गोडसे ने गांधी के बजाय जिन्ना को मारी होती गोली तो नहीं मनाना पड़ता विभाजन विभीषिका दिवस- संजय राउत
राउत ने कहा कि अखंड भारत होना चाहिए ऐसा हम मानते हैं लेकिन यह संभव होगा यह नहीं लगता। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखंड हिंदुस्तान चाहते हैं तो उनका स्वागत है....
जनज्वार। शिवसेना सांसद ने अफगानिस्तान में बदले ताजा घटनाक्रम को लेकर कहा है कि यह घटना देश की संप्रभुत्ता और अस्तित्व की तबाही के दर्द की याद दिलाती है। राउत ने अफगानिस्तान के हालातों की तुलना भारत के विभाजन से की है। राउत ने शिवसेना के मुखपत्र के साप्ताहिक कॉलम 'रोकटोक' में यह भी कहा है कि अगर नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की बजाय पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना को मारा होता तो विभाजन शायद रोका जा सकता था और 14 अगस्त को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस मनाने की जरूरत नहीं होती।
सामना के कार्यकारी संपादक राउत ने कहा कि अफगानिस्तान में जो स्थिति है वह मुझे देश के अस्तित्व और संप्रभुता की तबाही की याद दिलाती है। राउत ने विभाजन की तुलना अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति से की और कहा कि अफगानिस्तान के सैनिक वहां से भाग गए। उन्होंने कहा कि विभाजन के दर्द को तब तक नहीं भुलाया जा सकता जब तक अलग किया गया हिस्सा वापस नहीं लिया जाता।
राउत ने कहा, अखंड भारत होना चाहिए ऐसा हम मानते हैं लेकिन यह संभव होगा यह नहीं लगता। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखंड हिंदुस्तान चाहते हैं तो उनका स्वागत है। उन्हें बताना होगा कि पाकिस्तान के 11 करोड़ मुसलमानों को लेकर उनकी क्या योजना है।'
बता दें कि देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 14 अगस्त को लोगों के संघर्षों एवं बलिदान की याद में अब से विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस मनाया जाएगा। इसके बाद 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने इस घोषणा को फिर से दोहराया।
मोदी ने कहा था कि यह देश को सामाजिक विभाजन और वैमनस्य के जहर को दूर करने और एकता की भावना को और मजबूत करे की जरूरत की याद दिलाता रहेगा।
14 अगस्त को विभाजन विभिषिका दिवस मनाने के फैसले को लेकर तमाम भाजपा नेता सरकार के फैसले की तारीफ कर मोदी को धन्यवाद दे चुके हैं। रक्षा राजनाथ सिंह ने इसके लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हुए एक ट्वीट में कहा कि विभाजन के दौरान लोगों के बलिदान को याद करने का यह निर्णय उनकी संवेदनशीलता का साक्ष्य है।
वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसे प्रधानमंत्री का 'संवेदनशील निर्णय' बताते हुए बधाई देते हुए कहा कि विभाजन के घाव और प्रियजनों को खोने के दुख को शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है। शाह ने कहा, मुझे विश्वास है कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिव समाज से भेदभाव व द्वेष की दुर्भावना को खत्म कर शांति, प्रेम व एकता को बल देगा।
बता दें कि कभी अखंड भारत का हिस्सा रहा अफगानिस्तान इन दिनों तालिबान के कब्जे में चला गया है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग चुके हैं और इन दिनों संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे हैं। वहीं तालिबान अपने दूसरे कार्यकाल के लिए सरकार बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है। अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन और मानवीय संकट को लेकर भारत में भी खूब चर्चा हो रही है। अफगानिस्तान के नागरिक जान हथेली पर रखकर काबुल एयरपोर्ट पर इस उम्मीद से बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं कि किसी तरह वह देश छोड़ सकें।