Kashmir News : कश्मीर में हाल में हिंसा में वृद्धि के पीछे असल क्या वजह है?

Kashmir News : टीआरएफ कश्मीर के अगस्त 2019 के पुनर्गठन के मद्देनजर उभरा, जिसमें किसी भी बड़े पैमाने पर विरोध को रोकने के लिए कश्मीर घाटी में संचार और आंदोलन पर कठोर पाबंदी थी।

Update: 2021-10-19 09:02 GMT

Kashmir। हाल के सप्ताहों में कश्मीर में हिंसा (Violence In Kashmir) में वृद्धि, जिसमें नागरिकों पर आतंकवादी हमलों (Terror Attack) और सुरक्षा बलों (Security Forces) द्वारा व्यापक कार्रवाई शामिल है, ने अक्टूबर की शुरुआत से भारी सैन्यीकृत क्षेत्र में 33 लोगों की जान ले ली है। कश्मीर 1990 के दशक से नई दिल्ली के खिलाफ एक खूनी सशस्त्र विद्रोह का स्थल रहा है।

संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा हत्याओं की ताजा लहर मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में प्रवासी श्रमिकों, और अल्पसंख्यक हिंदू और सिख समुदायों के सदस्यों सहित गैर-कश्मीरियों की ओर लक्षित प्रतीत होती है।

कश्मीर के कुलगाम जिले (Kulgam Distt.) में रविवार को आतंकवादियों ने तीन प्रवासी कामगारों को गोली मार दी, जिसमें दो की मौत हो गई और एक घायल हो गया। दो अलग-अलग घटनाओं में उत्तर भारत के दो मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

पिछले हफ्ते, कश्मीर के मुख्य शहर श्रीनगर (Srinagar) में एक सरकारी स्कूल के अंदर दो शिक्षकों - एक हिंदू, एक अन्य सिख की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। संदिग्ध आतंकवादियों ने 6 अक्टूबर से अब तक कुल 11 नागरिकों की हत्या कर दी है।

सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि कुछ हत्याएं द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) द्वारा की गई हैं, जिसे वे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और पारंपरिक रूप से बनाए गए समूह हिजबुल मुजाहिदीन (Hizbul Mujahiddin) के लिए एक स्थानीय लड़ाकों का मोर्चा बताते हैं।

भारत का कहना है कि पाकिस्तान (Pakistan) कश्मीर में उग्रवाद का समर्थन करता है, इस्लामाबाद (Islamabad) ने इस आरोप का खंडन किया है। पाकिस्तान का कहना है कि वह केवल कश्मीरी लोगों को कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देता है।

नई दिल्ली ने अपने एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य में अलगाववादी भावनाओं को कम करने के लिए दशकों तक संघर्ष किया है। अगस्त 2019 में नई दिल्ली के नियंत्रण पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने संविधान के अनुच्छेद 370 (Article 370) को समाप्त कर दिया, इस क्षेत्र की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया और इसे जम्मू और कश्मीर और बौद्ध बहुल लद्दाख के संघीय क्षेत्रों में विभाजित करके इसका राज्य का दर्जा हटा दिया।

टीआरएफ (TRF) कश्मीर के अगस्त 2019 के पुनर्गठन के मद्देनजर उभरा, जिसमें किसी भी बड़े पैमाने पर विरोध को रोकने के लिए कश्मीर घाटी में संचार और आंदोलन पर कठोर पाबंदी थी। हाल के हमलों में टीआरएफ सदस्यों ने अपने लक्ष्य पर गोली चलाने के लिए ज्यादातर आसानी से छुपाने योग्य छोटे हथियारों जैसे पिस्तौल का इस्तेमाल किया है।

इस महीने की शुरुआत में सोशल मीडिया पर एक बयान में द रेसिस्टेंस फ्रंट ने कहा कि यह लोगों को उनके धर्म (Religion) के आधार पर नहीं बल्कि केवल भारतीय अधिकारियों के लिए काम करने वालों को निशाना बना रहा है। सुरक्षा बलों ने एक व्यापक कार्रवाई शुरू की है, जिसमें पिछले दो हफ्तों में कश्मीर घाटी में कई अभियानों में 13 आतंकवादी मारे गए हैं।

पिछले हफ्ते श्रीनगर में दो शिक्षकों की हत्या के बाद अधिकारियों ने 300 से अधिक लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया, जिनमें से अधिकांश को बाद में रिहा कर दिया गया। हिरासत में लिए गए लोगों में प्रतिबंधित धार्मिक संगठन जमात-ए-इस्लामी के सदस्य शामिल हैं, जो हुर्रियत कांफ्रेंस (Hurriyat Conferrence) के नाम से जाने जाने वाले अलगाववादियों का एक छत्र गठबंधन है, और अन्य आतंकवादी समूहों से जुड़े हुए हैं।

हत्याओं ने आबादी के कुछ वर्गों में दहशत फैला दी है, जिसमें अल्पसंख्यक हिंदू (Minorities Hindus) और प्रवासी श्रमिक कश्मीर घाटी से जम्मू और अन्य क्षेत्रों की ओर भाग रहे हैं। क्षेत्र के राजनीतिक नेताओं ने हत्याओं की निंदा की है, लेकिन 2019 में पूर्व राज्य को विभाजित करने के निर्णय के बाद मोदी सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाया है।

राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने एक ट्वीट में कहा, "इनमें से कोई भी व्यक्ति मरने के लायक नहीं है।" "किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि भारत सरकार को यह महसूस करने में कितना समय लगेगा कि उसकी नीतियां जम्मू-कश्मीर में नाकाम रही हैं और वह भी किस कीमत पर?" उन्होंने कहा।

दूसरी तरफ कश्मीर में बीते सोमवार से सेना और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ चल रही है। यह मुठभेड़ सीमावर्ती इलाके पुंछ में चल रही है और अब तक इसमें सेना के दो अधिकारियों समेत नौ जवान मारे गए हैं।

सेना (Indian Army) ने बीते सोमवार को पुंछ से करीब सौ किलोमीटर दूर सरनकोट के एक गांव में चरमपंथियों के खिलाफ अभियान शुरू किया था। अभियान के पहले दिन सेना के पांच जवान मारे गए थे, जिनमें एक जूनियर कमीशंड अफसर (जेसीओ) भी शामिल थे। चरमपंथियों के खिलाफ जारी अभियान में दो दिनों के बाद फिर से गोलीबारी हुई जिसमें सेना के दो और जवान मारे गए।

जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने होने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के दो साल पूरे हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का दावा था कि इलाके में शांति के लिए ये कदम जरूरी था। लेकिन आज दो साल बाद भी सुरक्षाबलों के लिए काम करने वाले कई आम और स्थानीय लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।

दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फिलिक्ट मैनेजमेंट के एक्जेक्यूटिव डायरेक्टर अजय साहनी के मुताबिक, "ये वो लोग और उनके परिवार हैं जिन्हें सीमा के उस पार पुलिस इंफॉर्मर या सहयोगी कहा जाता हैं। वो हमेशा ही एक आसान और पहला टार्गेट होते हैं।"

केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry Of Home Affairs) की 2019-20 सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 में कश्मीर में चरमपंथ की शुरुआत के बाद से दिसंबर 2019 तक 14,054 नागरिकों और 5,294 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई। हालांकि माना जाता है कि असल आंकड़े इससे बहुत ज्यादा हैं। 

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