Karnataka Hijab Controversy : हिजाब विवाद पर हाईकोर्ट की दो टूक, कहा संविधान हमारे लिए भगवद्गीता, भावना से नहीं कानून से चलेंगे

Karnataka Hijab Controversy : कोर्ट ने इस दौरान सिख समुदाय से संबंधित विदेश की अदालतों के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि सिखों के मामले में न सिर्फ भारत की अदालत बल्कि कनाडा और यूनाइटेड किंगडम की कोर्ट ने भी उनकी प्रथा को आवश्यक धार्मिक परंपरा के तौर पर माना है...

Update: 2022-02-08 15:08 GMT

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Karnataka Hijab Controversy : पिछले कुछ दिनों से चल रहे हिजाब विवाद (Hijab Controversy) पर मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने सभी दलीलों को सुनने के बाद कहा कि हमारे लिए संविधान (Indian Constitution) ही हमारी भगवदगीता है। हम भावना नहीं, कानून के हिसाब से काम करेंगे।

एडवोकेट जनरल ने कोर्ट से कहा कि कॉलेजों को यूनिफॉर्म तय करने की स्वायत्तता दी है। जो छात्र छूट चाहते हैं वे कॉलेज विकास समिति (College Devlopment Committie) से संपर्क करेंगे। मामले में बुधवार 9 फरवरी को फिर सुनवाई होगी। 

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत का कहना है कि स्कार्फ पहनना मुस्लिम संस्कृति (Islamic Culture) का एक अनिवार्य हिस्सा है। अगर कुछ गुंडे कुछ कर रहे हैं तो यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि ये छोटी लड़कियां शांति से कॉलेज जा सकें। कुछ देश नकारात्मक धर्मनिरेपक्षता की अवधारणा का पालन करते हैं जो सार्वजनिक रूप से धार्मिक पहचान के प्रदर्शन की अनुमति नहीं देता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता अलग है, हम सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का अभ्यास करते हैं। हमारी धर्मनिरपेक्षता सम्मान पर आधारित है। राज्य सभी धर्मों का सम्मान करता है।

हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई सुबह साढ़े दस बजे के बाद शुरु हुई। कोर्ट ने कहा कि हम तर्क और कानून से चलेंगे न कि भावनाओं और जुनून से। देश के संविधान में जो व्यवस्था दी गई है, हम उसके मुताबिक चलेंगे। संविधान हमारे लिए भगवदगीता की तरह है। कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया कि यूनिफॉर्म के बारे में फैसला लेने की स्वतंत्रता छात्रों को दी गई है। जो स्टुडेंट इसमें छूट चाहते हैं उन्हें कॉलेज की विकास समिति के पास जाना चाहिए।

कोर्ट ने दोपहर तीन बजे फिर मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने इस दौरान सिख समुदाय से संबंधित विदेश की अदालतों के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि सिखों के मामले में न सिर्फ भारत की अदालत बल्कि कनाडा और यूनाइटेड किंगडम की कोर्ट ने भी उनकी प्रथा को आवश्यक धार्मिक परंपरा के तौर पर माना। 

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