Exclusive : योगीराज में श्रमिक की दैनिक मजदूरी 337 रुपए, लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर की 114

एक अकुशल श्रमिक की दैनिक मजदूरी योगी सरकार ने 337 रुपए तय रखी है, वहीं एक महाविद्यालय में स्नातकोत्तर के छात्राओं को पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर को मात्र 114 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी के आधे के बराबर भी नहीं है...

Update: 2021-05-31 08:50 GMT

संवैधानिक विधि में पीएचडी राजनीति शास्त्र विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नीरज कर रहे हैं अपने मुकदमे की पैरवी खुद ही

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। सरकार से गुणवत्ता पूर्ण उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने की अगर हम उम्मीद करें तो बेईमानी होगी। यह बात अनायास नहीं कहीं जा रही। उत्तर प्रदेश में योगीराज में उच्च शिक्षा संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों के वेतन के दोहरे मानदंड से जो तस्वीर उभर कर आ रही है, उसे देख यह कहा जा सकता है। एक अकुशल श्रमिक की दैनिक मजदूरी सरकार ने 337 रुपए तय रखी है, वही एक महाविद्यालय में स्नातकोत्तर के छात्राओं को पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर को मात्र 114 रुपए मिल रहे हैं। यह मजदूरी दर एक सभ्य समाज को मुंह चिढ़ाने जैसा ही है।

असिस्टेंट प्रोफेसर के मानदेय की चर्चा करने के पूर्व जान लें कि उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षण संस्थानों की क्या स्थिति है। राज्य में कुल 15 विश्वविद्यालय, 157 राजकीय महाविद्यालय, 272 स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम आधारित महाविद्यालय व 6500 वित्तविहीन महाविद्यालयों की संख्या है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में नामांकित कुल 48 लाख से अधिक छात्रों में से 95 प्रतिशत स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम आधारित महाविद्यालय व वित्तविहीन मान्यता प्राप्त महाविद्यालयों में पढ़ते हैं, जहां के छात्रों से प्राप्त फीसों के 75% धनराशि से ही शिक्षकों को मानदेय देने का सरकार ने फरमान जारी कर रखा है। इसी के चलते ये न्यूनतम मजदूरी दर से भी कम एक असिस्टेंट प्रोफेसर को वेतन देने की बात सामने आई है।

नीरज श्रीवास्तव के मुकदमे में अलग-अलग तारीखों के आर्डर की 2 प्रतियां

यह प्रकरण है कानपुर के मनधना स्थित ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज का। यहां कार्यरत राजनीति शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव को प्रतिमाह महाविद्यालय द्वारा 2975 रुपए मिलते हैं, अर्थात इनकी दैनिक मजदूरी बनती है 114 रुपए। उधर राज्य सरकार द्वारा मजदूरी को लेकर जारी अक्टूबर 2020 के आदेश के मुताबिक अकुशल श्रमिक का मानदेय 8758 रुपये होता है। ऐसे में एक दिन की मजदूरी 337 रुपये बनती है। इस आधार पर कह सकते हैं कि डॉक्टर नीरज की एक दिन का तनख्वाह एक सामान्य मजदूर से आधे से भी कम है, जबकि उसी महाविद्यालय में आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसर का न्यूनतम वेतन 57700 रुपए है।

पिछले 20 वर्षों से ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज में कार्यरत डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक यूजीसी द्वारा निर्धारित वेतनमान के भुगतान के लिए वे प्रयागराज हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं। मुकदमे में कोर्ट द्वारा निर्धारित यूजीसी के मानक के अनुसार वेतन देने के आदेश के बाद भी सरकार द्वारा टाल मटोल किया जा रहा है, जिस पर अब कोर्ट के अवमानना का मामला चल रहा है।

वर्ष 2014 से चल रही न्याय की लड़ाई

डॉ. नीरज के मुताबिक, 'एक अन्य मामले में लखनऊ खंड पीठ ने यूजीसी के मानक के अनुसार वेतन देने का आदेश 2014 में दिया था। कोर्ट ने यह आदेश साकेत महाविद्यालय अयोध्या में कार्यरत डॉक्टर एसके पांडे के अपील पर दी थी। यह आदेश ऐसे सभी शिक्षकों के लिए लागू होता है, लेकिन अनुपालन न होने पर जन सूचना अधिकार के तहत मैंने जानकारी मांगी। एक वर्ष तक अधिकारियों के दफ्तर का चक्कर लगाने के बाद भी लिखित रूप से जानकारी नहीं दी गई। ऐसे में हमने राज्य सूचना आयोग के खिलाफ प्रयागराज हाईकोर्ट में वाद दायर किया, जिस पर न्यायमूर्ति केसरवानी के बेंच ने आयोग को सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इसके पूर्व मैंने इस संबंध में उच्च शिक्षा अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल तक पर शिकायत की थी, लेकिन निराशा ही हाथ लगती रही।

वर्ष 2018 से कोर्ट के अवमानना का चल रहा है वाद

अब असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव का प्रकरण इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है। लखनऊ खंडपीठ का आदेश न मानने पर न्यायालय के अवमानना संबंधित रिट को लेकर आवेदक का कहना है कि यूजीसी के सेवा शर्तों के आधार पर विश्वविद्यालय चयन करता है। ऐसे में वेतन भुगतान संबंधित अलग-अलग आदेश कहां तक उचित है। शिक्षा संविधान के समवर्ती सूची के अधीन आता है। ऐसे में केंद्र द्वारा निर्धारित मानदंड को मानने के लिए राज्य भी बाध्य हैं। कोई भी राज्य अलग-अलग वेतनमान को लेकर कानून नहीं बना सकता है। वर्ष 2018 से अब तक अलग-अलग सात जजों के बेंच ने सुनवाई के दौरान यूजीसी के स्केल मानने संबंधित आदेश जारी किए हैं। उधर शासन द्वारा लगाए गए जवाब में निर्धारित वेतन देने की बात कही गई। इस पर हमने शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को जानकारी दी कि हमें 57700 रुपए के बजाय 2975 रुपए मिलते हैं। वर्ष 2019 में जस्टिस सुमित कुमार की कोर्ट ने भी यूजीसी का वेतनमान देने का आदेश दिया। 10 मार्च 2021 सरकार द्वारा लगाए गए जवाब में यह बताया गया कि विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग वेतन तय कर भुगतान किया जाता है। यह जानकारी अपर सचिव को विश्वविद्यालयों ने दी है। इस पर कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अलग अलग कैसे वेतनमान तय कर सकते हैं। सरकार द्वारा एक बार फिर 24 अप्रैल को डबल बेंच में अपील किया गया है।

अपने मुकदमे की खुद पैरवी करते हैं नीरज श्रीवास्तव

खास बात यह है कि मुकदमे की पैरवी के लिए डॉ. नीरज ने कोई वकील नहीं रखा है, बल्कि अपने मुकदमे की पैरवी खुद करते हैं। राजनीति शास्त्र विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नीरज संवैधानिक विधि में पीएचडी हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा द्वारा मेडल भी दिया जा चुका है। इसके अलावा इनके कई शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

अपने अधिकार के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले नीरज अब कर्ज के बोझ तले दब चुके हैं। वे कहते हैं कि हाईकोर्ट में एक दिन मुकदमे की पैरवी करने जाने एक हजार रुपए से अधिक खर्च हो जाता है। अब तक लाखों रुपए मुकदमे की पैरवी में खर्च को चुके हैं, जिसके चलते कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। हालांकि नीरज श्रीवास्तव को उम्मीद है कि उन्हें हर हाल में एक दिन इंसाफ जरूर मिलेगा। इस लड़ाई में असंख्य लोगों का आशीर्वाद है, जिसका प्रतिफल हमें एक न एक दिन अवश्य मिलेगा।

स्ववित्त पोषित/ वित्तविहीन महाविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ. चतुरानन ओझा इस मसले पर कहते हैं, 'सरकारों की मनमानी के चलते उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थिति खराब होती चली जा रही है। वित्तविहीन महाविद्यालय व स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम में पढ़ाने के लिए रखे गए असिस्टेंट प्रोफेसर को छात्रों के फीस की 75 प्रतिशत धनराशि से वेतन का भुगतान करने का आदेश जारी किया गया है। ऐसे में जिन महाविद्यालयों में संबंधित विषय में छात्रों का नामांकन बहुत कम है, वहां के शिक्षकों को बहुत ही कम मानदेय मिलता है। ऐसा ही प्रकरण डॉ. नीरज श्रीवास्तव से संबंधित है।'

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