कन्हैया कुमार ने थामा Congress का हाथ, CPI ने थामी चुप्पी तो CPM व माले ने कहा वामपंथी कतार पर नहीं पड़ेगा कोई असर
Kanhaiya Kumar joins Congress। माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य का. सुभाषनी अली कहती हैं कि कन्हैया कुमार के सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में जाने से वामपंथी कतार पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। पहले भी जेएनयू के अध्यक्ष पद से हटने के बाद ऐसी कोई गतिविधिया नहीं दिखी...
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
Kanhaiya Kumar joins Congress। आखिरकार मंगलवार को दोपहर बाद सीपीआई के फायरब्रांड नेता कन्हैया कुमार व गुजरात के दलित आंदोलन के बड़े चेहरा रहे विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसको लेकर राजनीतिक सियासत गरमाने के साथ ही कांग्रेस में जाने को लेकर लगाए जा रहे विभिन्न तरह के कयास अब खत्म हो गए हैं। ऐसे में अब यह चर्चा होना स्वाभाविक है कि इसका असर वामदलों व उनके विशेषकर युवा संगठनों पर क्या पड़ेगा। इसके जवाब में सीपीआई के तरफ से जहां चुप्पी बरकरार दिखी वहीं माकपा व भाकपा माले का मानना है कि इसका असर वामपंथी कतार पर कोई नहीं पड़ेगा।
माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य का. सुभाषनी अली कहती हैं कि कन्हैया कुमार के सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में जाने से वामपंथी कतार पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। पहले भी जेएनयू के अध्यक्ष पद से हटने के बाद ऐसी कोई गतिविधिया नहीं दिखी। वे पार्लियामेंट का भी चुनाव लडे तो लेफ्ट के संगठित प्रतिनिधि के बजाय अपने को कन्हैया कुमार के रूप में ही सामने रखा। यह जरूर है कि लेफ्ट का आदमी कोई कांग्रेस में चला जाए तो यह सवालिया निशान लग जाता है कि पूर्व में दल में रहते हुए उसकी निष्ठा कैसी रही थी। इसके पहले भी एक दो जेएनयू के वामपंथी अध्यक्ष कांग्रेस में चले गए लेकिन बाद में वे विलुप्त जैसा हो गए। अब वे दिखाई नहीं पड़ते है। बहरहाल कन्हैया कुमार का कांग्रेस में जाना उनका व्यक्तिगत मामला है। लेकिन इसका लेफ्ट या उसके युवाओं के उपर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
देशभर में युवाओं के बीच कन्हैया कुमार के चर्चित चेहरा बने रहने के सवाल उन्होंने कहा कि वे मीडिया में अधिक लेफ्ट से कम जुड़े रहे। उन्हें मैने चार वर्ष पूर्व दलित संगठनों के एक साझा सभा में देखा। लेकिन वहां भी वे वक्ता के रूप में नहीं थे,बल्कि डी. राजा के साथ आए हुए थे। मेरा कुल मिलाकर कहना है कि ऐसा नहीं है कि उनके चले जाने से लेफट के युवाओं में कांग्रेस के प्रति कोई आकर्षण बढ़ जाएगा।
जिग्नेश मेवाडी के कांग्रेस में जाने के सवाल पर कहा कि वे शुरू से ही लेफ्ट समर्थित रहे। हालांकि वे कभी वामसंगठन में नहीं रहे। उन्होंने बड़े मुददे उठाए व हमलोगों ने उनका हमेशा साथ दिया।उनकी स्थिति हमें कन्हैया से अलग लगती है। वे सक्रिय भी रहे हैं। वे कांग्रेस से अलग भी नहीं रहे।उनके प्रति हमलोगों का सम्मान है। दलित आंदोलन के चेहरे के रूप में उनकी पहचान रही है। अगर वह कम हो गया तो उनकी अहमीयत घट जाएगी।उनको कोशिश करनी चाहिए की कांग्रेस भी दलितों के प्रति संवेदनशील बने। अब गुजरात में चुनाव भी आ रहे हैं।अगर वे गुजरात के अंदर दलितों कांग्रेस के साथ लामबंद करते हैं तो यह अच्छी बात है।
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने कन्हैया को लेकर सवाल किए जाने पर कुछ कहने को तैयार नही दिखे। बकौल अतुल अंजान,यह फुर्सत में बात करनेवाले विषय हैं। अभी कन्हैया के बारे में क्या कहूं हमें नहीं पता है कि क्या हो रहा है। दूसरी तरफ भाकपा माले के विधायक व इंकलाबी नौजवान सभा के सम्मानित राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरजीत कुशवाहा ने कहा कि फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई तेज करने की आज जरूरत है। ऐसे वक्त में कन्हैया कुमार का जाना अच्छी खबर नहीं है। लेकिन इस तरह को कोई भी निर्णय लेना किसी का व्यक्गितगत मामला है।ऐसे में हमें इस पर कुछ नहीं कहना। लेकिन यह सच है कि पूर्व में मिली पहचान कांग्रेस में चले जाने के बाद अब उनकी नहीं रह जाएगी। हालांकि इससे वामपंथी कतार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वामपंथी दलों में किस के आने जाने का असर नहीं पड़ता है।
लंबे समय से कन्हैया के दल छोड़ने की लग रही थी कयास
मीडिया में आ रही खबरों पर यकीन करें, तो अपने जोरदार भाषणों के बूते हिंदीभाषी राज्यों में लगातार अपनी पकड बनाते जा रहे कन्हैया कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के आला नेताओं की आंखों में खटकने लगे थे। उनकी जनसभाओं में लोगों की भीड़ देखकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में घबराहट दिखने लगी। खुद के प्रति पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बदलती सोच की वजह से कन्हैया कुमार उपेक्षित महसूस करने लगे. वे पार्टी में अपने लिए एक अहम भूमिका चाहते थे, लेकिन इस मसले पर पार्टी नेतृत्व के साथ टकराव की स्थिति पैदा हो गई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विचारधारा को प्राथमिकता दी। फरवरी में हैदराबाद में सीपीआई की अहम बैठक हुई थी। इसमें कन्हैया कुमार द्वारा पटना में की गई मारपीट की घटना को लेकर निंदा प्रस्ताव पारित किया गया था। बैठक में पार्टी के 110 सदस्यों की मौजूदगी में तीन को छोड़कर बाकी सभी सदस्यों ने कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया था। पार्टी में खुद के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद कन्हैया कुमार ने सबसे पहले जदयू नेता और बिहार में नीतीश सरकार के मंत्री अशोक चैधरी से मुलाकात की थी। उस समय कहा जा रहा था कि वे जदयू में शामिल होंगे, जिसका बाद में खंडन भी किया गया था। इसके बाद उन्होंने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर की सिफारिश के बाद राहुल गांधी ने कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने पर अपनी सहमति जाहिर की।
बिहार में कांग्रेस के तरफ से मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
कांग्रेस को पिछले 5 विधानसभा चुनावों में कोई खास सफलता नहीं मिली है। फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 10 सीट मिली थी, जो अक्टूबर 2005 में घटकर 9 रह गई। 2010 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस को महज 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
2015 विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनी तो पार्टी को 27 सीटों पर जीत मिली थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में रहने के बाद भी कांग्रेस महज 19 सीटें जीत सकी। वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 में तो कांग्रेस को बिहार में एक सीट मिली थी। अपने पुराने परिणाम को देखते हुए कांग्रेस अब बिहार में नए नेतृत्व-कर्ता की तलाश थी। ऐसे में कन्हैया कुमार एक बडी भूमिका निभा सकेंगे। साथ यूपी चुनाव में भी पार्टी युवाओं को गोलबंद करने के लिहाज से कन्हैया की जरूरत समझ रही है।