Kisan Andolan : सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट में दावा- रद्द किए गए कृषि कानूनों से 86 प्रतिशत किसान संगठनों को नहीं था कोई ऐतराज

Kisan Andolan : उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों पर एक याचिका की सुनवाई करते हुए जनवरी 2021 में तीनों कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत जानने के लिए एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी में वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत और प्रमोद कुमार जोशी शामिल किए गए थे। बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी ने मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी दी थी। रिपोर्ट में कृषि कानून से जुड़े कई सुझाव भी ​कमिटी की ओर से दिए गए हैं।

Update: 2022-03-21 13:07 GMT

Kisan Andolan : भारत सरकार (Government of India) की तीनों कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court ) की पैनल की रिपोर्ट में बड़ा दावा किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तीनों कृषि कानूनों से देश के 86% किसान संगठन खुश थे। ये किसान संगठन तकरीबन 3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

इसके बावजूद इन कानूनों के विरोध में कुछ ऐसा माहौल बना कि अराजकता की स्थिति बन गयी। कुछ किसानों संगठनां को प्रदर्शन को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पिछले साल गुरु नानक देव की जयंती 19 नवंबर को इन कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था।

आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कृषि कानूनों पर एक याचिका की सुनवाई करते हुए जनवरी 2021 में तीनों कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत जानने के लिए एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी में वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत और प्रमोद कुमार जोशी शामिल किए गए थे। बिजनेस स्टैंडर्ड (Business Standard) अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी ने मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी दी थी। रिपोर्ट में कृषि कानून से जुड़े कई सुझाव भी ​कमिटी की ओर से दिए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है फसल खरीदी और विवाद सुलझाने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बनाए जाने की जरूरत है। कमेटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए किसान अदालतों का गठन किया जा सकता है। कमेटी ने यह भी कहा है कि कृषि के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए एक संरचना बनाए जाने की रूरत है। कमेटी की इस रिपोर्ट को जल्द ही सार्वजनिक किए जाने का अनुमान है।

तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के बाद दिसंबर 2021 में किसान संगठनों और सरकार के बीच अंतिम दौर की बातचीत में कई मुद्दों पर सहमति बनी थी। इनमें फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने पर कमेटी बनाने, किसान आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने और किसानों पर आंदोलन के दौरान लगे मुकदमे हटाने पर सहमति बनायी गयी थी।

क्या है एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य)

केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है, इसे ही न्यनतम समर्थन मूल्य या MSP कहा जाता है। अगर बाजार में फसल की कीमत कम भी हो जाती है, तो भी सरकार किसान को इसी कीमत के हिसाब से फसल का भुगतान करेगी। इससे किसानों को अपनी फसल की तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल की बाजार में क्या कीमत चल रही है। इसे एक एक तरह से फसल की गारंटीड कीमत भी कहा जा सकता है। 

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