Media in Kashmir : जम्मू-कश्मीर में मीडिया के कंधे पर लटक रही है सरकार की तलवार : प्रेस काउंसिल

Media in Kashmir : प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने तीन सदस्यीय फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम का गठन किया था। दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे, इंडियन एक्सप्रेस के गुरदीप सिंह और जन मोर्चा की संपादक डॉ. सुमन गुप्ता फ़ैक्ट फाइंडिग टीम के सदस्य थे। पिछले सप्ताह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

Update: 2022-03-15 11:45 GMT

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Media in Kashmir : जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती (Mehbooba Mufti) ने सितंबर 2021 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) को एक पत्र लिखा था और मांग की थी कि काउंसिल एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम भेजकर जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों के उत्पीड़न, जासूसी, डराने-धमकाने और दफ़्तरों पर रेड आदि का जायजा ले। जिसके बाद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम (Fact Finding Team) का गठन किया था। दैनिक भास्कर (Dainik Bhaskar) के समूह संपादक प्रकाश दुबे, इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) के गुरदीप सिंह और जन मोर्चा (Jan Morcha) की संपादक डॉ. सुमन गुप्ता फ़ैक्ट फाइंडिग टीम के सदस्य थे। टीम ने जम्मू-कश्मीर में जाकर पत्रकारों, समाचार समूहों, सरकारी अधिकारियों, पुलिस और सेना अधिकारियों आदि से बात की थी। पिछले सप्ताह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की इस कमेटी ने अक्टूबर 2021 में श्रीनगर और नवंबर 2021 में जम्मू का दौरा किया था। इस दौरान कमेटी ने पत्रकारों, मीडिया कंपनियों के मालिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वयं सेवी संगठनों से बातकर उनके बयान दर्ज किए थे। फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने महबूबा मुफ्ती, वर्तमान में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार, कश्मीर डिविजन के कमीश्नर पांडुरंग पोल से भी बात की थी। इसी बातचीत और जांच के ​आधार पर कमिटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।

प्रेस काउंसिल की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जम्मू-कश्मीर में और खासकर कश्मीर घाटी में प्रशासन के व्यापक प्रतिबंधों ने स्थानीय मीडिया को धीरे—धीरे पूरी तरह से सेंसर कर दिया है। ऐसे कई पत्रकार हैं जिन्हें प्रताड़ित किए जाने के पुख्ता प्रमाण है। पत्रकारों के बीच डर का माहौल बनाया गया ताकि पत्रकार सरकार के सुर में सुर मिलाकर अपनी रिपोर्ट करें। रिपोर्ट के अनुसार प्रशासन और पत्रकारों के बीच न्यूनतम सहज संवाद भी बाधित हो गया क्योंकि प्रशासन का मानना है कि पत्रकार उग्रवादियों के साथ सहानुभूति रखते हैं।

फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा से भी बात की थी। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कई पत्रकार राष्ट्र विरोधी विचारों के हैं। उन्होंने फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम को बताया कि पहले जब उनकी नियुक्ति हुई तो वो खुली प्रेस वार्ताओं को बढावा देते थे। लेकिन अब सिर्फ चुनिंदा पत्रकारों से ही बात करना जरूरी समझते हैं।

टीम ने पाया कि पत्रकारों से पूछताछ के कई मामलों में उन्हें डराने और धमकाने के सबूत मिले हैं। पत्रकारों को अजीब तरह के फार्म और दस्तावेज़ों को भरने को मज़बूर किया गया। असल में पत्रकारों की प्रोफाइलिंग की जा रही थी। कुछ पत्रकारों को कार्गो सेंटर पर पूछताछ के लिए बुलाया गया। गौरतलब है कि ये स्थान सशस्त्र उग्रवादियों के साथ पूछताछ के लिए आरक्षित है। बहुत सारे पत्रकारों ने कहा कि सुरक्षा बलों की तरफ से उन्हें लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। अलगाववादियों की सहायता करने के आरोप लगाए जाते हैं, पुलिस शिविरों में लंबी पूछताछ की जाती है, फ़ेक न्यूज़ प्रचारित करने का आरोप लगाकर नज़रबंदी से लेकर गिरफ्तारी तक झेलनी पड़ती है।

रिपोर्ट के अनुसार 2016 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में 49 पत्रकारों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। देश के सिर्फ एक राज्य के लिए ये संख्या बहुत अधिक है। आठ पत्रकारों को यूएपीए के तहत भी गिरफ्तार किया गया है। जिसमें जमानत भी लगभग असंभव है। काफी पत्रकारों को देश विरोधी गतिविधि के तहत प्रशासन की ओर से आरोपित बनाया गया है।

रिपोर्ट ने कश्मीर प्रेस क्लब के मुद्दे पर भी बात की है। रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर प्रेस क्लब को दबाने और बंद करने के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस और वाजिब कारण दिखाई नहीं देता। इसके रजिस्ट्रेशन को बहाल करना चाहिये और सरकारी अधिकारियों को इसके चुनाव आदि प्रक्रियाओं से दूर रहना चाहिये ये मीडियाकर्मियों की एक स्वतंत्र संस्था है। इसमें सरकारी दखलअंदाजी का कोई औचित्य नहीं है।

वहीं पुलिस महानिरीक्षण विजय कुमार ने प्रेस काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग टीम को बातचीत के दौरान बताया कि मुझे कहने में कोई झिझक नहीं है कि हमारा एक कार्यक्रम है जिसके तहत हम जम्मू-कश्मीर में कार्य कर रहे पत्रकारों की प्रोफाइलिंग कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य है कि हम 80% कश्मीरियों की प्रोफाइलिंग करेंगे। जिनमें जाहिर तौर पर पत्रकार भी शामिल होंगे।

कमेटी ने पाया कि धारा 370 हटाने के बाद से कश्मीर में जानबूझकर इंटरनेट और कम्यूनिकेशन के अन्य माध्यमों को समय-समय पर बाधित किया गया है। कश्मीर घाटी में दो महीने से ज्यादा समय तक इंटरनेट बाधित रहा है। सब जानते हैं कि अगर इंटरनेट नहीं होगा तो पत्रकारों और न्यूज़ इंडस्ट्री को अपने काम के परिचालन में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग की रिपोर्ट का सार यह है कि पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने प्रेस काउंसिल को लिखे पत्र में जो आरोप लगाए थे वो सही लगते हैं। सुरक्षाबलों द्वारा पत्रकारों को बुलाया जा रहा है, पूछताछ की जा रही है और एक प्रश्नावली को भरने को लिए मज़बूर किया जा रहा है जिससे इस तरह के संकेत निकल सकते हैं कि पत्रकार का देश-विरोधी ताकतों के साथ कोई लिंक है। यानी पत्रकारों की प्रोफाइलिंग हो रही है। ये बात आईजी पुलिस, विजय कुमार ने भी फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम के सामने स्वीकार की है कि वो पत्रकारों की प्रोफाइलिंग कर रहे हैं।

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