सुप्रीम कोर्ट की उच्च न्यायालयों को सलाह, बिना सोचे समझे टिप्पणी करने से बचें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेशक न्यायाधीशों के रूप में हमें इसे भी देखना होगा कि यह नया समय है जिसमें हम रह रहे हैं और हर शब्द जो हम कहते हैं सोशल मीडिया या ट्विटर का हिस्सा बन जाता है। हम सभी कह सकते हैं कि हम संयम बरतने उम्मीद करते हैं....
जनज्वार डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को सलाह दी है कि वो सुनवाई के दौरान बिना सोचे समझे टिप्पणी करने से बचें और सयंम बरतें क्योंकि व्यक्तियों के लिए हानिकार हो सकता है और उनके बारे में गलतफहमी पैदा कर सकता है।
जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ की बेंच कोरोना महामारी से जुड़े मुद्दों का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही थी। जब लगभग चार घंटे की सुनवाई खत्म होने की कगार पर थी, तब भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोरोना से जुड़े मामलों पर उच्च न्यायालयों द्वारा सुनवाई के दौरान की गईं कुछ कठोर टिप्पणियों के बारे में बेंच से शिकायत की।
कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक मेहता ने कहा- यौर लॉर्डशिप आप हमारे अविभाजित हिंदू परिवार के कर्ता के समान हैं। इसलिए मैं इसे प्रस्तुत कर रहा हूं। कुछ रिट याचिकाओं और आवेदनों में केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कठोर टिप्पणियां की गई हैं जबकि इसके राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाना था, लेकिन इससे बचा गया है। उच्च न्यायालयों में गंभीर टिप्पणियां की जाती हैं।
इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अपलोड होने से पहले हम हर आदेश को बहुत ध्यान से देखते हैं। फिर तुषार मेहता ने कहा- नहीं नहीं! मैं यौर लॉर्डशिप आपके बारे में बिल्कुल भी बात नहीं कर रहा हूं! मैं केवल यह कहना चाहता हूं जैसा कि लॉर्डशिप आपने हमारे अविभाजित हिंदू परिवार के कर्ता की भूमिका को स्वीकार कर लिया है, कुछ उच्च न्यायालयों ने कुछ बहुत ही कठोर अवलोकन किए हैं। यह चिंता का विषय हैं। हर किसी के द्वारा साझा किया जाता है, लेकिन संकट के इस समय में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए। यहां तक कि वकीलों के रूप में भी हमें बहुत ही चौकस सतर्क रहना चाहिए।
तुषार मेहता की बातों का समर्थन करते हुए बिहार राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि कुछ उच्च न्यायालय तो ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी की कड़ी आलोचना करते हैं। यह बहुत ही हतोत्साहित करने वाला है। कभी-कभी तो हद पार कर देते हैं। अपना काम नहीं कर रहे हैं और सरकारी अधिकारियों के रूप में काम नहीं कर रहे हैं।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मुझे आपकी बात समझ में आ गई। मैं उस संदर्भ को भी जानता हूं जिसकी आप बात कर रहे हैं। हम सभी बार के सदस्य रहे हैं और हम सभी जानते हैं कि जब न्यायाधीश अदालत में कुछ कहते हैं तो यह केवल वकीलों से जानकारी प्राप्त करने और वकीलों की प्रतिक्रिया के लिए होता है ताकि एक खुला संवाद हो सके। यह किसी भी निष्कर्ष के लिए नहीं है। यह केवल वकील और दूसरे पक्ष की परिकल्पना का टेस्ट करना है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि हम किसी वकील के खिलाफ नहीं हैं। ठीक उसी तरह जब मेहरा (जीएनसीटीडी के लिए राहुल मेहरा) तर्क देते हैं हम उसी पीठ पर हैं जो बता रहे हैं कि वह क्या गलत है। सॉलिसिटर जनरल के मामले में भी यही है। हम टेस्ट करते हैं और उनकी दलीलों की आलोचना भी करते हैं।
चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि बेशक न्यायाधीशों के रूप में हमें इसे भी देखना होगा कि यह नया समय है जिसमें हम रह रहे हैं और हर शब्द जो हम कहते हैं सोशल मीडिया या ट्विटर का हिस्सा बन जाता है। हम सभी कह सकते हैं कि हम संयम बरतने उम्मीद करते हैं।
उन्होंने कहा कि विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में हम कुछ सावधानी और संयम बरतते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हम टिप्पणी करने से डरते हैं। बेशक हम स्वतंत्र हैं! यह केवल गंभीर मामले में होता है जिसमें हम निजी नागरिकों के बारे में बिना सोचे समझे टिप्पणी कर देते हैं।
'जब हम उच्च न्यायालय के एक फैसले की आलोचना करते हैं तब भी हम सोच समझकर कहते हैं। बिना सोच समझे कुछ नहीं कहते हैं और हम संयम बरतते हैं। हम केवल यही उम्मीद करेंगे कि इनसे निपटने के लिए उच्च न्यायालयों को स्वतंत्रता दी गई है और हाईकोर्ट को बिना सोचे समझे टिप्पणी करने से बचना चाहिए।'