'पूर्व CJI गोगोई का जब साहित्य, कला और विज्ञान में योगदान शून्य तो किस आधार पर दी राज्यसभा सदस्यता?'

गोगोई 2018 में भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। वह देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त हुए.......

Update: 2021-08-29 15:30 GMT

जनज्वार। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन की राज्यसभा सदस्यता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। याचिका में गोगोई के खिलाफ यथास्थिति वारंट जारी करने की मांग की गई है जिसमें उन्हें यह दिखाने के लिए कहा गया है कि किस अधिकार, योग्यता और टाइटल के आधार पर वह राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं। संविधान के अनुसार जांच केबाद उन्हें राज्यसभा सदस्यता से हटा दिया जाए।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में मांग की गई है कि गोगोई के नामांकन के संबंध में अधिसूचना जैसा कि भारत के आधिकारिक राजपत्र -असाधारण-भाग II- खंड 3- उपखंड (ii) में 16 मार्च 2020 को प्रकाशित किया गया है और अधिसूचना को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 71 के अनुसरण में प्रकाशित किया गया है, उसे रद्द किया जा सकता है। गोगोई राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं। उन्हें भारत के आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित एक अधिसूचना द्वारा 16 मार्च 2020 को राष्ट्रपति के द्वारा नामित किया गया था।

बता दें कि गोगोई 2018 में भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। वह देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त हुए। उनकी राज्यसभा सदस्यता के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सतीश एस. काम्बिये के द्वारा याचिका दायर की गई है।

याचिका में कहा गया है कि संसद की वेबसाइट - काउंसिल ऑफ स्टेट्स पर उपलब्ध प्रतिवादी के बायोडाटा के अनुसार उन्होंने (पूर्व सीजेआई) कोई किताब नहीं लिखी है और न ही उन्हें श्रेय देने वाला कोई प्रकाशन है और सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों, साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियों और अन्य विशेष रुचियों में उनका योगदान शून्य है।

कम से कम प्रतिवादी की वेबसाइट पर साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के प्रति उसके विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

याचिकाकर्ता का यह मामला है कि राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 80 (1) (ए) के तहत राज्यसभा में बारह सदस्यों को नामित करने की शक्ति है, जो अनुच्छेद 80 (3) के अनुसार है, जिसमें यह प्रावधान है कि साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा सदस्य के रूप में नामित किए जाएंगे।

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