Mahendra Bhati Murder Case : अगर डीपी यादव निर्दोष तो दोषी कौन है? जवाब मांगने के लिए परिजन करेंगे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील

Mahendra Bhati Murder Case : 15 फरवरी, 2015 को देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने चारों हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सीबीआई के मुताबिक डीपी यादव ने विधायक की हत्या के लिए बदमाशों को गाड़ियां उपलब्ध कराई थी, जिन्हें घटना के बाद जला दिया गया था।

Update: 2021-11-11 04:45 GMT

 नैनीताल हाईकोर्ट से बरी होने के बाद डीपी यादव जिंदाबाद के लगे नारे।

Mahendra Bhati Murder Case : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नैनीताल हाईकोर्ट ( Nainital High Court ) द्वारा उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव ( Bahubali DP Yadav ) को भाटी हत्याकांड मामले में बाइज्जत बरी करने से सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट ( CBI Court ) के 2015 के फैसले को पलटते हुए डीपी यादव के पक्ष में यह फैसला सुनाया है। हाईकोई के इस फैसले ने ग्रेटर नोएडा के मकौड़ा गांव निवासी व तीन बार दादरी विधानसभा सीट से विधायक महेंद्र भाटी की हत्या से जुड़ी तीस साल पुरानी यादें ताजा कर दी हैं।

Mahendra Bhati Murder Case : सरकार से नहीं मिली मदद

नैनीताल हाईकोर्ट के इस फैसले से अहम सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि विधायक महेंद्र सिंह भाटी ( Mahendra Singh Bhati ) की हत्या अगर डीपी यादव ने नहीं की तो फिर इस हत्याकांड का दोषी कौन है? इस बारे में संजय भाटी ने बताया कि उनके परिवार के सदस्य की हत्या हुई। सीबीआई कोर्ट देहरादून ने डीपी यादव समेत अन्य आरोपितों को दोषी करार दिया था। नैनीताल हाईकोर्ट ने किन साक्ष्यों के अभाव में डीपी यादव को बरी किया है, इसका बारीकी से अध्ययन करेंगे। इतने बड़े बाहुबली नेता डीपी यादव ( Bahubali DP yadav ) से कानूनी जंग लड़ना आसान नहीं था। परिवार के सदस्य दादरी में रहते थे। करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर उत्तराखंड में केस की सुनवाई के दौरान गवाही डर के साये में दी गई। किसी सरकार से उनको इस मामले में मदद नहीं मिली। सीबीआई अदालत ने जरूर उनकी सुनी।

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उनका कहना है कि हाईकोर्ट ने तो अपना फैसला सुना दिया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि डीपी यादव निर्दोष हैं तो फिर दोषी कौन है? किसको बचाया जा रहा है? इस फैसले के खिलाफ हम लोग सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। महेंद्र भाटी के भतीजे संजय भाटी ने दावा किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी ( स्पेशल लीव पीटिशन ) दाखिल करेंगे।

दादरी से 3 बार चुने गए थे महेंद्र सिंह भाटी

दादरी के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की 1992 में हत्या हुई थी। 

दादरी विधानसभा सीट से तीन बार के विधायक रहे महेंद्र भाटी पश्चिम उत्तर प्रदेश के बेहद प्रभावशाली नेता थे। वह विधानमंडल में जनता दल के उपनेता भी थे। उनकी हत्या के बाद दादरी में शोक की लहर दौड़ गई थी। महेंद्र भाटी की हत्या के बाद पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, शरद यादव, राम विलास पासवान समेत कई अन्य बड़े नेता दादरी उनके आवास पर आए थे। बड़े नेताओं की मांग पर ही सीबीआई जांच हुई। महेंद्र भाटी के भाई राजवीर भाटी की भी दादरी में हत्या हुई थी। भाई की हत्या का आरोप भी डीपी यादव पर लगा था।

भाटी की ऐसे हुई थी हत्या

साल 1992 में दादरी के रेलवे फाटक पर अपनी कार से विधायक महेंद्र सिंह भाटी अपने साथियों के साथ जा रहे थे। उसी समय महेंद्र भाटी की एके 47 से फायरिग कर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया था। मामला सीबीआई में गया और सीबीआई ने आरोपित डीपी यादव, परनीत भाटी, करन यादव व पाल सिंह उर्फ लक्कड़ पाला पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। 15 फरवरी, 2015 को देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने चारों हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सीबीआई के मुताबिक डीपी यादव ने विधायक की हत्या के लिए बदमाशों को गाड़ियां उपलब्ध कराई थी, जिन्हें घटना के बाद जला दिया गया था।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद गांव में लगे नारे

नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद डीपी यादव के नोएडा स्थित सर्फाबाद गांव में बुधवार को जिदाबाद के नारे लगे। जैसे ही गांव के लोगों की सूचना मिली कि डीपी यादव को हत्या के मामले में बरी कर दिया है, गांव में समर्थकों की भीड़ एकत्र हो गई। डीपी यादव ने भी कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा था। उनको न्याय मिला है।

दरअसल, बुधवार को 29 साल पहले गाजियाबाद के बहुचर्चित महेंद्र भाटी हत्याकांड में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बुधवार को पूर्व सांसद डीपी यादव को बरी कर दिया। मुख्य न्यायाधीश RS चौहान और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने यादव के खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिलने पर उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। इससे पहले डीपी यादव को अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया था। इस मामले में अन्य तीन अभियुक्तों पर अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा है। यूपी में डीपी यादव के दबदबे के कारण निष्पक्ष जांच प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने साल 2000 में जांच CBI देहरादून को स्थानांतरित कर दी थी।

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