जम्मू-कश्मीर: खत्म हुई 146 साल पुरानी 'दरबार मूव' प्रथा, अफसरों को तीन सप्ताह के भीतर आवास खाली करने के आदेश

इससे पहले 20 जून को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था कि प्रशासन ने ई-ऑफिस का काम पूरा कर लिया है, इसलिए सरकारी ऑफिसों के साल में दो बार होने वाले 'दरबार मूव' की प्रथा को जारी रखने की कोई जरूरत नहीं है....

Update: 2021-06-30 15:19 GMT

(दरबार मूव की यह परंपरा साल 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने शुरू की थी। गुलाब सिंह ही महाराजा हरिसिंह के पूर्वज थे)

जनज्वार डेस्क। जम्मू-कश्मीर की 'दरबार मूव' प्रथा आखिरकार 149 सालों के बाद समाप्त हो गई है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले आवास आवंटन को भी रद्द कर दिया है। इसके साथ ही अफसरों को तीन सप्ताह के भीतर आवास खाली करने के आदेश दिए गए हैं। 'दरबार मूव' की प्रथा जम्मू कश्मीर की राजधानियों श्रीनगर और जम्मू के बीच हर छह महीने में होती थी।

इससे पहले 20 जून को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था कि प्रशासन ने ई-ऑफिस का काम पूरा कर लिया है, इसलिए सरकारी ऑफिसों के साल में दो बार होने वाले 'दरबार मूव' की प्रथा को जारी रखने की कोई जरूरत नहीं है। जम्मू और श्रीनगर में 'दरबार मूव' के तहत जिन अधिकारियों को आवास आवंटित किए गए, उन्हें तीन हफ्ते के भीतर इन्हें खाली करने के लिए कहा गया है।

यह प्रथा खत्म होने से हर साल दो सौ करोड़ रुपये की बचत होगी। इसके साथ सरकारी ऑफर अब जम्मू और श्रीनगर दोनों जगहों पर सामान्य रूप से काम करेंगे। राजभवन, सिविल सचिवालय, सभी प्रमुख विभागाध्यक्षों के कार्यालय पहले दरबार मूव के तहत जम्मू और श्रीनगर के बीच सर्दी और गर्मी के मौसम में ट्रांसफर होते रहते थे।

बता दें कि जम्मू कश्मीर की राजधानी मौसम बदलने के साथ ही बदल जाती है। छह महीने जम्मू में तो छह महीने श्रीनगर में राजधानी होती है। राजधानी को शिफ्ट करने की इस प्रक्रिया को ही दरबार मूव के नाम से जाना जाता है। यह परंपरा साल 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने शुरू की थी। गुलाब सिंह ही महाराजा हरिसिंह के पूर्वज थे जिनके समय ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना था। 

गुलाब सिंह ने ही गर्मी के दिनों में श्रीनगर और ठंडी के दिनों में जम्मू को राजधानी बनाना शुरू किया। राजधानी शिफ्ट करने की यह प्रक्रिया जटिल और खर्चीली है, इस वजह से इसका विरोध भी होता रहा है। एक बार राजधानी शिफ्ट होने में करीब 110 करोड़ रुपये खर्च होता था।

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