आने वाला समय अनिश्चितता का है, इसलिए फूंक-फूंककर रखें कदम, ताकि महंगाई न हो बेलगाम: जनता के अर्थशास्त्री की चेतावनी

एक मुश्किल यह है कि निर्यात की तुलना में आयात तेजी से बढ़ रहा है, आयात में 56 प्रतिशत, तो निर्यात में 29.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा....

Update: 2022-09-05 03:21 GMT

तेजी के दौर में संभलकर चलें, ताकि कीमतें ज्यादा न बढ़ें :  

जनता के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार की एक महत्वपूर्ण टिप्पणी

भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.5 प्रतिशत दर्ज की गई है, जो पिछली चार तिमाही में सबसे अधिक है। ऐसे वक्त में, जब कई देश धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं, हमारी यह तरक्की उत्साहवर्द्धक है। एक सच यह भी है कि ऐसे आंकड़ों में अमूमन पिछले साल से तुलना की जाती है, जब अर्थव्यवस्था कोविड की मार से हलकान थी। इसीलिए इसमें काफी तेज वृद्धि नजर आती थी, जबकि कोविड-पूर्व की स्थिति से यह कमजोर रहा करती थी। मगर पिछली दो तिमाही से ऐसा नहीं है। 2019-20 की तिमाही से यदि तुलना करें, तब भी इस बार 3.5-4 फीसदी की दर से हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ी है, जबकि पिछली तिमाही में यह वृद्धि करीब 1.25 प्रतिशत थी। स्पष्ट है, अर्थव्यवस्था अब रफ्तार पकड़ने को तैयार है।

अच्छी बात यह भी है कि निजी उपभोग के आंकड़े पहली बार 2019-20 के स्तर से ज्यादा दिखे हैं। इसमें तकरीबन सात फीसदी की दर से वृद्धि हुई है। उपभोग बढ़ने से क्षमता निर्माण बेहतर होता है। इससे पूंजी निर्माण भी बढ़ता है। वर्ष 2019-20 की तुलना में इसमें वृद्धि दिखी भी है। यानी, एक तरह से हमारा पूंजी निवेश बढ़ रहा है। देखा जाए, तो अर्थव्यवस्था के लिए उपभोग और निवेश में वृद्धि काफी महत्वपूर्ण है। इसमें 2021-22 ही नहीं, 2019-20 के तुलना में भी बढ़ोतरी हुई है।

कृषि क्षेत्र भी इस तिमाही में करीब 4.5 फीसदी की दर से बढ़ा है, जबकि इसमें गिरावट का अंदेशा था। असल में, अप्रैल-जून के दरम्यान ही भीषण गरमी के कारण गेहूं, टमाटर व अन्य सब्जियों का उत्पादन प्रभावित हुआ था। मगर नए आंकड़ों ने इस डर को बेमानी बना दिया है। इसी तरह, सेवा क्षेत्र में भी अच्छी वृद्धि हुई है। रेस्तरां, यातायात जैसे क्षेत्रों में तकरीबन 26 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जबकि विनिर्माण में 17 प्रतिशत की दर से। यह रफ्तार इसलिए कुछ धीमी है, क्योंकि 'कॉन्ट्रैक्ट सर्विस' होने के कारण लोगों को यहां कई तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। इसी तरह, वित्त, रियल एस्टेट व पेशेवर सर्विस वाले क्षेत्रों में मामूली वृद्धि हुई है। पिछले साल की तुलना में इसमें करीब नौ फीसदी की बढ़ोतरी ही दिखी है, और 2019-20 के स्तर को तो यह अब भी छू नहीं सकी है।

तिमाही के आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में कोयले और सीमेंट का उत्पादन बढ़ा है। व्यावसायिक गाड़ियों की खरीदारी में 12 फीसदी, तो निजी गाड़ियों में 51.5 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है। मगर एक मुश्किल यह है कि निर्यात की तुलना में आयात तेजी से बढ़ रहा है। आयात में 56 प्रतिशत, तो निर्यात में 29.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा। एक अन्य चीज, जो परेशानी की है, वह है मौजूदा कीमत पर वृद्धि दर 26.7 प्रतिशत है, लेकिन वास्तविक वृद्धि 13.5 फीसदी हुई है, यानी हमारे यहां दाम 13.2 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। थोक मूल्य सूचकांक में इस वास्तविक वृद्धि से उत्पादन प्रभावित होगा, जिसका नकारात्मक असर उपभोक्ता पर पड़ेगा।

आने वाले समय में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बढ़ सकता है। इसको लेकर अनिश्चितता इसलिए भी है, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहने से खाद्य आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है। चीन में रह-रहकर लग रहे लॉकडाउन और गरमी की वजह से दुनियाभर में जहां-तहां पड़े सूखे ने भी हमारी चिंता बढ़ाई है। फिर, अपने देश में धान की पैदावार के रकबे में कमी आई है। साफ है, खाने-पीने की चीजों के दाम न बढ़े, इसके लिए सरकार को विशेष प्रयास करने होंगे।

संभव हो, तो परोक्ष कर को कम करना चाहिए। खासतौर से जीएसटी दरों में की गई वृद्धि को तार्किक बनाया जाना चाहिए, ताकि अनिवार्य चीजों के दाम कम तेजी से बढें। असंगठित क्षेत्र को भी सरकार विशेष समर्थन दे, क्योंकि संगठित क्षेत्र में तेजी असंगठित क्षेत्र को नुकसान पहुंचाती है, जबकि बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में ही अपने लिए काम-काज ढूंढ़ती है। इस क्षेत्र को समर्थन मिला, तो बाजार में मांग पैदा होगी, जिसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा। अच्छी बात है कि सरकार ने सार्वजनिक खर्च बढ़ाए हैं, पर आने वाला समय अनिश्चितता का है, इसलिए फूंक-फूंककर कदम रखने की जरूरत है, ताकि महंगाई न बढ़े।

(जनता के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार की यह टिप्पणी पहले हिंदुस्तान पर प्रकाशित।) 

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