकार पहले से ही सवालों के घेरे में है। अब दिवगंत पदाधिकारी के तबादले का मामला चर्चा में है। दरअसल, पटना के नौबतपुर में प्रखंड कृषि पदाधिकारी के पद पर तैनात रहे अरुण कुमार शर्मा का दो महीने पहले गंभीर रूप से बीमार होने और कोविड की चपेट में आ जाने से निधन हो गया था।
मिली जानकारी के मुताबिक, कृषि विभाग ने मंगलवार 29 जून को अधिसूचना जारी कर कृषि विभाग के 150 से ज्यादा अधिकारियों के तबादले किए थे। इस ट्रांसफर लिस्ट में से एक नाम पटना के नौबतपुर में प्रखंड कृषि पदाधिकारी के पद पर तैनात रहे अरुण कुमार शर्मा का भी था। कृषि विभाग ने उनका ट्रांसफर भोजपुर जिले के चौगाई के प्रखंड कृषि पदाधिकारी के पद पर किया था।
बताया जाता है कि जिन अरुण कुमार शर्मा का पटना के नौबतपुर से भोजपुर के चौगाई में ट्रांसफर किया गया था, वे कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे। महामारी की चपेट में आने के बाद अरुण कुमार शर्मा का 27 अप्रैल को निधन हो गया था। अरुण शर्मा का निधन हुए दो महीने से अधिक समय बीत गया लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण उनका भी ट्रांसफर कर दिया गया।
इधर, कृषि विभाग ने जिन 150 से अधिक अधिकारियों का तबादला किया गया था, उस सूची में अरुण कुमार शर्मा का नाम देख विभाग के लोगों को हैरानी हुई। हंगामा शुरू हुआ तो बिहार सरकार को अपनी भूल का एहसास हुआ। बिहार सरकार ने एक दूसरी अधिसूचना जारी कर अरुण कुमार शर्मा के तबादले को रद्द कर दिया है लेकिन विभागीय लापरवाही प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाती है।
जब कोरोना निगेटिव होने के बाद भी महीने भर रहना पड़ा क्वारेंटीन
ये कोई पहली बार नहीं जब बिहार के सरकारी सिस्टम की लापरवाही सामने आयी है। कई बार तो सिस्टम की कारगुजरी दूसरों पर भारी पड़ जाती है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऐसे कई मामले सामने आये थे। सिस्टम की लापरवाही के कारण ही पटना के 66 साल के डॉ ओम प्रकाश सिंह को कोरोना से नहीं पीड़ित होने के बावजूद भी 27 अप्रैल से 28 मई तक अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े और क्वारंटीन में रहना पड़ा। दरअसल, उनका एक हमनाम कोरोना पॉज़िटिव था जिसके चलते उन्हें ये परेशानी झेलनी पड़ी। और ये हाल तब हुआ जब डॉ ओम प्रकाश सिंह खुद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की बिहार यूनिट में रोहतास ज़िले के सचिव है। निगेटिव होने के बाद भी उन्हें बार-बार क्वारेंटीन होना पड़ा। बाद में 13 मई को जब उन्हें इलाज का पर्चा मिला तो देखा कि उनके पिता की जगह किसी दूसरे का नाम लिखा है। जिसके बाद पूरे मामले को लेकर डॉ। ओम प्रकाश ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा था।