Parenting : लापरवाह मां-बाप होंगे सजा के हकदार, जानें पूरा मामला

Parenting : चीन की संसद में पेश बिल के मुताबिक छोटे बच्चों और किशोरों द्वारा किए गए अपराधों के लिए अब उनके माता-पिता जिम्मेदार माने जाएंगे। बिल में माता-पिता को फटकार और दंड के साथ बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए विशेष प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है।

Update: 2021-10-24 09:48 GMT

अब बच्चों की ठीक से परवरिश नहीं करने वाले अभिभावक सजा के हकदार होंगे। 

मोना सिंह की रिपोर्ट 

देश में छेड़छाड़ हो या कोई रेप की घटना, शायद ही, कभी किसी ने समाज का एक इकाई होने के नाते या किसी नेता ने आरोपी लड़कों को दोषी ठहराया हो। अक्सर, लड़कियों के पहनावे या फिर रात में घर से बाहर निकलने को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। लेकिन ये कभी नहीं कहा जाता है कि इसमें रेपिस्ट के परिवार की परवरिश में भी खामियां रहीं होंगी। ये सवाल नहीं उठाया जाता कि आखिर हम अपने परिवार में ही लड़के और लड़कियों को नैतिक शिक्षा क्यों नहीं देते? ऐसा क्यों नहीं करते कि चाहे लड़का हो या लड़की, दोनों की कुछ नैतिक जिम्मेदारियां तय कर दी जाएं।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये बात अचानक क्यों की जा रही है, तो आपको बता दें कि दुनिया में चीन एक ऐसा देश बना है जहां अगर बच्चे कोई क्राइम करते हैं तो उनके माता-पिता को भी गुनाहगार माना जाएगा। ऐसा इसलिए कि एक बच्चे की परवरिश और नैतिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी उसके परिवार की होती है।

इस बारे में चीन की संसद में एक मसौदा बिल पेश कर दिया गया है। यह बिल बच्चों और युवाओं से संबंधित नया कानून पास करने के बारे में है। इस बिल के मुताबिक छोटे बच्चों और किशोरों द्वारा किए गए अपराधों और बहुत बुरे व्यवहार के लिए उनके माता-पिता को दंडित किया जाएगा। इसमें माता-पिता को फटकार और दंड के साथ अच्छे वातावरण में बच्चों की परवरिश के लिए ट्रेनिंग दिए जाने का भी प्रावधान शामिल हैं।

कानून बनाने की वजह क्या है?

एनपीसी यानी नेशनल पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता जोंग तिवेई के मुताबिक, पारिवारिक शिक्षा की कमी या अनुपयुक्त पारिवारिक शिक्षा किशोरों के दुर्व्यवहार करने का प्रमुख कारण है। इसके साथ ही ऑनलाइन गेम्स स्कूलों और सामाजिक परिवेश का मानसिक दबाव भी मुख्य कारण है।चीनी संसद में पेश बिल में कहा गया है कि यदि बच्चा अपराध करता है या स्कूल के नियमों का उल्लंघन करता है तो माता-पिता पर भी दोष का एक हिस्सा स्थानांतरित किया जाएगा। यदि बच्चा 16 या 16 वर्ष से कम उम्र का है और उसने आपराधिक गतिविधियों में हिस्सा लिया या अपराध किया है तो कानून में बच्चे के माता-पिता को दंडित करने का अधिकार रहेगा। बिल के अनुसार माता-पिता को बच्चों के दैनिक गतिविधियों के लिए जरूरी समय निकालने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इन गतिविधियों में खेल और व्यायाम को खासतौर पर शामिल किया गया है। बच्चों और नाबालिगों को राष्ट्र, पार्टी और समाजवाद से प्यार करना सिखाया जाएगा।

ऑनलाइन गेमिंग के लिए समय तय

चीन एकमात्र ऐसा देश है जहां बच्चों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए भी समय-सीमा निर्धारित है। नाबालिगों के लिए चीनी शिक्षा मंत्रालय ने ऑनलाइन गेम के घंटे सीमित कर दिए हैं। अब उन्हें केवल शुक्रवार, शनिवार और रविवार को एक घंटे के लिए ऑनलाइन गेम खेलने की इजाजत होगी। इसके साथ ही बच्चों को भारी शैक्षणिक दबाव से बचाने के लिए होमवर्क में कटौती की गई है। वीकेंड की छुट्टियों के दौरान प्रमुख विषयों के ट्यूशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

युवाओं में बढ़ा अजीबोगरीब क्रेज

चीन के नीति-निर्माताओं का मानना है कि वहां के युवा लड़कों में लड़कियों वाला शौक तेजी से बढ़ रहे है। इसलिए, वहां बीते दिसंबर में अजीबोगरीब आदेश दिया गया था। चीनी युवा पुरुषों से कम श्स्त्रीश् और अधिक श् मर्दानाश् होने का आग्रह किया गया था। चीन के इस आदेश के अनुसार वहां का शिक्षा मंत्रालय पुरुष किशोरों के नारीकरण को रोकने के लिए स्कूलों में सॉकर जैसे ऑन कैंपस खेलों को बढ़ावा देगा।

परिवार शिक्षा प्रोत्साहन कानून

बच्चों को लेकर बनाए गए नए कानून में माता-पिता को अपने बच्चों के दैनिक क्रियाकलापों का समय निर्धारित करने का आग्रह किया गया है। इसके साथ ही कानून बनने के बाद बच्चों के अपराधों और बहुत बुरे ब्यवहार के लिए माता-पिता को दंडित किया जाएगा। उच्च श्रेणी के अपराध की दशा में दूसरा दंड भी तय किया जा सकता है। माता-पिता को परिवार शिक्षा मार्गदर्शन के कार्यक्रमों पर चलने के आदेश दिए जाएंगे।

भारत में बाल अपराध के लिए कानूनी प्रावधान

भारत में बाल अपराध से जुड़ा कानून सबसे पहले किशोर न्याय अधिनियम जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-1960 लागू हुआ। फिर इसे 1986 और 2000 में संशोधित किया गया। 30 दिसंबर, 2000 को लागू किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार इसमें किशोरों की देखभाल सुरक्षा उपचार विकास और पुनर्वास प्रदान किए जाने का प्रावधान था। इस अधिनियम को 2006 और 2010 में संशोधित किया गया। लेकिन 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली के निर्भया हत्या व बलात्कार कांड के बाद इसमें बड़ा बदलाव हुआ।

ऐसा इसलिए कि निर्भया कांड में एक नाबालिग आरोपी भी शामिल था। जिस पर नियमों के मुताबिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। इस नियम को संशोधित कर 2015 में लागू किया गया। नए नियमों के तहत 16 वर्ष का किशोर लड़का और 18 वर्ष से कम की लड़किंया अगर जघन्य अपराधों में शामिल पाईं गई तो उनपर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है।

समाजशास्त्री डॉ. एसएन पांडे बताते हैं कि बच्चों में अपराधिक प्रवृत्ति के लिए काफी हद तक परिवार भी जिम्मेदार होता है। क्योंकि बच्चे अपने परिवार के माहौल से ही सबसे ज्यादा सीख लेते हैं। या फिर कई बार अपने करीबी लोगों से भी प्रभावित होते हैं। इसलिए बच्चे ऐसे असामाजिक माहौल में रहने की वजह से शारीरिक और मानसिक रूप से अयोग्य होने के साथ-साथ एक गैर जिम्मेदार नागरिक भी बन जाते हैं।

आजकल बच्चे नशे की तरफ बढ़ रहे हैं। अपराध में नशे की बड़ी भूमिका है। इसलिए बच्चों को इन सब चीजों से बचाने के लिए बचपन में ही उचित शिक्षा, सही पालन पोषण की जरूरत है। ऐसे में बेशक कानून बने या न बने, लेकिन जरूरी ये है कि हर परिवार ये मानकर अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा खुलकर दे। ताकि वो गलती करे तो उसकी सजा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ेगी।

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