मुस्लिम - ईसाई धर्म में न जातिवादी भेद है न पिछड़ापन, इसलिए कन्वर्टेड दलितों को नहीं मिलेगा आरक्षण - कोर्ट में मोदी सरकार

SC reservation : केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि एससी का दर्जा ( SC Status ) उन लोगों को नहीं दिया जा सकता, जो कभी दलित होने का दावा करते थे और बाद में इस्लाम या ईसाई धर्म को अपना लिया।

Update: 2022-11-12 05:13 GMT

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नई दिल्ली। देश में लंबे अरसे से धर्म परिवर्तन ( conversion ) कर ईसाई ( Christian ) और मुस्लिम ( Muslims ) बने दलितों ( Dalit ) को अनुसूचित जाति का दर्जा देने को लेकर बहस जारी है। इस बीच केंद्र सरकार ( Central government ) ने दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में हलफनामा दायर कर ​अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि एससी का दर्जा ( SC Status ) उन लोगों को नहीं दिया जा सकता, जो कभी दलित होने का दावा करते थे और बाद में इस्लाम या ईसाई धर्म को अपना लिया।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में संविधान के 1950 के आदेश को चुनौती देते हुए ईसाई और मुस्लिम धर्म में परिवर्तित होने वाले दलित ( Dalit ) लोगों के लिए भी आरक्षण ( Sc reservation ) देने की मांग के जवाब में दाखिल की है। इसके पीछे केंद्र सरकार का तर्क है कि इस्लाम और ईसाई में अछूत जैसी सामाजिक कुरीतियां प्रचलन में नहीं हैं। केंद्र सरकार ने अपने ताजा आदेश में एससी जातियों के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का संवैधानिक अधिकार केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्मों के लोगों के लिए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के आधार पर आगे बढ़ाया है।

केंद्र सरकार की राय में 1950 के आदेश के मुताबिक अनुसूचित जाति ( Sc ) की पहचान सामाजिक कुरीतियों के आसपास केंद्रित थी। पिछड़ों के लिए अधिकार 1950 के आदेश के तहत मान्यता प्राप्त समुदायों तक सीमित है। संविधान के (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित था। ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों द्वारा कभी भी छुआछूत या उत्पीड़न का सामना नहीं किया था।

केंद्र ने अपने हलफनामे में इस बात का भी जिक्र किया है कि अनुसूचित जाति ( SC Status ) के लोगों का इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे धर्मों में परिवर्तित होने का एक कारण यह है कि वे कुरीतियों की दमनकारी व्यवस्था से बाहर आ सकते हैं। केंद्र सरकार की दलील है कि यदि धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को सामाजिक कुरीतियों के पहलू को जांचे बगैर मनमाने ढंग से आरक्षण का लाभ देना गंभीर अन्याय होगा। साथ ही कानून का दुरुपयोग भी। इससे अनुसूचित जाति के तहत आने वाले लोगों के अधिकार प्रभावित होंगे।

मोदी सरकार यह मानती है कि मुस्लिमों और ईसाइयों को आरक्षण का लाभ देना गलत होगा। बौद्ध धर्म को आरक्षण का लाभ देने को सही बताया। इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया है कि बौद्ध लोगों धर्मांतरण की प्रक्रिया अलग है। साथ ही बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले लोगों की मूल जाति का भी पता लगाया जा सकता है। अनुसूचित जाति के कुछ लोगों ने जन्मजात सामाजिक-राजनीतिक अनिवार्यताओं के कारण 1956 में डॉ अंबेडकर के आह्वान पर स्वेच्छा से बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। ऐसे धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों की मूल जाति और समुदाय का आसानी से निर्धारण किया जा सकता है लेकिन ऐसा ईसाइयों और मुसलमानों के संबंध में नहीं कहा जा सकता है, जो अन्य वजहों से अपनी धर्म बदल रहे हैं।

जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की 2007 की रिपोर्ट को त्रुटिपूर्ण बताते हुए केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में कोर्ट से कहा कि यह रिपोर्ट को केंद्र द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। यह रिपोर्ट बिना किसी अध्ययन के तैयार की गई थी और ये विफल भी रही। इस बात के मद्देनजर समावेशन का अनुसूचित जाति के रूप में सूचीबद्ध वर्तमान जातियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कि उसने पिछले महीने पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया था, जो यह जांच करेगा कि क्या दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है।

बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने 30 अगस्त को केंद्र से इस मांग को उठाने वाली याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। मामला 18 साल से लंबित था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रभाव वाले मुद्दों पर फैसला लेने का दिन आ गया है।

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