Qutub Minar : कुतुब मामले में नया मोड़, शाही परिवार के 1 शख्स ने साकेत कोर्ट में मालिकाना हक का दावा ठोका
Qutub Minar : साकेत कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार ने ताजा आवदेन मिलने के बाद कुतुब मीनार परिसर में हिंदू और जैन मंदिरों और देवताओं की बहाली की मांग वाली अपील पर फैसला 24 अगस्त के लिए टाल दिया है।
Qutub Minar : ऐतिहासिक कुतुब मीनार ( Qutub Minar ) को लेकर मंदिर-मस्जिद विवाद ( mandir-masjid dispute ) के बीच अब एक नया मोड़ आ गया है। आगरा ( Agra ) शाही परिवार ( Royal Family ) के एक शख्स ने कुतुब मीनार ( qutub minar ) का उत्तराधिकारी ( Qutub minar ownership ) होने का दावा ठोक दिया है। शाही परिवार के उस व्यक्ति ने कुतुब मीनार के स्वामित्व की मांग करते हुए गुरुवार को दिल्ली ( Delhi ) के साकेत कोर्ट ( Saket court ) में आवेदन दायर किया है। साकेत कोर्ट में फाइल ताजा आवेदन के बाद से कुतुब मीनार परिसर में मौजूद मंदिरों के जीर्णोद्धार विवाद में नया मोड़ आ गया है।
दिल्ली की साकेत कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार ने आवेदन पर विचार करते हुए कुतुब मीनार ( qutub minar ) परिसर में हिंदू और जैन मंदिरों और देवताओं की बहाली की मांग वाली अपील पर फैसला 24 अगस्त तक के लिए टाल दिया है।
याची ने अपने दावे को लेकर दिये ये तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता एमएल शर्मा ने ये हस्तक्षेप याचिका ( writ) दायर किया है। याचिका में कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने संयुक्त प्रांत आगरा के उत्तराधिकारी होने का दावा किया है और मेरठ से आगरा तक के क्षेत्रों पर अधिकार मांगा है। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि आवेदक बेसवान परिवार से है और राजा रोहिणी रमन ध्वज प्रसाद सिंह के उत्तराधिकारी और राजा नंद राम के वंशज हैं, जिनकी मृत्यु 1695 में हुई थी।
कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह की ओर दायर याचिका में अधिवक्ता एमएल शर्मा ने लिखा है कि जब औरंगजेब सिंहासन पर मजबूती से स्थापित हो गया तब नंद राम ने सम्राट को कुतुब मीनार ( qutub minar ) सौंप दिया और उसे खिदमत जमीदार, जोअर और तोचीगढ़ के राजस्व प्रबंधन से पुरस्कृत किया गया।
केंद्र, दिल्ली और यूपी सरकार ने किया कानूनी अधिकारों का हनन
साकेत कोर्ट ( Saket court ) में दायर याचिका में कहा गया है कि 1947 में परिवार के एक अन्य सदस्य राजा रोहिणी रमन ध्वज प्रसाद सिंह के समय में ब्रिटिश भारत और उसके प्रांत स्वतंत्र हो गए थे। आवेदक का तर्क है कि 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने न तो कोई संधि की, न ही कोई परिग्रहण हुआ, न ही शासक परिवार के साथ कोई समझौता हुआ। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून की उचित प्रक्रिया के बिना आवेदक के कानूनी अधिकारों का अतिक्रमण किया और आवेदक की संपत्ति के साथ आवंटित, आवंटित और मृत्यु की शक्ति का दुरुपयोग किया।
मंदिर को तोड़कर बनाया गया मस्जिद
याचिका में आरोप लगाया गया है कि गुलाम वंश के सम्राट कुतुब उद दीन ऐबक के तहत 1198 में लगभग 27 हिंदू और जैन मंदिरों को अपवित्र और क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, उन मंदिरों के स्थान पर मस्जिद का निर्माण कराया, जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का नाम दिया।
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