Gujarat Port Drug Haul: 3 हजार किलो ड्रग्स को तस्करी के लिए अडानी के मुंद्रा पोर्ट पर ही क्यों लाया गया

Gujarat Port Drug Haul: जिस 3 हजार किलो ड्रग्स को 30 से ज्यादा कंटेनर में तस्करी होनी थी उसे सिर्फ 2 कंटेनर में लाया गया तो फिर पोर्ट की मिलीभगत कैसे नहीं?

Update: 2021-09-27 06:52 GMT

(कोरोना त्रासदी के बावजूद अडानी की कमाई इस साल बुलेट की गति से बढ़ी है)

मोना सिंह की रिपोर्ट

Gujarat Port Drug Haul: बीते 16 सितंबर 2021 को गुजरात के कच्छ के मुंद्रा पोर्ट पर डीआरआई और कस्टम की टीम ने करीब 3 हजार किलो मात्रा में ड्रग्स की खेप पकड़ी गई थी। ये देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में पकड़ी गई सबसे बड़ी खेप है। सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि ये पोर्ट वर्तमान केंद्र सरकार के सबसे चहेते बिजनेसमैन में से एक गौतम अडानी के अधीन है।

ऐसे में बिना अडानी की मिलीभगत के ऐसा नहीं हो सकता है। हालांकि, अडानी समूह की तरफ से जारी एक स्टेटमेंट में दावा किया गया है कि पोर्ट के रख-रखाव की जिम्मेदारी बेशक हमारे समूह के पास है लेकिन वहां पर चेकिंग करने का अधिकार सरकारी एजेंसियों को ही है। किस कंटेनर में क्या आ रहा है और क्या जा रहा है, इसे जांच करने का अधिकार मुंद्रा पोर्ट अथॉरिटी को नहीं है।

इस सवाल पर केरल के पूर्व डीजीपी डॉ. एन.सी. अस्थाना ने मीडिया एजेंसी द वायर को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि बेशक ये जिम्मेदारी पोर्ट की नहीं होती है। चेकिंग की जिम्मेदारी पुलिस और सरकारी एजेंसियां ही करती हैं। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल है कि पकड़ी गई ड्रग्स की खेप पूरे देश में जितनी सालभर में पकड़ी जाती है उससे भी कई गुना ज्यादा है। पूर्व डीजीपी बताते हैं कि साल 2019 में देश भर में कुल करीब 2500 किलो ड्रग्स पकड़ी गई थी। उससे पहले करीब 1500 किलो पूरे देश में ड्रग्स जब्त हुई थी। लेकिन मुंद्रा पोर्ट पर पकड़े गए ड्रग्स का वजन 3000 किलो है।

यानी दो गुना लगभग। वो भी सिर्फ दो कंटेनर में ये मात्रा पकड़ी गई है। पूर्व डीजीपी यहां एक सवाल उठाते हैं कि किसी भी चीज की तस्करी करने वाले कभी भी एक साथ इतनी भारी मात्रा में वो भी सबसे कीमती ड्रग्स की खेप नहीं ले जाते। क्योंकि इनके पकड़े जाने का हमेशा डर बना रहता है। इसके बजाय तस्कर हमेशा छोटे-छोटे पार्ट में तस्करी करते हैं। अब 3000 किलो ड्रग्स की सप्लाई के लिए कम से कम 30 या इससे भी ज्यादा अलग-अलग पार्ट में आमतौर पर तस्करी की जाती है।

लेकिन इस खेप के लिए पोर्ट प्रशासन के कुछ लोगों की मिलीभगत जरूर होगी जिन्होंने तस्करों को ये आश्वासन दिया होगा कि उनकी खेप आसानी से बाहर निकाल दी जाएगी। उसी भरोसे पर ही ये इतनी बड़ी खेप आई होगी। लेकिन ये पकड़ी गई। लिहाजा, इस पूरे मामले में सिर्फ जिम्मेदारी नहीं होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेना सही नहीं है। इसकी बड़े पैमाने पर जांच होनी चाहिए।

इसके अलावा सवाल ये भी उठता है कि पिछले वर्षों में ड्रग्स की सबसे बड़ी मात्रा पकड़े जाने वाले 4 प्रमुख राज्यों में गुजरात कभी नहीं रहा। फिर अचानक 2021 में पहले जून महीने में भी तस्करी हुई थी लेकिन पकड़ी नहीं गई। अब सितंबर में 3000 किलो की खेप पकड़ी गई। तो फिर बिना किसी पोर्ट अधिकारी के भरोसे कोई तस्कर इतना बड़ा जोखिम कैसे ले सकता है।

इसे ऐसे समझिए। साल 2020 में भारत में ड्रग्स की सबसे बड़ी मात्राएं यूपी, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु से पकड़ी गई थी। वहीं, साल 2019 में बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और असम ये टॉप-4 राज्य रहे। लेकिन इस बार गुजराज के कच्छ के मुंद्रा पोर्ट पर पूरे साल में पकड़े जाने वाले ड्रग्स की मात्रा से भी ज्यादा कैसे पकड़ में आ गई? इसके पीछे गहरी साजिश तो है ही। जिसकी बड़े स्तर पर जांच की जरूरत है।

इतने ड्रग्स से तो 75 लाख से ज्यादा लोग होते प्रभावित

3000 किलो ड्रग्स से भारत में कितने लोग प्रभावित होते? इस सवाल के जवाब में केरल के पूर्व डीजीपी एक स्वीडिश रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताते हैं कि एक व्यक्ति एक दिन में औसतन 460 मिलीग्राम ड्रग्स का सेवन कर सकता है। यानी लगभग 500 मिलीग्राम जिसे हम आधा ग्राम भी कह सकते हैं। इस तरह जो 3000 किलो जो ड्रग्स मिला है उससे 15 लाख लोगों को ये ड्रग्स उपलब्ध होती। लेकिन यहां 3000 किलो ड्र्ग्स पूरा प्योर है। मार्केट में ड्रग्स बिना मिलावट के सप्लाई नहीं होती। इस पर एक डेनिस रिसर्च है। जिसमें कहा गया है कि ड्रग्स की प्योर मात्रा में कम से कम 23 फीसदी या इससे भी ज्यादा की मिलावट होती है। ये मिलावट कभी मिल्क सुगर तो कभी दूसरे केमिकल की होती है। ऐसे में दावा है कि मुंद्रा पोर्ट से पकड़ी गई ड्रग्स की खेप से कम से कम 75 लाख लोग प्रभावित होते। ये आंकड़ा 1 करोड़ के पार भी पहुंच सकता है।

जून 2021 में भी आया था बड़ा कंसाइनमेंट, लेकिन नहीं पकड़ा गया

सूत्रों के अनुसार पता चला है कि जून 2021 में ड्रग्स का एक बड़ा कंसाइनमेंट डीआरआई और कस्टम की लापरवाही की वजह से पकड़ा नहीं जा सका था. उस कंसाइनमेंट को जहां पहुंचना था वहां पहुंच चुका था. इसलिए डीआरआई और कस्टम अधिकारी इस बार बहुत अधिक चौंकन्ने थे और दबाव में भी थे.

इन एजेंसियों को जैसे ही पता चला कि आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा की कंपनी आशी ट्रेडिंग फर्म द्वारा इरानी टेलकम पाउडर की बड़ी खेप आयात की गई है और ये 3 महीने में ही टेलकम पाउडर की दूसरी बड़ी खेप है, जिसे आयात किया गया है.

तो डीआरआई और कस्टम की जॉइंट टीम तुरंत एक्शन में आ गई. इसने एक्सपोर्ट करने वाली फर्म की पहचान अफगानिस्तान के कंधार स्थित हसन हुसैन लिमिटेड के रूप में की। ये कंसाइनमेंट अफगानिस्तान से ईरान और ईरान से गुजरात के कच्छ स्थित मुंद्रा पोर्ट पहुंचा था।

इस संदेहास्पद कंसाइनमेंट की जांच डीआरआई और कस्टम द्वारा करने पर पता चला कि यह ड्रग्स हीरोइन है, टेलकम पाउडर नहीं। 2 कंटेनर में करीब 3000 किलो हेरोइन बरामद की गई। ये भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी ड्रग्स की खेप बरामद की गई है।

ये खेप इसलिए भी इतनी बड़ी थी कि डीआरआई और कस्टम को ही इसकी कीमत का पता लगाने में कई दिन लग गए। पहले इसकी अनुमानित कीमत 9000 करोड़ रुपए बताई गई। बाद में सर्वे करने पर पता चला कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 21000 करोड़ रुपये है। हालांकि, जब इस ड्र्ग्स की क्वॉलिटी (Purity) की जांच होगी तब ही असली कीमत का आकलन हो सकेगा. प्योरिटी के लिहाज से कीमत घट और बढ़ भी सकती है। लिहाजा, कीमत अभी लगाई कई कीमत से भी ज्यादा हो सकती है।

बता दें कि मुंद्रा पोर्ट गौतम अडानी के द्वारा संचालित बंदरगाहों के कारोबार के अंतर्गत आता है। मुंद्रा पोर्ट को अडानी पोर्ट्स और एसीजी द्वारा संचालित है। अडानी समूह द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि वह केवल कोर्ट ऑपरेटर हैं। और उनके पासपोर्ट पर आने वाले शिपमेंट की जांच के अधिकार नहीं हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी ड्रग्स खेप जप्त करने के बाद 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कुछ अफगान नागरिकों पर भी शक की सुई है और डीआरआई की जांच जारी है। पहले भी जुलाई 2017 में भारतीय अधिकारियों ने पंद्रह सौ किलोग्राम ड्रग्स बरामद किया था। यह भी अफगानिस्तान से ही भारत लाई जा रही थी।

भारत में ड्रग्स की तस्करी का इतिहास

भारत में ड्रग्स और ड्रग्स की तस्करी का लंबा इतिहास रहा है। वैदिक काल में भव्य मारिजुआना का उपयोग दवाइयों और त्योहारों में किया जाता था। कालांतर में ब्रिटिश शासकों ने बंगाल के खेतों में धान की जगह लोगों को अफीम की खेती करने को मजबूर किया। इसी वजह से 1770 का द ग्रेट बंगाल अकाल पड़ा था। जिसमें 10 मिलियन यानी करीब 1 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।

ड्रग्स की तस्करी विश्व का सबसे पुराना अवैध व्यापार है। भारत में ड्रग्स अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान ( Golden crescent) म्यांमार, लाओस, कंबोडिया ( गोल्डन ट्रायंगल) थाईलैंड और भूटान से लाया जाता है। इन देशों की सीमाओं से भारत में ड्रग्स की खेप आती रहती हैं। दरअसल, इसे ड्रग्स आतंकवाद (Drugs Terrorism) का नाम दिया गया है। इस ड्रग्स आतंकवाद से दुनिया के पहले 10 देशों में से भारत भी एक रहा है। इसे पनपने के लिए काफी मात्रा में धन ड्रग्स की तस्करी के माध्यम से भी आता है।

दुनिया की प्रमुख अफीम की खेती वाले क्षेत्र आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अलकायदा और हिज्बुल मुजाहिदीन, उल्फा, नक्सली और माओवादी जैसे आतंकवादी संगठनों के घर हैं। और अभी मुंद्रा पोर्ट पर जब्त ड्रग्स की बड़ी खेप भी अफगानिस्तान से आई है। तो अब इसमें संदेह नहीं है कि अफगानिस्तान का अफीम उत्पादक क्षेत्र अब तालिबान के संरक्षण में है, और तालिबान को पोषित करने के लिए आवश्यक धन और मुख्य आय का जरिया बन चुका है।

गौरतलब है कि अफगानिस्तान में दुनिया की 80% अफीम की खेती होती है। ड्रग से जुड़े नियम और कानून भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए 14 नवंबर 1985 को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकॉट्रॉपिक अधिनियम यानी एनडीपीएस लागू हुआ। इसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को ड्रग्स का निर्माण खेती करना, बेचना, खरीदना और परिवहन करना अवैध है।

इस अधिनियम में अब तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में संशोधन हो चुका है। यह अधिनियम भारत के सभी नागरिकों के साथ-साथ एनआरआई नागरिकों और भारत में पंजीकृत विमान और जहाजों पर भी लागू होता है। एनडीपीएस अधिनियम के कार्यान्वयन को सक्षम बनाने के लिए 17 मार्च 1986 को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो बनाया गया।

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) भारत की मुख्य कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसी है। ये मादक पदार्थों और अवैध तस्करी से लड़ने के लिए जिम्मेदार है। राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) केंद्रीय जांच ब्यूरो सीमा शुल्क आयोग और सीमा सुरक्षा बल अन्य प्रमुख सहायक एजेंसियां हैं।

इन मामलों में सजा दवाओं की मात्रा पर निर्भर करती है। कम मात्रा में ड्रग रखने पर 6 महीने की सजा और 10 हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है। कम मात्रा से अधिक लेकिन व्यवसायिक मात्रा से अधिक ड्रग्स रखने के लिए 10 साल की कठोर जेल और 1 लाख रुपये का जुर्माना है। व्यवसायिक मात्रा रखने के लिए 10 से 20 साल की कठोर जेल और 2 लाख जुर्माना है। बहुत अधिक मात्रा में ड्रग्स रखने पर मौत की सजा भी हो सकती है। ड्रग्स की तस्करी दुनिया की सबसे बड़ी अवैध गतिविधियों में से एक है। इसकी प्रति वर्ष कीमत 500 अमेरिकी डॉलर है, जो स्वीडन के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के बराबर है।

मुंद्रा पोर्ट पर विपक्ष की कड़ी प्रतिक्रिया

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने 21 सितंबर की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल उठाया कि गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 3000 किलोग्राम हीरोइन जप्त हुई है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की चुप्पी हैरान करने वाली है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार ने पिछले 18 महीनों में नारकोटिक्स ब्यूरो का कोई पूर्णकालिक महानिदेशक क्यों नहीं बनाया है? क्या यह भारत में ड्रग्स की तस्करी को आसान बनाने की साजिश का हिस्सा हैं।

पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि तस्करी गुजरात में ही ज्यादा क्यों बढ़ी है। अपने गृह राज्य में इतनी बड़ी ड्रग्स बरामदगी के बावजूद भी गृहमंत्री और प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं? कांग्रेस ने आरोप लगाया कि देश के युवाओं को नशे में धकेलने की साजिश हो रही है। फिर भी सरकार अपनी आंखें पूरी तरह बंद करके सो रही है। इस मामले में पूरा का पूरा माफिया काम कर रहा है। और सरकार की पूरी जवाबदेही बनती है कि सरकार क्या कर रही है।

Tags:    

Similar News