Silger Movement के एक साल : पूरे बस्तर से जुटे हजारों आदिवासी, CRPF कैंप के सामने विशाल प्रदर्शन

Silger Movement : दिल्ली बॉर्डर पर एक साल तक घेरा डालकर आंदोलन करने वाले किसानों (Farmers Movement) की तरह ही आदिवासियों ने सिलंगेर सीआरपीएफ कैंप के पास करीब दो किलोमीटर के दायरे में मुख्य मार्ग (जो कि बन रहा था) पर ही फूस के टेंट लगाकर धरने पर बैठ गए.....

Update: 2022-05-18 06:30 GMT

Silger Movement के एक साल : पूरे बस्तर से जुटे हजारों आदिवासी, CRPF कैंप के सामने विशाल प्रदर्शन

संदीप राउजी की रिपोर्ट

Silger Movement : छत्तीसगढ़ के सिलंगेर में सीआरपीएफ कैंप (CRPF Camp) के खिलाफ एक साल से आंदोलन कर रहे आदिवासियों (Adiwasi Protest) ने मंगलवार 17 मई 2022 को बड़ा प्रदर्शन किया। एक साल पहले इसी दिन प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर कथित तौर पर सीआरपीएफ के जवानों ने गोली चला दी थी जिसमें 3 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी और लाठीचार्ज की वजह से घायल एक गर्भवती महिला की बाद में मौत हो गई थी।

दिल्ली बॉर्डर पर एक साल तक घेरा डालकर आंदोलन करने वाले किसानों (Farmers Movement) की तरह ही आदिवासियों ने सिलंगेर सीआरपीएफ कैंप के पास करीब दो किलोमीटर के दायरे में मुख्य मार्ग (जो कि बन रहा था) पर ही फूस के टेंट लगाकर धरने पर बैठ गए। सर्दी, गर्मी, बरसात झेलते हुए इस आंदोलन के 365 दिन पूरे होने पर एक विशाल जुटान हुआ।

आंदोलन और मारे गए आदिवासियों की पहली बरसी मनाने दूर-दूर से आदिवासी तीन दिन पहले ही पहुंच गए थे। ये आंदोलन मूलवासी बचाओ मंच, बस्तर की ओर से चलाया जा रहा है और इसके नेता रघु ने हमें बताया कि 15, 16, 17 मई के कार्यक्रम में पूरे बस्तर से आदिवासी इकट्ठा हुए।


17 मई को मुख्य कार्यक्रम था। सुबह नौ बजे के करीब हजारों हजार की संख्या में लोगों ने सीआरपीएफ कैंप के पास बने शहीद स्थल की ओर मार्च किया। कैंप के सामने सीआरपीएफ द्वारा लगाए बैरिकेड के सामने ये विशाल हुजूम रूका और अपनी मांगों को लेकर देर तक नारेबाजी की।

क्या हैं मांगें

  • इनकी प्रमुख मांग है कि मारे गए लोगों के परिजनों को एक एक करोड़ रुपए और घायलों को 50-50 लाख मुआवजा दिया जाए। इस घटना की न्यायिक जांच कर दोषी सुरक्षा कर्मियों को सजा दी जाए।
  • सीआरपीएफ कैंप जिस सात एकड़ जमीन पर बना है, वो खेती की जमीन थी, वहां से कैंप को हटाया जाय। बस्तर में आदिवासियों का नरसंहार बंद किया जाय। 

रातों रात उग आया कैंप

बस्तर में आदिवासी अधिकारों के काम करने वाली मानवाडीखा कार्यकर्ता बेला भाटिया भी इस कार्यक्रम में पहुंची थीं। उन्होंने वर्कर्स यूनिटी से कहा कि 'एक साल पहले 12-13 मई की दरमियानी रात सिलंगेर में सीआरपीएफ ने रातों-रात कैंप बना दिया।'

'सुबह जब आदिवासियों को पता चला तो वे वहां पहुंचे। तीन दिन तक हजारों की संख्या में आदिवासी कैंप को हटाने की मांग करते रहे और 17 मई को सीआरपीएफ की ओर से निहत्थी भीड़ पर फायरिंग कर दी गई।'

वो कहती हैं कि 'रात के अंधेरे में कौन आता है? चोर! आखिर सीआरपीएफ को इस तरह चोरों की तरह आने की क्या जरूरत थी? ग्रामसभा को क्यों सूचित नहीं किया गया?'

आदिवासी नेता गजेंद्र मंडावी कहते हैं कि 'सीआरपीएफ के मन में चोर था इसीलिए उन्होंने बिना सोचे गोली चलाई।'


असल में बीजापुर से जगरगुंडा तक सड़क निर्माण में हर दो चार किलोमीटर पर एक सीआरपीएफ कैंप है। सिलंगेर का ये ताजा कैंप 15वां कैंप था।

छत्तीसगढ़ में इस समय कांग्रेस की सरकार है। भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें कांग्रेस और वे खुद, बहुजनों का जुझारू नेता के रूप में प्रचारित कर रहे हैं।

आंदोलन को समर्थन देने सिलंगेर पहुंचे

सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरजू टेकाम का कहना है कि 'भूपेश बघेल को साल भर में इतना मौका नहीं मिला कि वे पीढ़ियों के लिए संवेदना के दो शब्द कह सकें। घटना की जांच छः महीने में करने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक पता नहीं चला कि रिपोर्ट की क्या स्थिति है।' टेकाम कहते हैं, 'इस बार बघेल का खेल खत्म होगा।'

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में साल भर बाद चुनाव भी होने वाला है और बस्तर में जिस तरह से सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ जनांदोलन बढ़ रहा है, बघेल के पेशानी पर बल पड़ने शुरू हो गए हैं।

शायद यही कारण है कि सिलंगेर के विशाल प्रदर्शन के दो दिन बाद ही वे बीजापुर का दौरा कर रहे हैं जो कि सिलंगेर से महज 70 किलोमीटर दूर है। देखना होगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यहां आने के बाद आंदोलनरत और पीड़ित आदिवासियों से मिलने जाते हैं कि नहीं!

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