Indian Judicial System : अगर अदालती कार्यवाही में लागू हुआ PM का सुझाव तो 85% भारतीयों का होगा फायदा
Indian Judicial System : नई दिल्ली के विज्ञान भवन में चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकल लैंग्वेज में अदालती कार्यवाही का सुझाव दिया था। उनके इस सुझाव का मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी समर्थन किया है।
Indian Judicial System : देश की आजादी के करीब 75 साल बाद भी भारतीय न्यायिक व्यवस्था ( Indian Judicial System ) में कामकाज अंग्रेजी ( English ) में होता है। यहां तक कि फैसले भी उसी में आते हैं। इससे 85 फीसदी लोगों का नुकसान होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में शनिवार को इस मुद्दे को उठाया था। पीएम ने सुझाव दिया कि क्यों न अदालती कार्यवाही और उसके फैसले लोकल लैंग्वेज ( Local language ) यानि स्थानीय भाषा में हों। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ( Chief Justice NV Ramna ) ने भी इसका समर्थन किया। अब सवाल यह है कि जो काम 75 सालों में नहीं हुआ, वे अब हो पाएगा। अगर होता है तो इससे किसका सबसे ज्यादा लाभ होगा। क्या आम लोगों का न्यायिक प्रणाली ( Judicial system ) में भरोसा बढ़ेगा या न्यायिक व्यवस्था की मुख्यधारा से जुड़ पाएंगे।
न्यायिक व्यवस्था की मुख्यधारा से जुड़ने का मिलेगा मौका : अश्विनी उपाध्याय
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के चर्चित अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ( Ashwani Upadhayaya ) ने जनज्वार डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि आजादी के बाद जब देश का संविधान लागू हुआ तो कहा गया था कि बतौर राजभाषा के रूप में अंग्रेजी प्रचलन 1965 तक अस्तित्व में रहेगा। उसके बाद इसका धीरे-धीरे हिंदी प्रचलन में आ जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। इससे देश के 85 फीसदी हिंदी व अन्य भारतीय भाषा बोलने वाले लोगों का नुकसान हुआ।
आज भी इंडिया में 10 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो अंग्रेजी में लिख भी लेते और बोल भी लेते हैं। शेष लोगों की भाषा या तो हिंदी है या अन्य भारतीय भाषा बंगाली, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, असमी व अन्य हैं। अदालतों में अंग्रेजी में कामकाज और बहस होने का नुकसान यह हो रहा है कि आज तक आम लोग इससे कटे रहे। दुनिया में भारत में ही ऐसा है, जहां लोगों की भाषा तो कुछ और है और अदालती कामकाज की भाषा कुछ और है।
चाहे आप चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी या अन्य देशों में से किसी भी बात क्यों न करें, वहां की सुप्रीम कोर्ट में भी कामकाज की भाषा वही है जो वहां के लोगों की भाषा है। अमेरिका की बात करें तो वहां के लोगों की भाषा अंग्रेजी है और उसी में अदालती प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं।
क्लाइंट समझ नहीं पाते, वकील पक्ष में बोल रहा है या विरोध में
भारत में अंग्रेजी में बहस होने और फैसला आने से 85 फीसदी क्लाइंट यह समझ नहीं पाते कि वकील जो बोल रहा है, वास्तव में वही बोल रहा है, जो क्लाइंट की समस्या है या वो कुछ और कह रहा है। स्थिति इतनी दयनीय है कि जजमेंट भी अंग्रेजी में ही आते हैं, जिसे लोग समझ नहीं पाते। यानि फैसला क्या आया, इस बात को लोग समझ नहीं पाते हैं। बस उतना ही समझते हैं, जितना उन्हें वकीलों द्वारा समझा दिया जाता है।
ऐसे में पीएम की अपील के मुताबिक अगर अदालती कामकाज, बहस, फैसला हिंदी व अन्य भारतीय भाषा में होगा तो सही मायने में इससे बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लोगों को न्याय सस्ता, सुलभ, शीघ्र और समग्र स्तर पर मिलेगा।
एलिट वकीलों को टूटेगा एकाधिकार : संजय अग्रवाल
दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता संजय अग्रवाल ( Sanjay Agarwal ) का कहना है कि यह मामला देश की आजादी के बाद से ही पेंडिंग है। पीएम मे सुझाव पर ऐसा होता है तो आम आदमी न्यायिक व्यवस्था ( Indian Judicial System ) का अभिन्न हिस्सा हो जाएगा। अदालती व्यवस्था में एलिट यानि तथाकथित संभ्रांत लोगों की एकाधिकार ( Monopoly ) टूटेगा। हिंदी व अन्य भाषाओं के वकील अदालत में मुख होंगे। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक उनकी पहुंच बढ़ेगी। ऐसे में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से वकीलों को फीस में भी कमी आएगी। यानि अदालती लड़ाई सस्ता हो जाएगा। सस्ता इसलिए कि अभी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अंग्रेजी दां हाइली पेड वकील होते हैं। वो केवल अंग्रेजी में बहस करने के एवज में क्लाइंट से मोटी फीस वसूल करते हैं। आम वकीलों की वहां तक पहुंच सुनिश्चित होने पर आम लोग भी वहां तक पहुंचेंगे। तय है न्यायिक प्रणाली काफी सरल हो जाएगा।
अंग्रेजी में बहस और कार्यवाही की वजह से जो लोग अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाते हैं, वो अपनी बात रख पाएंगे। तर्क दे पाएंगे। वकीलों को सही स्थिति समझा पाएंगे। अपना पक्ष मजबूती से पेश करने में सक्षम होंगे। इतना ही नहीं, अपने अनुकूल केस को अदालत के सामने पेश कर पाएंगे। ऐसे में वो केस जीतने की स्थिति में होंगे।
लोग करीब आएंगे और प्रभावी तरीके से अपनी बात रख पाएंगे - पीयूष मिश्रा
अभी अभी अमेटी यूनिवर्सिटी गुड़गांव से कानून की पढ़ाई कर दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे युवा अधिवक्ता पीयूष मिश्रा ( Piyush Mishra ) का कहना है कि अभी कि अंग्रेजी का एकाधिकार ( Monopoly ) होने की वजह से लोग अदालती व्यवस्था से कटे रहे हैं। कटने की वजह ये है कि वो अंग्रेजी में बात नहीं कर पाते। लोगों को अपनी समस्या समझा नहीं पाते। लोकल लैंग्वेज में कामकाज होने से वे न्यायिक प्रक्रिया के करीब आएंगे। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया को सही संदर्भों में जान पाएंगे। न्यायिक प्रक्रिया को प्रत्यक्ष तौर पर अनुभव करेंगे। वकील ने जो कह दिया वही सही, की अब तक की धारणाएं टूटेंगी। ऐसा इसलिए कि लोग जब सिस्टम से रूबरू होंगे तो अपनी भाषा में बात करेंगे। मामलों के अनुकूल प्रभावी रूप से अपना पक्ष में रखने की कोशिश करेंगे।
पीयूष का कहना है कि ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब लोकल लैंग्वेज के अनुकूल न्यायिक प्रक्रिया को ढाला जाए। अभी तक अंग्रेजी लैंग्वेज के हिसाब से न्यायिक प्रक्रियाएं संचालित हैं। भारतीय न्यायिक व्यवस्था को लोकल लैंग्वेज के हिसाब से बदलना होगा। कहने का मतलब है कि अदालती सिस्टम को आसान बनाना होगा।
Indian Judicial System : अदालतों को लोकल से वोकल बनाने की तैयारी
दरअसल, शनिवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने भी ज्वाइंट कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अदालती कार्यवाही लोकल लैंग्वेज में हो और फैसले भी लोकल लैंग्वेज में आएं। अंग्रेजी के चलते आम नागरिक इसे समझ नहीं पाते हैं।
पीएम का मानना है कि इससे न्याय प्रणाली में आम नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा और वे इससे अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे। आज हमारे देश की बड़ी आबादी के सामने न्यायिक प्रक्रिया को समझने में भाषा आड़े आती है। मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा बल्कि वे इससे अधिक जुड़ाव भी महसूस करेंगे।
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