पत्रकार आतंकी नहीं कि आप उसे आधी रात को बेडरूम से गिरफ्तार कर लें, माफ करें हम आपकी याचिका पर विचार नहीं कर सकते : SC
झारखंड पुलिस की कार्रवाई से लगता है कि वहां पर पूरी तरह अराजकता की स्थिति है। हम राज्य सरकार को ज्यादती की छूट नहीं दे सकते।
नई दिल्ली। झारखंड पुलिस ( Jharkhand Police ) द्वारा एक पत्रकार ( Journalist ) की आधी रात को बेडरूम से खींचकर गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार को फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने रंगदारी के एक मामले में झारखंड में पुलिस द्वारा एक स्थानीय पत्रकार अरूप चटर्जी के घर रात में पहुंचने और उन्हें गिरफ्तार करने से पहले बेडरूम से घसीटकर बाहर लाने की घटना की सख्त शब्दों में निंदा की है। शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को कहा कि पत्रकार आतंकवादी (Journalist not a terrorist) नहीं हैं। इस मामले में झारखंड पुलिस की कार्रवाई को राज्य की ज्यादती करार देते कहा कि ऐसा लगता है कि झारखंड में पूरी तरह अराजकता फैल गई है।
झारखंड में अराजकता का माहौल
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने पत्रकार को अंतरिम जमानत देने के झारखंड (Jharkhand High court ) हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि वह राज्य की अपील पर विचार नहीं करेगी। बेंच ने कहा कि हमने मामले के तथ्यों को देखा है। ये सभी राज्य की ज्यादती हैं और ऐसा लगता है कि झारखंड में पूरी तरह से अराजकता का माहौल पैदा हो गया है।
हाईकोर्ट ने दी थी पत्रकार को जमानत
कोर्ट ने घटना पर कड़ी नाराजगी जताते हुए झारखंड के अतिरिक्त महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी से कहा कि आप आधी रात को एक पत्रकार का दरवाजा खटखटाते हैं और उसे उसके बेडरूम से बाहर निकालते हैं। यह बहुत ज्यादा हो गया। आप ऐसा एक ऐसे शख्स के साथ कर रहे हैं जो पत्रकार है और पत्रकार आतंकवादी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने सही तरह से एक विस्तृत आदेश के जरिए पत्रकार को अंतरिम जमानत दी जिसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
माफ करें, हम आपकी याचिका पर विचार नहीं कर सकते
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने एडीजी अरुणाभ चौधरी से कहा कि माफ करें हम आपकी याचिका पर विचार नहीं करने जा रहे हैं। चूंकि यह एक अंतरिम आदेश है और मामला वहां लंबित है। आप जाकर हाईकोर्ट से बात करें।
पत्रकार पर है रंगदारी और जबरन वसूली के आरोप
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में अतिरिक्त महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने इल्जाम लगाया कि पत्रकार अरूप चटर्जी ब्लैकमेल करने और जबरन वसूली जैसी गतिविधियों में शामिल रहे हैं। उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। पीठ ने कहा कि पत्रकार भाग्यशाली हैं कि तीन दिन में बाहर आ गए। अन्यथा, उनके जैसे कई लोगों को जमानत से पहले दो-तीन महीने जेल में बिताने पड़ते हैं। हाईकोर्ट द्वारा 19 जुलाई को चटर्जी को दी गई जमानत के खिलाफ झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अरूप चटर्जी की पत्नी और चैनल की निदेशक बेबी चटर्जी ने हाईकोर्ट का रुख किया था। उन्होंने दावा किया था कि उनके पति को 16 से 17 जुलाई 2022 की मध्यरात्रि को उनके रांची आवास से रात 12 बजकर 20 मिनट पर गिरफ्तार किया। यह दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। धनबाद पुलिस ने गोविंदपुर थाने में रंगदारी के इल्जाम में दर्ज एक मामले में उन्हें गिरफ्तार किया था।
रूपेश सिंह की गिरफ्तारी में पुलिस ने उड़ाई थी एससी के आदेशों की धज्जियां
इससे पहले 17 जुलाई की सुबह झारखंड के सरायकेला खरसांवा पुलिस ने स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को रामगढ़ आवास से गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी सरायकेला खरसांवा कांड्रा थाना पुलिस ने आठ माह पूर्व दर्ज मामले में की थी। रूपेश कुमार सिंह को केंद्र सरकार ने पेगासस सूची में रखा था और उनके फोन की निगरानी की गई थी। रूपेश की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का खुला उल्लंघन है। किसी भी मामले में पुलिस को सबसे पहले पूछताछ करनी चाहिए और गिरफ्तारी से पहले उसे संबंधित शख्स को सूचना देनी चाहिए। रूपेश सिंह के मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया। रूपेश की गिरफ्तारी पर उनकी पत्नी इलिका प्रिय ने बताया था कि रूपेश कुमार सिंह जिन्हें 2019 में झूठे केस में फंसाने की कोशिश की गई थी। उस मामले में भी पुलिस उनके खिलाफ चार्जशीट तक दाखिल नहीं कर पाई थी। उनके मोबाइल में पेगासस द्वारा जासूसी की गई है, जिसका केस आज भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।