उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर उठाया सवाल, कहा-कई मामलों में जांच का स्तर 'बहुत घटिया'

कोर्ट ने 25 फरवरी, 2020 को हुई हिंसा के दौरान पुलिस अधिकारियों पर कथित तौर पर तेजाब, कांच की बोतलों और ईंटों से हमला करने के मामले में एक आरोपी अशरफ अली के खिलाफ आरोप तय करते हुए यह टिप्पणी की..

Update: 2021-08-29 14:27 GMT

दिल्ली हिंसा मामलों की जांच को लेकर कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली की खिंचाई की है (File pic)

जनज्वार। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल हुई हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में दिल्ली दंगों के मामलों की जांच का स्तर बहुत घटिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से इसमें दखल देने को कहा है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली दंगों के बीच पिछले वर्ष 25 फरवरी, 2020 को हुई हिंसा के दौरान पुलिस अधिकारियों पर कथित तौर पर तेजाब, कांच की बोतलों और ईंटों से हमला करने के मामले में एक आरोपी अशरफ अली के खिलाफ आरोप तय करते हुए यह टिप्पणी की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोर्ट ने 28 अगस्त को एक आदेश में उल्लेख किया, "यह मामला एक ज्वलंत उदाहरण है, जिसमें पीड़ित स्वयं पुलिस कर्मी हैं, फिर भी आईओ ने एसिड का सैंपल एकत्र करने और उसका कैमिकल एनालिसिस करने की जहमत तक नहीं उठाई। जांच अधिकारी ने चोटों की प्रकृति के बारे में राय एकत्र करने की जहमत तक नहीं उठाई। दंगा मामले के जांच अधिकारी प्रॉसिक्यूटर्स को आरोपों पर बहस के लिए ब्रीफ नहीं कर रहे हैं और सुनवाई की सुबह उन्हें चार्जशीट की पीडीएफ ई-मेल कर रहे हैं।" उन्होंने इस मामले में आदेश की कॉपी दिल्ली पुलिस कमिश्नर को उनके संदर्भ के लिए और सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश के लिए भेजने को कहा।

एएसजे ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अधिकांश मामलों में जांच अधिकारी (आईओ) अदालत में पेश नहीं होते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि बड़ी संख्या में दंगों के मामलों में जांच का स्तर बहुत खराब है। उन्होंने कहा कि आधी-अधूरी चार्जशीट दाखिल करने के बाद पुलिस शायद ही जांच को तार्किक अंत तक ले जाने की परवाह करती है, जिसके कारण कई मामलों में नामजद आरोपी जेलों में बंद रहते हैं।

न्यायाधीश ने कहा कि यह उचित समय है कि उत्तर-पूर्वी जिले के डीसीपी और अन्य उच्च अधिकारी उनके द्वारा की गई टिप्पणियों पर ध्यान दें और मामलों में आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि वे इस संबंध में विशेषज्ञों की सहायता लेने के लिए स्वतंत्र हैं, ऐसा न करने पर इन मामलों में शामिल व्यक्तियों के साथ अन्याय होने की संभावना है। 

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