Mi-17V5 Helicopter Crash : तो जंगल और पहाड़ी बना हादसे की वजह, जानें हेलीकॉप्टर के लिए नीलगिरी का इलाका खतरनाक क्यों?
वेलिंगटन का हेलिपैड भी जंगल और पहाड़ी इलाके के तुरंत बाद है। इसलिए पायलट के लिए इसे दूर से देख पाना मुश्किल होता है। खराब मौसम में हेलिकॉप्टर की लैंडिंग हमेशा से कठिन रहा है।
नई दिल्ली। तमिलनाडु के कुन्नूर जिले के नीलगिरी पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में एमआई-17वी5 हेलीकॉप्टर ( Mi-17V5 Helicopter) हादसे में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ( ब्क्ै Bipin Rawat) सहित 13 लोगों की मौत के बाद इस बात को लेकर जांच जारी है कि आखिर यह हादसा क्यों हुआ। ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद से इस बात की उम्मीद बढ़ी है कि हादसे की वजह से पर्दा जल्द हट जाएगा। लेकिन प्रारंभिक तौर पर माना जा रहा है कि हेलिकॉप्टर क्रैश होने की वजह कुन्नूर का खराब मौसम रहा। पर इसे दमदार तर्क इसलिए नहीं माना जा रहा है, क्योंकि Mi-17V5 हेलिकॉप्टर नाइट विजन, ऑटो पायलट मोड और वेदर रडार से लैस होता है। यही वजह है कि हादसे पर सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल, जिस वक्त और जिस जगह हादसा हुआ, वहां घना जंगल है। पहाड़ी इलाका होने और लो विजिबिलिटी की वजह से ही हेलिकॉप्टर क्रैश होने की बात कही जा रही है। वेलिंगटन का हेलिपैड भी जंगल और पहाड़ी इलाके के तुरंत बाद है। इसलिए पायलट के लिए इसे दूर से देख पाना मुश्किल होता है। ऐसे में खराब मौसम में हेलिकॉप्टर की लैंडिंग यहां हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहती है। इसलिए जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि कम विजिबिलिटी की वजह से यह कम ऊंचाई पर उड़ रहा था। लैंडिंग प्वाइंट से दूरी कम होने की वजह से भी हेलिकॉप्टर काफी नीचे था। नीचे घने जंगल थे, इसलिए क्रैश लैंडिंग भी फेल हो गई होगी। इस हेलिकॉप्टर के पायलट ग्रुप कैप्टन और सीओ रैंक के अधिकारी थे, जो सेना के सबसे काबिल पायलट्स में से होते हैं। हेलिकॉप्टर दो इंजन वाला था। ऐसे में अगर एक इंजन फेल हो जाता तो भी बाकी बचे दूसरे इंजिन से लैंडिंग की जा सकती थी।
नीलगिरी क्षेत्र में कठिन होता है रडार से संपर्क में बने रहना
एक बार और है, सभी हवाई जहाज आसमान में लगभग 25000-35000 फीट या उससे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। इतनी उंचाई पर रहने के कारण वे हमेशा से उस प्रदेश की पहाड़ियों की चोटी के काफी उपर से उड़ान भरते हैं। इस ऊंचाई से जमीन पर रडार स्टेशन से संपर्क बनाना सहज होता है। राडार की लहर सीधी रेखा में चलती है। लेकिन हेलीकाप्टर हवाई जहाज के जैसे बहुत ज्यादा उंचाई पर नहीं उड़ सकता। इसे पहाड़ियों की चोटियों के बीच से उड़ान भरना होता है। इतना ही नहीं, पहाड़ी के किसी भी खाई में बहूत छोटी जगह पर उतरना भी पड़ता है। ऐसी जगहों में रडार से संपर्क टूटता रहता है।
हेलीकॉप्टर उड़ान की ऊंचाई 3000-3500 मीटर से भी कम
हेलीकॉप्टर दिन में उड़ान भरते समय जबतक मुमकिन है तबतक जमीन के रडार स्टेशन से संपर्क में रहते हैं लेकिन पहाड़ियों के बीच पायलट को अपनी आंखों के भरोसे हेलीकॉप्टर उड़ाना पड़ता है। यही चीज रात में या धुंध में मुमकिन नहीं हो पाता और इस समय हेलीकॉप्टर चलाना कठिन हो जाता है। नीलगिरी पहाड़ी श्रृंखला में अक्सर धुंध का भी सामना करना पड़ता है। नीलगिरी पर्वत श्रृंखला नुकीली पहाड़ियों के कारण अप एंड डाउंस वाले होते हैं। इस क्षेत्र में हेलीकॉप्टर की उड़ान अधिकतम ऊंचाई 3000-3500 मीटर या इससे भी कम ही होती है।
'ब्लू माउंटेंस' मेंं हैं कई नुकीले शिखर
नीलगिरि पर्वतों श्रेणी कर्नाटक और केरल के जंक्शन पर स्थित है। यह पश्चिमी घाट का एक हिस्सा है। पहाड़ों की इस श्रेणी को 'नीलगिरि हिल्स' या 'द क्वीन ऑफ हिल्स' या 'ब्लू माउंटेंस' के नाम से भी जाना जाता है। नीलगिरि पर्वत की एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें कई नुकीले शिखर हैं, जिन्हें चोटियां कहा जाता है। इन पहाड़ियों या चोटियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस रेंज की सबसे ऊंची चोटी डोड्डाबेट्टा है। इस लिए दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
जानिए क्षेत्र की चोटियों की ऊंचाई :
डोड्डाबेट्टा चोटी : लगभग 2,637 मीटर (8,652 फीट)।
स्नोडोन : लगभग 2,530 मीटर (8,301 फीट)।
देवशोला : लगभग 2,261 मीटर (7,418 फीट)।
कुलकोम्बाई : लगभग 1,707 मीटर (5,600 फीट)।
हुलीकल दुर्ग : लगभग 562 मीटर (1,844 फीट)।
कुन्नूर बेट्टा : लगभग 2,101 मीटर (6,893 फीट)।
रलिया पहाड़ी : लगभग 2,248 मीटर (7,375 फीट)।
दीमहट्टी हिल : लगभग 1,788 मीटर (5,866 फीट)।
हिमस्खलन हिल : लगभग 2,590 मीटर (8,497 फीट)।
कोलारिबेटा : लगभग 2,630 मीटर (8,629 फीट)।
डर्बेटा हिल : लगभग 2,494 मीटर (8,182 फीट))।
मुकुर्ती चोटी : लगभग 2,554 मीटर (8,379 फीट)।
मुत्तुनडु बेट्टा : लगभग 2,323 मीटर (7,621 फीट)।
ताम्रबेटा : लगभग 2,120 मीटर (6,955 फीट)।
वेल्लनगिरि : लगभग 2,120 मीटर (6,955 फीट)।
वेलिंगटन से ही बिपिन रावत ने की थी सीडीएस की पढ़ाई
बता दें कि वेलिंगटन वही इलाका है जहां पर सेना का सबसे प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विस स्टाफ कालेज है जहां पर सेना के अधिकारी अपनी ट्रेनिंग पाते हैं। यहीं से सीडीएस बिपिन रावत ने भी पढ़ाई की थी। ऊंटी का ये इलाका आसमान में काफी निचले स्तर पर आने वाले बादलों के लिए भी जाना जाता है। इस एयरबेस पर एलसीए तेजस को तैनात किया गया है।