PM के सामने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, कल्याण के पार्थिव शरीर पर तिरंगे के ऊपर पार्टी का झंडा रखने से हो रही किरकिरी
संघ तिरंगे को अशुभ मानता रहा है। गोलवरकर ने लिखा था-हिंदुओं द्वारा तिरंगा कभी नहीं अपनाया जाएगा। सावरकर ने कहा था-अखिल हिन्दू ध्वज के अलावा किसी ध्वज को सलाम नहीं। हां दरिंदों के हक़ में तिरंगा यात्रा में शामिल होने पर इन्हें शर्म नहीं...
जनज्वार, लखनऊ। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री के इंतकाल पर उनकी अंतिम यात्रा को तिरंगे में लपेटकर रखा गया था। प्रधानमंत्री मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित तमाम भाजपाई शरीक हुए थे, लेकिन इसी दौरान भाजपा ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के उपर पार्टी का झंडा रख दिया, जिसे लेकर भाजपा की किरकिरी शुरू हो गई है।
इस मसले पर डॉ. राकेश पाठक ने लिखा है, 'संघ तिरंगे को अशुभ मानता रहा है। गोलवरकर ने लिखा था-हिंदुओं द्वारा तिरंगा कभी नहीं अपनाया जाएगा। सावरकर ने कहा था-अखिल हिन्दू ध्वज के अलावा किसी ध्वज को सलाम नहीं। हां दरिंदों के हक़ में तिरंगा यात्रा में शामिल होने पर इन्हें शर्म नहीं।'
पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल कल्याण सिंह (Kalyan Singh) की पार्थिव देह पर तिरंगे ध्वज के ऊपर भाजपा का झंडा रखने की तीव्र आलोचना हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में राष्ट्रीय ध्वज के साथ यह व्यवहार हुआ है जो कि स्पष्ट तौर पर ध्वज संहिता का उल्लंघन है। वहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौज़ूद थे।
ध्वज संहिता की धारा 4 के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर या समानांतर ऊंचाई पर कोई भी ध्वज नहीं फहराया जा सकता। कल्याण सिंह के शव पर तो राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर पार्टी का झंडा रखवा दिया गया जिससे अशोक चक्र तक ढंक गया। वहां मौज़ूद किसी अधिकारी तक ने इस पर आपत्ति नहीं की जबकि राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि के लिये हर तरह के प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाता है।
पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह लिखते हैं, 'तिरंगे से पुराना बैर है संघ परिवार का, वास्तविकता यह है कि भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तिरंगे को शुरू से ही स्वीकार नहीं करता। उसका आदर्श तो भगवा ध्वज है। संघ के दूसरे सर संघ चालक माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर 'गुरुजी' ने 'आर्गनाइज़' में 14 अगस्त, 1947 को लिखा था कि "यह तिरंगा कभी भी हिंदुओं के द्वारा न अपनाया जायेगा और न ही सम्मानित होगा।"
'तीन' का शब्द तो अपने आप में ही अशुभ है और तीन रंगों का ध्वज निश्चय ही बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा और देश के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा।" हिन्दू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था कि "हिंदू किसी भी कीमत पर वफादारी के साथ अखिल हिंदू ध्वज के सिवा किसी और ध्वज को सलाम नहीं कर सकते।"
ऐतिहासिक तथ्य है भी है कि गांधी जी की हत्या के बाद संघ कार्यकर्ताओं ने देश भर में तिरंगे को पैरों तले कुचला और आग लगाई थी। इस बारे में तब अख़बारों में ख़बरें भी छपी थीं। यह भी याद रखिये कि संघ मुख्यालय में 2002 तक कभी तिरंगा नहीं फहराया गया। दरिदों के हक़ में तिरंगा यात्रा निकाली
विडंबना यह है कि कठुआ में गैंगरेप के आरोपियों के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकाली गई थी। इस यात्रा में हिन्दू संगठनों ने खुल कर बलात्कार के आरोपियों के हक़ में आवाज़ उठाई थी। इस तिरंगा यात्रा में तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकार के दो भाजपाई मंत्री भी शामिल हुए थे। बाद में इन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था। उत्तर प्रदेश में मॉब लिंचिंग के आरोपी के शव पर तिरंगा ध्वज लपेट कर अंतिम संस्कार के लिये ले जाया गया था। इसमें भी इसी कुनबे के लोग शामिल थे।'
वरिष्ठ पत्रकार सुशील दुबे लिखते हैं, 'मुझे ना हिदुत्व से दिक्कत है, न बीजेपी से। बस उस सोच से दिक्कत है जो सिस्टम को चुनोती देती है, कोई भी पार्टी हो, ये पार्थिव शरीर 2 बार के सीएम एक बार के राज्यपाल का रहा। समाजवादी पार्टी में रहे या अपनी पार्टी बनाई ये अलग बात है, पर ये हक बीजेपी को किसने दिया कि एक संवैधानिक पद पर रहे व्यक्ति के शव पर राष्ट्रीय तिरंगे के ऊपर किसी पर्सनल पार्टी का झंडा चढ़ाया जाये।
वह आगे लिखते हैं, अरे कफ़न ही झंडे का कर देते, सत्ता क्या इस बात का हक देती है, शोक अलग बात है, औऱ राजनीतिक हड़प अलग, वैसे मेरा मानना है की पीजीआई में मायावती अखिलेश यादव और प्रियंकागांधी को स्व कल्याण सिंह जी को देखने जाना चाहिये था। क्यों नहीं गये ये सब जाने और इसी गफलत वाली सोच के चलते बीजेपी अगर ये सब कर रही है तो ठीक ही है, फिर सेकुलर ही रह लो।'